कम कीमतों से परेशान छोटे चाय किसान, अब CISTA ने केंद्र से की ये बड़ी अपील

छोटे चाय किसान आज 22 से 25 रुपये प्रति किलो की औसत कीमत पर हरी पत्तियां बेचते हैं, जबकि उनकी उत्पादन लागत ही 17 से 20 रुपये प्रति किलो है. यानि की किसानों को मुश्किल से 5 रुपये प्रति किलो का मुनाफा मिलता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Updated On: 10 Jul, 2025 | 02:31 PM

देश की चाय खेती का बड़ा हिस्सा छोटे किसानों के भरोसे चलता है. 52 फीसदी से ज्यादा चाय उत्पादन इन्हीं किसानों के खेतों से निकलता है. लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि ये किसान आज भी अपने पत्तों की सही कीमत तक नहीं पा पाते. यही वजह है कि अब छोटे चाय किसानों ने केंद्र सरकार से पारदर्शी दाम तय करने की व्यवस्था की मांग की है.

चाय तो हम उगाएं, मुनाफा कोई और ले जाए?

बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के अनुसार, कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन स्मॉल टी ग्रोअर्स एसोसिएशन (CISTA) ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को एक चिट्ठी भेजी है. इसमें किसानों ने सरकार से अपील की है कि एक ऐसा तंत्र तैयार किया जाए जिससे उन्हें उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिले जैसे किसानों को उनकी फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मिलता है.

लागत ज्यादा, मुनाफा कम-ये कैसा गणित?

CISTA अध्यक्ष बिजॉय गोपाल चक्रवर्ती के अनुसार, छोटे चाय किसान आज 22 से 25 रुपये प्रति किलो की औसत कीमत पर हरी पत्तियां बेचते हैं, जबकि उनकी उत्पादन लागत ही 17 से 20 रुपये प्रति किलो है. यानि की किसानों को मुश्किल से 5 रुपये प्रति किलो का मुनाफा मिलता है, वो भी तब, जब बाजार अनुकूल हो.

एजेंटों की कटौती, किसानों के हिस्से में घाटा

चक्रवर्ती ने बताया कि अक्सर एजेंट प्रति किलो 2 रुपये तक की कटौती कर लेते हैं, जिससे किसानों का मुनाफा और भी घट जाता है. किसानों की मांग है कि उन्हें प्रत्यक्ष रूप से फैक्ट्रियों को चाय पत्ती बेचने की सुविधा मिलनी चाहिए.

चाय बोर्ड से मांग

किसानों ने कहा है कि चाय बोर्ड को एक विस्तृत अध्ययन करना चाहिए ताकि यह तय हो सके कि फैक्ट्रियों और किसानों के बीच उचित मूल्य बंटवारा कैसे हो. उनका सुझाव है कि “श्रीलंका मॉडल” अपनाया जाए, जिसमें नीलामी मूल्य से अधिक मुनाफा दोनों के बीच समान रूप से बांटा जाता है.

“बेंचमार्क प्राइस” नहीं, कुल बिक्री से जुड़े मूल्य की मांग

CISTA का मानना है कि अब समय आ गया है कि पुराने बेंचमार्क प्राइस सिस्टम को खत्म किया जाए और उसकी जगह ऐसा मूल्य निर्धारण मॉडल हो, जो कुल बिक्री मूल्य से जुड़ा हो. इससे हर किसान को उसकी मेहनत के अनुरूप दाम मिल सकेगा.

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Published: 10 Jul, 2025 | 02:27 PM

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