आज के बदलते मौसम और जलवायु की स्थिति में किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है. ऐसे हालात में संरक्षित खेती (protected cultivation), खासकर पॉलीहाउस खेती, एक बेहतरीन विकल्प बनकर उभरी है. पॉलीहाउस में खेती करने से सब्जियों की गुणवत्ता बढ़ती है और सालभर उत्पादन भी संभव होता है. इन्हीं में एक प्रमुख फसल है खीरा (Cucumber), जिसकी मांग बाजार में हर मौसम बनी रहती है. इस फसल से किसान कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं, खासकर अगर किसान पार्थेनोकार्पिक (Parthenocarpic) खीरे की किस्में उगाएं.
बिना बीज के साथ ज्यादा उत्पादन
पॉलीहाउस में उगाने के लिए सबसे उपयुक्त किस्म मानी जाती है. पार्थेनोकार्पिक खीरे की खासियत यह है कि इसमें फल बनने के लिए परागण (pollination) की जरूरत नहीं होती. यानी बिना बीज के फल बनते हैं और पौधे की पूरी ऊर्जा फल बनाने में लगती है, बीज बनाने में नहीं. इससे उत्पादन ज्यादा होता है और फल की गुणवत्ता भी बेहतर होती है. लेकिन अब तक ये किस्में या तो निजी कंपनियों की होती थीं जो काफी महंगी दामों पर बिकती थी, या फिर सार्वजनिक क्षेत्र में इनकी कमी थी.
इस कमी को पूरा करने के लिए केरल के कृषि विश्वविद्यालय (KAU) ने, 2011 में एक प्रोजेक्ट शुरू किया था. इस प्रोजेक्ट के तहत वैज्ञानिकों ने खीरे की एक खास किस्म को विकसित किया है, जिसका नाम Parthenocarpic Cucumber Hybrid-1 (KPCH-1)है. यह किस्म पूरी तरह भारतीय परिस्थितियों में तैयार की गई है और इसे 2019 में केंद्र सरकार ने अधिसूचित भी किया. यह भारत की पहली सार्वजनिक क्षेत्र की पार्थेनोकार्पिक खीरे की किस्म है.
खीरे की नई किस्म की खासियतें
यह गाइनोइशियस है यानी सिर्फ मादा फूल बनते हैं, जिससे हर फूल फल में बदलता है. वहीं औसत वजन 240 ग्राम और लंबाई 20 सेमी होती है. एक पौधे से औसतन 4.21 किलो उपज मिलती है. इसके फल 7-8 दिन तक कमरे के तापमान पर ताजे बने रहते हैं. बता दें की देश के 15 अलग-अलग केंद्रों पर किए गए ट्रायल में केपीसीएच-1 ने कई स्थानों पर बेहतरीन प्रदर्शन किया, जैसे श्रीनगर (349.47 क्विंटल/हेक्टेयर), सोलन (320 क्विंटल/हेक्टेयर), और IIHR बेंगलुरु (277.4 क्विंटल/हेक्टेयर). इसके प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया है कि यह किस्म पैन-इंडिया लेवल पर किसानों के लिए प्राइवेट बीजों का सस्ता और बेहतर विकल्प बन सकती है. इसके साथ ही यह किस्म डाउन माइल्ड्यू रोग के प्रति भी सहनशील होती है.
बीमारियों से बचाव के लिए क्या करें
खीरे की बुआई के लिए अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से नवंबर के पहले सप्ताह का समय सबसे अच्छा माना जाता है. मिट्टी में 40 किलो चूना और बाद में 160 किलो पोल्ट्री खाद या 600 किलो गोबर खाद मिलाकर जमीन तैयार करें. बीजों को बोने से पहले इमिडाक्लोप्रिड या थायोमेथॉक्सम के घोल में 3 घंटे भिगोने के बाद बोएं. जैविक खेती के लिए नीम खली, वर्मी कंपोस्ट आदि मिलाकर नियमित रूप से दें. रासायनिक खाद के लिए 10 सेंट एरिया में 8.7 किग्रा यूरिया, 5 किग्रा फैक्टमफोस और 1.6 किग्रा पोटाश डालें फूल आते समय 19:19:19 का घोल या फिश अमीनो का स्प्रे करना फायदेमंद साबित हो सकता है.
बात करें सिंचाई की तो शुरुआत में दो दिन छोड़कर पानी दें और फल लगने पर एक दिन छोड़कर सिंचाई करें. गर्मी में पॉलीहाउस में फॉगर्स से नमी बनाए रखें. बीमारियों से बचाव के लिए पेसुडोमोनास फ्लोरेसेंस और नीम-लहसुन घोल का प्रयोग करें. फूल आने के 7-8 दिन बाद नरम फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं.