आलू उत्पादन में नीदरलैंड-बेल्जियम को पीछे छोड़ेगा यूपी, गर्मी झेलने वाली किस्में विकसित होंगी

आगरा आलू केंद्र में अधिक उपज देने वाली अलग अलग कृषि जलवायु क्षेत्र (एग्रो क्लाइमेट जोन) के लिए आलू की विविध प्रजातियों का विकास किया जाएगा. ये प्रजातियां रोगों एवं कीटों के प्रति प्रतिरोधी होंगी.

नोएडा | Updated On: 28 Jun, 2025 | 06:44 PM

उत्तर प्रदेश आलू उत्पादन में नीदरलैंड और बेल्जियम जैसे देशों को पीछे छोड़ेगा. क्योंकि,  आगरा के सिंगना में बन रहे अंतराष्ट्रीय आलू केंद्र (CIP) के लिए योगी सरकार 10 एकड़ जमीन दे चुकी है. केंद्रीय कैबिनेट ने इसके लिए 111.50 करोड़ रुपए की मंजूरी भी कर दिए हैं. पेरू की राजधानी स्थित CIP के लिए आगरा का यह केंद्र दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय केंद्र के रूप में काम करेगा. इस केंद्र में अधिक उपज देने वाली अलग अलग कृषि जलवायु क्षेत्र (एग्रो क्लाइमेट जोन) के लिए आलू की विविध प्रजातियों का विकास किया जाएगा. ये प्रजातियां रोगों एवं कीटों के प्रति प्रतिरोधी होंगी. फोर्टीफाइड कर पोषण के लिहाज से भी इनको और संपन्न बनाया जाएगा. वैश्विक स्तर के इस केंद्र में होने वाले शोध और इन्नोवेशन का लाभ सिर्फ आलू को ही नहीं अन्य कंद वर्गीय सब्जियों को भी मिलेगा.

सर्वाधिक खाई जाने वाली सब्जी है आलू

आलू दुनिया के लगभग हर देश में होने वाली और सबसे अधिक खाई जाने वाली सब्जी है. यह बहुपयोगी है. इसे उबालकर, तलकर, भूनकर या मैश करके खाया जाता है. स्नैक्स, चिप्स, पापड़, नमकीन के रूप में भी इसका उपयोग होता है. वोदका और इथेनॉल के रूप में इसकी संभावना और बढ़ जाती है. बिना आलू के न किसी सब्जी, न किसी किचन की कल्पना की जा सकती है. बाकी सब्जियों की तुलना में अपेक्षा सस्ता होना और साल भर उपलब्धता इसे और खास बना देती है. इन्हीं खूबियों के नाते आलू को किंग ऑफ वेजिटेबल्स (सब्जियों का राजा) भी कहते हैं. योगी सरकार ने इस राजा का जलवा बढ़ाने की मुकम्मल तैयारी की है. आगरा में अंतरराष्ट्रीय आलू अनुसंधान केंद्र और सहारनपुर एवं कुशीनगर में खुलने वाले एक्सीलेंस सेंटर इसका जरिया बनेंगे.

देश का एक तिहाई से अधिक आलू पैदा करता है यूपी

आलू के उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश देश में नंबर वन है. देश की कुल उपज का एक तिहाई से अधिक करीब (35 फीसद) यूपी में पैदा होता है. उपज भी देश की प्रति हेक्टेयर औसत से अधिक करीब 23 से 25 टन है. उपज और बढ़ने की पूरी संभावना है. इसमें दिक्कत बस आलू के क्षेत्र में प्रदेश के कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुसार शोध और नवाचार की कमी और जो शोध हो रहे हैं. उनको किसानों तक पहुंचाने की रही है.

दिक्कतें जिनका योगी सरकार कर रही हल

राष्ट्रीय आलू अनुसंधान केंद्र शिमला (हिमाचल) में है. इसके सिर्फ दो रीजनल केंद्र मेरठ एवं पटना में हैं. इनके जरिये इस क्षेत्र में होने वाले शोध और नवाचार को लैब से लैंड तक पहुंचने में दिक्कत होती है और समय भी लगता है. बोआई के सीजन में उन्नतिशील प्रजातियों के बीज की किल्लत आम बात है. लिहाजा किसान जो आलू कोल्ड स्टोरेज में रखता है उसे ही हर साल बोना मजबूरी है. योगी सरकार किसानों की इस समस्या का प्रभावी और स्थाई हल निकलने जा रही है. आगरा जिसके आसपास के मंडलों और जिलों में आलू की सर्वाधिक खेती होती है, वहां अंतरराष्ट्रीय आलू अनुसंधान संस्थान पेरू (लीमा) की शाखा खोलने की प्रकिया जारी है. इसमें होने वाले शोध एवं नवाचार से यहां के लाखों आलू उत्पादक किसान लाभान्वित होंगे.

अधिक गर्मी झेलने वाली आलू किस्में तैयार होंगी

अंतरराष्ट्रीय स्तर के संस्थान और एक्सीलेंस सेंटर से किसानों को होने वाला लाभ गोरखपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ सब्जी वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह के अनुसार इन केंद्रों के जरिये किसान कम समय में अधिक तापमान सहने वाली और अधिक उपज वाली प्रजातियों के बारे में जागरूक होंगे. स्थानीय स्तर पर बोआई के सीजन में बीज की उपलब्धता होने पर वह बाजार की मांग के अनुसार प्रजातियों को लगाएंगे. इससे उनकी आय भी बढ़ेगी. उनको यह पता चलेगा कि मुख्य और अगैती फसल के लिए कौन सी प्रजातियां सबसे बेहतर हैं. मसलन कुफरी नीलकंठ में शुगर की मात्रा कम होती है, पर बीज की उपलब्धता बड़ी समस्या है. ऐसे ही अधिक तापमान के प्रति सहनशील कुफरी शौर्या, मात्र 60 से 65 दिन में होने वाली प्रजाति कुफरी ख्याति और प्रसंस्करण के लिए उपयोगी कुफरी चिपसोना प्रजातियों के साथ भी उपलब्धता का संकट है. शोध संस्थान इस दिक्कत को दूर करने में मददगार होंगे.

नीदरलैंड, बेल्जियम को पीछे छोड़ेगा यूपी

किसी फसल के उत्पादन में वहां की कृषि जलवायु, मिट्टी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, पर बेहतर प्रजातियों की उपलब्धता और आधुनिक तकनीक को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते. इन्हीं के जरिये यूरोप के कई देश मसलन नीदरलैंड, बेल्जियम, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड आदि प्रति हेक्टेयर 38 से लेकर 44 मीट्रिक टन आलू पैदा कर रहे हैं. नए शोध केंद्रों की नई प्रजातियों और नई तकनीक के जरिये अब भी उपज के बढ़ाने की भरपूर संभावना है. सर्वाधिक आबादी वाला प्रदेश होने के नाते अपनी जरूरत के अनुसार निर्यात की संभावनाओं के लिए भी यह जरूरी है. सरकार यह काम कर रही है.

Published: 28 Jun, 2025 | 06:44 PM