पीली हल्दी को टाटा-बाय बाय, अब नीली हल्दी से किसान कमा रहे लाखों

इसकी औषधीय ताकत ने इसे भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका, जर्मनी, जापान और सिंगापुर जैसे देशों के बाजारों में भी लोकप्रिय बना दिया है. यही वजह है कि नीली हल्दी की बाजार में कीमत और मांग दोनों लगातार बढ़ रही हैं, जिससे किसानों को बंपर मुनाफा मिल रहा है.

नई दिल्ली | Updated On: 10 Jul, 2025 | 05:28 PM

अब हल्दी का मतलब सिर्फ पीली हल्दी ही थी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हल्दी की एक ऐसी किस्म भी होती है जो दिखने में काली, लेकिन अंदर से नीली होती है? जी हां, हम बात कर रहे हैं नीली हल्दी (Blue Turmeric) की, जिसे कई जगह काली हल्दी भी कहा जाता है. यह हल्दी अब भारत के किसानों के लिए नई कमाई का जरिया बन रही है. इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है, खासकर आयुर्वेदिक दवा कंपनियों और विदेशी बाजारों में. तो चलिए जानते हैं कैसे ये हल्दी पीली हल्दी से अलग है.

क्यों है खास नीली हल्दी

  • नीली हल्दी एक दुर्लभ और लाभकारी किस्म की औषधीय जड़ी-बूटी है, जो धीरे-धीरे भारत में किसानों के बीच लोकप्रिय होती जा रही है. यह खाने में उपयोग नहीं होती, बल्कि इसका प्रमुख इस्तेमाल आयुर्वेद, यूनानी और आधुनिक हर्बल दवाओं में होता है.
  • इस हल्दी में मौजूद कर्क्यूमिन, टरमरोन, और अन्य जैव सक्रिय तत्व इसे कई गंभीर बीमारियों के इलाज में कारगर बनाते हैं. इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण शरीर को संक्रमणों से लड़ने में मदद करते हैं.
  • इसका प्रयोग कैंसर विरोधी दवाओं, सांस की बीमारी, त्वचा रोग, हड्डियों की सूजन, ब्लड प्योरीफायर, और इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए किया जाता है. इसकी गंध तेज और मिट्टी जैसी होती है, जो इसे असली औषधीय पहचान देती है.
  • बाहरी तौर पर नीली हल्दी काली या गहरे भूरे रंग की दिखती है, लेकिन जैसे ही आप इसे काटते हैं, अंदर से इसका रंग नीला या बैंगनी दिखाई देता है. यही नीला रंग इसे विशेष और कीमती बनाता है. जब इसे सुखाया जाता है, तो इसका रंग और गहरा हो जाता है और इसीलिए कई लोग इसे काली हल्दी के नाम से भी जानते हैं.

खेती आसान नहीं, लेकिन फायदेमंद जरूर

नीली हल्दी की खेती थोड़ी सावधानी मांगती है. इसे हर तरह की मिट्टी में नहीं उगाया जा सकता. इसके लिए सबसे उपयुक्त होती है भुरभुरी दोमट मिट्टी और ढलान वाली जमीन, ताकि खेत में पानी जमा न हो पाए. क्योंकि इस हल्दी की सबसे बड़ी कमजोरी है और पानी लगते ही जल्दी सड़ जाती है. इसलिए जिन इलाकों में ढलान या जलनिकासी अच्छी हो, वहां के किसान इसे आसानी से उगा सकते हैं.

मुनाफा दुगुना, दाम सुनकर चौंक जाएंगे

जहां एक तरफ पीली हल्दी की कीमत बाजार में 100 से 150 रुपये प्रति किलो तक होती है, वहीं नीली हल्दी की कीमत 500 से 3000 रुपये प्रति किलो तक जाती है, वो भी मांग के अनुसार. वहीं एक एकड़ खेत में इसकी उपज 12 से 15 क्विंटल तक हो सकती है. यानी कम जमीन में भी अच्छी कमाई मुमकिन है. सिर्फ इतना ही नहीं, दवा कंपनियां और निर्यातक किसान से सीधे संपर्क करके अग्रिम ऑर्डर भी देने लगे हैं.

औषधीय गुणों के कारण भारी डिमांड

नीली हल्दी कोई साधारण फसल नहीं है, बल्कि इसे औषधीय दृष्टिकोण से बेहद कीमती माना जाता है. इसका उपयोग खासकर कैंसर रोधी दवाओं, सांस और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों, त्वचा संबंधी उपचारों और हड्डियों में होने वाली सूजन या दर्द की दवाओं में बड़े पैमाने पर किया जाता है. यही कारण है कि इसके प्रति दवा कंपनियों और हर्बल उद्योगों में गहरी दिलचस्पी देखी जा रही है.

इसकी औषधीय ताकत ने इसे भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका, जर्मनी, जापान और सिंगापुर जैसे देशों के बाजारों में भी लोकप्रिय बना दिया है. यही वजह है कि नीली हल्दी की बाजार में कीमत और मांग दोनों लगातार बढ़ रही हैं, जिससे किसानों को बंपर मुनाफा मिल रहा है.

Published: 10 Jul, 2025 | 03:36 PM