क्लाइमेट चेंज के असर ने खेती और हरियाली को बुरी तरह प्रभावित किया है. मैदानी इलाकों में कभी सूखा तो कभी तेज बारिश और अधिक तापमान के चलते बीते कई वर्षों से फसलों को नुकसान पहुंच रहा था, अब पहाड़ों में जलवायु बदलाव का असर देखा जा रहा है. सेब, आड़ू समेत दूसरे बागवानी फसलों को नुकसान पहुंचा है. जबकि, जम्मू कश्मीर में केसर, हिमाचल में सेब और आलू तो उत्तराखंड में आड़ू-खुमानी समेत अन्य फसलों के उत्पादन में भारी गिरावट देखी जा रही है. इसके साथ ही पहाड़ों में वन क्षेत्र और वनस्पतियों, जड़ी-बूटियों को खासा नुकसान पहुंचा है. इसके चलते अरावली पर्वतमाला भी बुरी तरह प्रभावित हुई है, क्षरण और घिसाव समेत अन्य नुकसान से बचाव के लिए केंद्र सरकार ने अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट की शुरुआत की है.
14 हजार किलोमीटर लंबी बनेगी ग्रीन वॉल
केंद्र सरकार ने अरावली पर्वतमाला को डिग्रेडेशन से बचाने के लिए अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट शुरू किया है. इसके अंतर्गत गुजरात के पोरबंदर से लेकर पानीपत तक 1400 किलोमीटर लम्बी और 5 किलोमीटर चौड़ी ग्रीन वॉल बनाई जाएगी. इसमें राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और दिल्ली के 29 जिले शामिल किए गए हैं. इस अरावली ग्रीन वाल कॉरिडोर में सर्वाधिक 19 जिले राजस्थान के शामिल होंगे. केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट 1400 किलोमीटर लंबा होगा. इससे अरावली को बचाने और पर्यावरण बचाने और जैव विविधता को बढ़ावा देने में मदद मिल सकेगी.
नए बीज डालकर 260 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि उपजाऊ बनेगी
रिपोर्ट के अनुसार अरावली पर्वतमाला में सर्वाधिक डिग्रेडेशन भी उदयपुर जिले में ही हुआ है. अकेले उदयपुर में अरावली पर्वतमाला में गुजरात, हरियाणा और दिल्ली से अधिक डिग्रेडेशन हुआ है. सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक भारत की 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि को पुनर्जीवित किया जाए और उत्तम जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त किया जाए. प्रोजेक्ट के तहत अरावली के ग्रीन वाल प्रोजेक्ट के तहत वन्य क्षेत्र को बढ़ाने के लिए नए बीज भी तैयार कर डाला जाएगा. जिससे पर्यावरण प्रदूषण को रोकने में मदद मिलेगी.
तेजी से खराब हो रहा मध्य भारत का फेफड़ा
अरावली विश्व की सबसे पुरानी पहाड़ी में से एक है. करीब 700 किलोमीटर फैले इस पहाड़ी को सेंट्रल इंडिया का फेफड़ा भी कहा जाता है. लेकिन अवैध अतिक्रमण, अवैध खनन, पेड़ो की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से अरावली को नुकसान हो रहा था. साल 1999-2019 के बीच अरावली के वन क्षेत्र में 0.9% की गिरावट आई है. साथ ही 1975 से शहरी विस्तार और खनन के कारण सेंट्रल रेंज में 32% की भारी गिरावट दर्ज की गई.
पौधों की संख्या बढ़ेगी-चेकडैम बनेंगे
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट 1400 किलोमीटर लंबा होगा. इससे अरावली को बचाने और पर्यावरण बचाने और जैव विविधता को बढ़ावा देने में मदद मिल सकेगी. वनों के नए बीज भी तैयार कर पर्यावरण अनुकूल वनारोपण और वृक्ष लगाए जा सकेंगे. भूपेंद्र यादव ने कहा कि अरावली पर्वतमाला को डिग्रेडेशन से बचाने के लिए केंद्र सरकार एक महत्वपूर्ण योजना शुरू करने जा रही है. इसके तहत दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक 1400 किलोमीटर लंबी व 5 किमी चौड़ी अरावली ग्रीन वॉल बनाने की तैयारी शुरू कर दी है. इसके तहत, अरावली पर्वतमाला में जैव विविधता बनाएं रखने के लिए पौधारोपण, चैक डेम निर्माण और औषधीय पौधे लगाने जैसे विकास कार्य करवाएं जाएंगे.
ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट का हिस्सा बनेंगे ये राज्य और शहर
इस परियोजना में राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और दिल्ली के 29 जिलोंवन को शामिल किया गया हैं. राजस्थान के चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, नागौर, अजमेर, भीलवाड़ा, जयपुर, भरतपुर, दौसा, उदयपुर, झुंझुनूं, सीकर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, सिरोही, पाली, राजसमन्द, सवाई माधोपुर, करौली और अलवर जिले इस महत्वपूर्ण योजना का हिस्सा होंगे.
अरावली पर्वतमाला बचाने में पहले चरण में 16 हजार करोड़ खर्च होंगे
राजस्थान के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन बल प्रमुख) अरिजीत बनर्जी ने अरावली ग्रीन वाल से संबंधित जिलों के उप वन संरक्षकों (डीएफओ)को आदेश जारी किए हैं. अरावली पर्वतमाला में सबसे ज्यादा डिग्रेडेशन उदयपुर में हुआ है. अरावली पर्वतमाला को बचाने के लिए केंद्र सरकार ने पहले चरण में 16,053 करोड़ रुपये का बजट जारी किया है. पहले चरण में 75 जलाशयों का सुधार भी होगा. चित्तौड़गढ़ उप वन संरक्षक के अधीन आने वाले बड़ीसादड़ी के सीता माता अभयारण्य का करीब 1500 हेक्टेयर क्षेत्र इस परियोजना में शामिल किया गया.