उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के किसान इन दिनों खेत की जगह खाद की लाइन में खड़े हैं. कोई सिर पर गमछा डाले है, कोई खाली बोरी लेकर आया है. कोई अपने बीमार बूढ़े बाप को लाइन में लगा रहा है तो कोई सारा दिन काम-काज छोड़कर खड़ा है. बस एक आस में कि आज यूरिया मिल जाएगी. लेकिन हकीकत यह है कि कई घंटे खड़े रहने के बाद भी यूरिया नहीं मिल रही. भीड़ बढ़ती जा रही है, बोरी घटती जा रही है. किसान मायूस हैं, नाराज हैं, लेकिन मजबूर भी हैं.
इसी बीच लापरवाही की एक और तस्वीर सामने आई है. गोला गोकर्णनाथ रेलवे स्टेशन के रैक पॉइंट पर बारिश में 25 हजार बोरी यूरिया भीग गई. तिरपाल तो था, लेकिन बारिश की तेज बौछारों ने इंतजामों की पोल खोल दी. वीडियो लोगों के मोबाइल से होते हुए खबर बन चुका है, लेकिन अफसर अब जवाब देने के बजाय एक-दूसरे पर उंगली उठा रहे हैं.
किसान की सीधी बात है कि खाद नहीं मिली तो फसल गई, फसल गई तो आमदनी गई और आमदनी गई तो चूल्हा कैसे जलेगा, बच्चों का पेट कैसे भरेगा?
अफसरों की लापरवाही से बारिश में भीग गई यूरिया
उत्तर प्रदेश में यूरिया खाद की किल्लत से किसान परेशान हैं. इसी बीच लखीमपुर खीरी से बड़ी लापरवाही की तस्वीर सामने आई है. गोला गोकर्णनाथ रेलवे स्टेशन के रैक पॉइंट पर आई यूरिया की खेप बारिश में भीग गई. ये खाद ट्रांसपोर्ट के ज़रिए बी-पैक्स समितियों पर जानी थी, लेकिन तेज बारिश में बोरी-बोरी भीग गई. इसका वीडियो वायरल हो चुका है और अब अफसर एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालने में जुटे हैं.

गोला रैक पॉइंट पर आई यूरिया की रैक को लेकर जिला प्रबंधक ने दी जानकारी
25 हजार बोरी खाद नहीं पहुंची समिति तक
सहायक आयुक्त रजनीश प्रताप सिंह ने किसान इंडिया से बातचीत में बताया कि बुधवार को गोला रैक पॉइंट पर 2630 मीट्रिक टन यूरिया की रैक आई थी. इसमें से करीब 25,000 बोरियां समितियों पर भेजना बाकी थीं. लेकिन मोहर्रम की छुट्टी और मजदूर न मिलने की वजह से खाद को समय पर नहीं भेजा जा सका. तेज बारिश के कारण खाद को तिरपाल से ढका गया था, लेकिन उसके बावजूद कई बोरियां भीग गईं.
सुबह 5 बजे से लाइन में लगे किसान
धौरहरा ब्लॉक से एक और वीडियो सामने आया है जिसमें दिख रहा है कि सुबह 5 बजे से किसान खाद के लिए लाइन में खड़े हैं. लेकिन यूरिया मिल नहीं रही. ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि जब सरकार कहती है कि खाद की कमी नहीं है तो फिर किसान क्यों परेशान हैं?
खेती अब बन गई है रोज की जद्दोजहद
इसके पहले भी लखीमपुर खीरी के पसगवां ब्लॉक में हालात अच्छे नहीं थे. जुलाई की तपती सुबह में औरंगाबाद बी-पैक्स केंद्र के बाहर किसानों की लंबी कतारें दिखीं. कोई सिर पर गमछा डाले खड़ा था तो कोई अपने बूढ़े पिता को लाइन में लगाकर खुद इंतजार कर रहा था. सुबह से शाम हो जाती, फिर भी यूरिया नहीं मिलती. हर दिन की तरह उस दिन भी कई किसान मायूस लौटे. इतना ही नहीं खेतों में धान और गन्ना सूखने लगे हैं. किसानों का कहना है कि अब खेती सिर्फ मेहनत नहीं, रोज की लड़ाई बन गई है.

यूरिया के लिए लाइन में किसान, वहीं बारिश में भीगती पड़ी हजारों बोरी खाद.
पिता को लाइन में लगाया फिर भी नहीं मिली खाद
कठकोरवा गांव के किसान गुरजीत सिंह ने बताया कि उन्होंने 12 एकड़ में धान की रोपाई की है, लेकिन यूरिया नहीं मिल रही. इतना ही नहीं उनका कहना है कि मैं खुद लाइन में लगता हूं, बूढ़े और बीमार पिता को भी लाना पड़ता है, फिर भी खाली हाथ लौटना पड़ता है. वहीं, प्राइवेट दुकानों पर या तो खाद है ही नहीं और अगर है तो मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं. नैनो यूरिया कोई असर नहीं कर रहा, दानेदार यूरिया है ही नहीं. गुरजीत कहते हैं कि अब तो लगने लगा है खेती करना घाटे का सौदा हो गया है.
फसल गई तो घर भी डूबेगा
गुरजीत सिंह कहते हैं कि बीज महंगे हैं, मजदूरी बढ़ गई है, ऊपर से बच्चों की फीस और बैंक का कर्ज भी देना है. अगर वक्त पर खाद नहीं मिली तो फसल बर्बाद होगी और अगर फसल गई तो बच्चों की पढ़ाई से लेकर घर का चूल्हा सब ठप पड़ जाएगा. किसान अमरिंदर सिंह ने बताया कि वो एक हफ्ते से बी-पैक्स के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन अभी तक खाद नहीं मिली. उनके गन्ने की फसल कमजोर होती जा रही है.
प्रशासन के दावे, किसान की परेशानी
सहायक निबंधक रजनीश प्रताप सिंह का कहना है कि जिले की 129 समितियों को लगातार खाद भेजी जा रही है. हाल ही में गोला रैक पॉइंट पर 2674 मीट्रिक टन यूरिया आई है. वहीं कृषि अधिकारी सूर्यप्रताप सिंह ने बताया कि निजी दुकानों के लिए अभी तक खाद की कोई रैक नहीं आई, इसलिए वहां सप्लाई नहीं हो पा रही है. खुदरा कृषि व्यापारी संघ के अध्यक्ष संदीप शुक्ला ने चेतावनी दी कि अगर दो दिन में सप्लाई नहीं सुधरी तो किसान और व्यापारी आंदोलन करेंगे. लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.