काली मिर्च की खेती को तगड़ा झटका, मौसम और बाजार दोनों ने छोड़ा साथ

काली मिर्च के बाजार में इस समय भारी मंदी देखी जा रही है. कोच्चि टर्मिनल बाजार में बिना गारबल्ड काली मिर्च की कीमत 666 रुपये प्रति किलो और एमजी1 किस्म की कीमत 686 रुपये प्रति किलो पर रुकी हुई है.

Kisan India
नई दिल्ली | Updated On: 17 Jul, 2025 | 02:03 PM

बारिश जहां किसानों के लिए राहत लेकर आती है, वहीं कभी-कभी ये आफत भी बन जाती है. इन दिनों भारत में लगातार हो रही भारी बारिश ने काली मिर्च की खेती और बाजार पर बुरा असर डाला है. खराब मौसम, विदेशी आयात और घटती मांग ने किसानों की चिंता को और बढ़ा दिया है. कोच्चि जैसे प्रमुख बाजारों में काली मिर्च की कीमतें स्थिर हो गई हैं, जिससे साफ है कि बाजार में सुस्ती का माहौल है.

मौसम ने बिगाड़ा बाजार का मिजाज

काली मिर्च के बाजार में इस समय भारी मंदी देखी जा रही है. कोच्चि टर्मिनल बाजार में बिना गारबल्ड काली मिर्च की कीमत 666 रुपये प्रति किलो और एमजी1 किस्म की कीमत 686 रुपये प्रति किलो पर रुकी हुई है. भारी बारिश के चलते न केवल सप्लाई बाधित हुई है, बल्कि उपभोक्ताओं की खरीद भी घट गई है.

विदेशी आयात ने घरेलू बाजार को किया कमजोर

बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, भारतीय काली मिर्च एवं मसाला व्यापार संघ (IPSTA) के निदेशक किशोर शामजी बताते हैं कि श्रीलंका और अन्य देशों से हो रहे सस्ते आयात ने घरेलू उत्पादों की मांग पर सीधा असर डाला है. उपभोक्ता केंद्रों पर विदेशी काली मिर्च 625-650 रुपये प्रति किलो में मिल रही है, जिससे भारतीय किसान और व्यापारी नुकसान में हैं. ताजा आंकड़ों के अनुसार, मई-जून 2025 में भारत ने करीब 7,000 टन काली मिर्च का आयात किया. इसमें से 1,100 टन सिर्फ श्रीलंका से आया, जिसने घरेलू कीमतों पर और भी दबाव बना दिया है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी असर

अमेरिका द्वारा काली मिर्च पर नया आयात शुल्क लगाने से वैश्विक बाजार भी प्रभावित हुआ है. वियतनाम, जो दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है, उसके निर्यात में 1.37 फीसदी की गिरावट आई है. भारत, वियतनाम से सबसे ज्यादा काली मिर्च आयात करने वाले देशों में से एक है.

श्रीलंका में देरी, भारत में उम्मीद

श्रीलंका में खराब मौसम के कारण फसल की कटाई में देरी हो रही है, जिससे वैश्विक आपूर्ति प्रभावित हो रही है. हालांकि भारत के प्रमुख उत्पादक राज्य केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में मौसम अनुकूल है और इस साल अच्छी फसल की उम्मीद है.

किसानों की गुहार

काली मिर्च उगाने वाले किसानों और संगठनों ने मसाला अनुसंधान संस्थानों और कृषि विश्वविद्यालयों से मांग की है कि वे घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नई योजनाएं बनाएं और किसानों को तकनीकी मदद दें.

बढ़ती खपत और घटता स्टॉक

बदलती खाने-पीने की आदतों के कारण दुनियाभर में काली मिर्च की मांग बढ़ी है. इससे न केवल स्टॉक घटा है, बल्कि भारत जैसे देश पर भी दबाव बढ़ा है जो उत्पादक भी है और उपभोक्ता भी.

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Published: 17 Jul, 2025 | 02:00 PM

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