हरियाणा सरकार मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए ढैंचा की खेती को बढ़ावा दे रही है. इसके लिए किसानों को प्रति एकड़ 2000 रुपये प्रोत्साहन राशि दी जाती है. लेकिन किसान फर्जी तरीके से प्रोत्साहन राशि का लाभ उठा रहे हैं. हरियाणा कृषि और किसान कल्याण विभाग का कहना है कि ढैंचा फसल बोने के लिए किसानों द्वारा किए गए करीब 47 फीसदी दावों को गलत पाया गया है. कुल 26,942 एकड़ में से 12,788 एकड़ की जांच के बाद दावा खारिज कर दिया गया.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, हरियाणा सरकार दो महीने की फसल की बुवाई पर किसानों को प्रति एकड़ 2,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि देती है. लेकिन विभाग की ताजा रिपोर्ट से पता चला है कि राज्य के कई किसानों ने बिना फसल बोए ही इस योजना का लाभ उठाने की कोशिश की. जांच में यह सामने आया कि बड़ी संख्या में किसानों ने झूठे दावे किए हैं, जिससे योजना की पारदर्शिता और उद्देश्य पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
12,788 एकड़ क्षेत्र का दावा फर्जी निकला
रिपोर्ट के अनुसार, ढैंचा फसल के लिए कुल 28,171 एकड़ क्षेत्र का लक्ष्य रखा गया था. किसानों ने विभाग को 26,942 एकड़ भूमि पर ढैंचा बोने का दावा किया, लेकिन जांच में सिर्फ 14,184 एकड़ ही सही पाया गया. वहीं, 12,788 एकड़ क्षेत्र का दावा फर्जी निकला और उसे खारिज कर दिया गया.
मॉनिटरिंग के जरिए 26,942 एकड़ की जांच
जिन जिलों में सबसे ज्यादा फर्जी दावे सामने आए, उनमें सोनीपत (2,208 एकड़), मेवात (2,539 एकड़) और जींद (1,510 एकड़) प्रमुख हैं. कृषि विभाग ने 1,181 कर्मचारियों की मदद से 1,550 में से 1,457 गांवों में फील्ड इंस्पेक्शन और सैटेलाइट मॉनिटरिंग के जरिए 26,942 एकड़ की जांच की.
योजना का दुरुपयोग बड़े स्तर पर हुआ
अधिकारियों ने कहा कि इतने बड़े पैमाने पर दावों का खारिज होना इस बात का संकेत है कि योजना का दुरुपयोग बड़े स्तर पर हुआ है. कृषि विभाग के उप निदेशक डॉ. राजबीर सिंह ने कहा कि ऐसा लगता है कि कई किसानों ने ढैंचा की बुवाई किए बिना ही सब्सिडी के लिए गलत दावे किए ताकि उन्हें आर्थिक लाभ मिल सके.
80 फीसदी सब्सिडी पर बीज उपलब्ध
खास बात यह है कि कृषि विभाग ने बताया कि इस साल किसानों को ढैंचा की खेती के लिए 80 फीसदी सब्सिडी पर बीज उपलब्ध कराए गए हैं, ताकि मिट्टी की सेहत सुधारी जा सके और टिकाऊ खेती को बढ़ावा मिले. विशेषज्ञों के मुताबिक, ढैंचा एक हरी खाद वाली फसल है जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है और रासायनिक खादों पर निर्भरता कम करती है.