किसी भी फसल की अच्छी पैदावार के लिए जरूरी है कि उसे सही पोषण और पर्याप्त खाद मिले. ऐसे में किसान हरी खाद (ग्रीन मैन्योर) का इस्तेमाल करके न सिर्फ फसल का उत्पादन बढ़ा सकते हैं, बल्कि खेत की मिट्टी को भी उपजाऊ बना सकते हैं. हरी खाद को किसान अपने खाली खेतों में उगाकर तैयार कर सकते हैं. यह खाद सिर्फ 45 दिनों में बनकर तैयार हो जाती है. इसके उपयोग से मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा बढ़ती है और pH स्तर भी संतुलित होता है. साथ ही इससे मिट्टी को प्राकृतिक रूप से नाइट्रोजन भी मिलती है, जिससे रासायनिक खादों की जरूरत कम हो जाती है.
खेत की मिट्टी में सुधार
उत्तर प्रदेश कृषि विभाग द्वारा सोशल मीडिया पर दी गई जानकारी के अनुसार, हरी खाद के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरक क्षमता के बढ़ने के साथ ही मिट्टी की संरचना में भी सुधार होता है. फसलों की ग्रोथ के लिए जैविक कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस बहुत ही जरूरी होते हैं. हरी खाद यानी ढैंचा के इस्तेमाल से मिट्टी को ये सभी पोषक तत्व प्राकृतिक रूप से मिलते हैं. जिसके कारण मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है. इसके साथ ही हरी खाद से मिट्टी भुरभुरी बनती है और पानी को रोकने की क्षमता भी बढ़ती है.
केमिकल उर्वरकों का इस्तेमाल होता है कम
आज के समय में किसान अपनी फसलों के लिए बाजार से महंगे केमिकल उर्वरकों को खरीद कर उनका इस्तेमाल करते हैं. लेकिन कई बार किसानों को मन मुताबिक परिणाम नहीं मिलता है. ऐसे में किसान हरी खाद को तैयार कर उसका इ्स्तेमाल कर सकते हैं. बता दें कि, हरी खाद को तैयार करने के लिए किसानों को ज्यादा खर्च भी नहीं करना पड़ता, किसान आसानी से खाली पड़े खेतों में हीर खाद तैयार कर सकते हैं. क्योंकि हरी खाद प्राकृतिक रूप से मिट्टी को सारे पोषक तत्व देती है इसलिए केमिकल उर्वरकों पर निर्भरता कम हो जाती है.
खरपतवार और कीट के रोकथाम में कारगर
हरी खाद की सबसे बड़ी खासियत है कि खेतों में लगने वाले कीट और खरपतवारों की रोकथाम में ये बेहद ही कारगर साबित होती है. कुछ हरी खाद ऐसी होती हैं जिनमें जो फसलों में जहरीले केमिकल छोड़ती हैं जो कि फसलों में लगने वाले खरपतवारों और कीटों को नष्ट करते हैं. इसके साथ ही हरी खाद मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद करती है जिसके कारण फसल को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती है. इस कारण से किसानों को पानी की बचत करमे में भी मदद होती है.