समुद्र मंथन के समय निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने पी लिया था. विष के प्रभाव से उनका शरीर अत्यधिक गर्म हो गया, जिसे शांत करने के लिए देवताओं ने उन पर निरंतर जल अर्पित किया. तभी से भोलेनाथ के जलाभिषेक की यह परंपरा चली आ रही है.
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, तांबा ऊर्जा को संतुलित करता है और इसे पवित्र धातु माना गया है. इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए तांबे के पात्र का ही उपयोग करें. प्लास्टिक, एल्यूमिनियम या स्टील का उपयोग वर्जित है.
गंगाजल, या किसी शुद्ध नदी का जल सर्वोत्तम माना गया है. घर का जल प्रयोग करें तो उसे पहले शुद्ध और शीतल कर लें. अशुद्ध, गर्म या बासी जल शिवलिंग पर नहीं चढ़ाना चाहिए.
मान्यता है कि भगवान शिव का मुख उत्तर दिशा की ओर होता है. इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय व्यक्ति का मुख उत्तर दिशा में होना चाहिए. इससे पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है.
जल चढ़ाने से पहले “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ त्र्यंबकं यजामहे” मंत्र का जप करें. इससे मन एकाग्र होता है और वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है.
केवल जल ही नहीं, बल्कि बेलपत्र, भांग, धतूरा, शमी पत्र, दूध, दही और शहद भी शिव को अर्पित किए जा सकते हैं. विशेष रूप से बेलपत्र शिवलिंग पर तीन पत्तियों वाले होने चाहिए और उल्टा नहीं चढ़ाना चाहिए. (इस खबर में दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान पर आधारित है.)