भारत में कृषि सुधार की चर्चा बरसों से होती आ रही है. सवाल ये है कि जमीनी तौर पर कृषि सुधार कितने कारगर साबित हो रहे है. भारतीय किसान न केवल राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा के पहरेदार है, बल्कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार का प्रमुख आधार है. लेकिन फिलहाल स्थिति ये है कि सरकार फिर कपास को डयूटी फ्री करने को बाध्य हो गई हैं. अमरीकी कपास के दाम यहां की फसल से 15-20 रुपए सस्ते पड़ेंगे. जाहिर है, हमारे किसानों को नुकसान होगा. हालांकि, कपड़ा उद्योग फायदे में रहेगा.
वहीं खेती –किसानी आज खाद संकट से परेशान है. साथ ही घटिया खाद भी एक बड़ी वजह है. क्वालिटी बीज और कीटनाशकों का ना मिलने से भी बर्बादी के कगार पर है. ये समस्या अब छिटपुट नहीं रही, बल्कि यह एक संगठित और गहरी साजिश बन गई है जिसमें कई स्तरों पर भ्रष्टाचार और प्रशासनिक उदासीनता स्पष्ट रूप से झलकती है. केंद्र सरकार के “विकसित कृषि संकल्प अभियान” के पीछे का सच यह है कि किसान को नकली उत्पाद बेचा जा रहा है. हाल के समय में केंद्र और राज्य सरकारों ने कृषि को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ चलाईं, जिनमें ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ एक प्रमुख पहल है. इस अभियान का उद्देश्य किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज, खाद और कीटनाशक उपलब्ध कराना था ताकि कृषि उपज में सुधार हो. लेकिन ज़मीनी सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है. कई राज्यों के किसान शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें नक़ली या अमानक गुणवत्ता वाली सामग्री थमा दी जाती है. इससे फसलें या तो पूरी तरह बर्बाद हो जाती हैं या उपज बेहद कम होती है.
देश के कई राज्यों में नक़ली खाद और बीज का कुचक्र खुलेआम चल रहा है. नक़ली खाद, बीज और कीटनाशक का जाल कई छोटे–बड़े शहरों और गांवों में फैल चुका है. किसान जब स्थानीय दुकानों से उत्पाद खरीदते हैं, तो उन पर ‘सरकारी सब्सिडी’ और ‘सरकारी ब्रांडिंग’ का लेबल और देश के प्रधानमंत्री का फ़ोटो होता है, जिससे उन्हें भ्रम होता है कि यह प्रमाणिक माल है. लेकिन बुआई के कुछ ही हफ्तों बाद जब फसलें सूखने लगती हैं या कीड़ों से तबाह हो जाती हैं, तब उन्हें असलियत का पता चलता है. ऐसे कई मामले हैं जहाँ किसानों ने बैंकों और साहूकारों से ऋण लेकर खेती शुरू की, लेकिन खराब उत्पाद के चलते फसल चौपट हो गई और किसान कर्ज़ में डूब गया. किसानों का कहना है कि नक़ली खाद–बीज बेचने वाले विक्रेताओं पर न के बराबर कार्रवाई होती है. अधिकतम मामूली जुर्माना लगाकर उन्हें छोड़ दिया जाता है. ये लोग कुछ दिन शांत रहकर फिर से वही कारोबार शुरू कर देते हैं.
सरकार इसका समाधान और उपाय करें, साथ ही किसानों से नीतिगत और व्यवहारिक सुझाव लें। नक़ली बीज और खाद बेचने वालों पर आईपीसी की धारा 420 के तहत कठोर कार्रवाई की जाए, जिसमें सज़ा और लाइसेंस रद्द करने की व्यवस्था हो. किसानों को क्षतिपूर्ति तत्काल हो, सरकार को ऐसे मामलों में त्वरित जांच कर किसानों को आर्थिक मुआवज़ा देना चाहिए। ताकि उनको बर्बादी से बचाया जा सके. उत्पाद बेचने वालो को देनी होगी प्रामाणिकता की गारंटी. सरकार को चाहिए कि कृषि उत्पादों की गुणवत्ता जांचने की एक स्वतंत्र और पारदर्शी प्रणाली स्थापित करे. जमीनी तौर पर इस पर काम करने की जरुरत है.
हालांकि सरकार ने कृषि सुधार के लिए कई नीतियां और योजनाएं बनाई और लागू करने की कोशिश की है-
- राष्ट्रीय कृषि नीति (2000)- उद्देश्य: टिकाऊ कृषि विकास, किसानों की आय में वृद्धि, और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना.
- 2020 की कृषि सुधार नीतियाँ (तीन कृषि कानून – बाद में निरस्त)
- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम
- कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन समझौता
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM)
- एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन नीति
- उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना – उद्देश्य: धान, गेहूं, दालों, मोटे अनाजों का उत्पादन बढ़ाना.
प्रमुख कृषि योजनाएं
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN)
हर पात्र किसान को ₹6000 प्रति वर्ष सीधे बैंक खाते में.
3 किश्तों में ₹2000-₹2000-₹2000.
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
फसलों को प्राकृतिक आपदा, कीट या रोग से होने वाले नुकसान से बीमा सुरक्षा.
किसानों को कम प्रीमियम पर बीमा.
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
“हर खेत को पानी” का लक्ष्य.
सूक्ष्म सिंचाई (ड्रिप और स्प्रिंकलर) को बढ़ावा.
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY)
कृषि और संबंधित क्षेत्रों में राज्यों को लचीलापन और संसाधन देना.
ई-नाम (e-NAM)
राष्ट्रीय कृषि बाजार – कृषि उत्पादों के लिए एक ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म.
किसान क्रेडिट कार्ड (KCC)
किसानों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना.
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना
किसानों को उनकी भूमि की मिट्टी की गुणवत्ता के बारे में जानकारी देना.
कृषि यांत्रिकीकरण उप-मिशन (SMAM)
आधुनिक कृषि यंत्रों पर सब्सिडी और प्रशिक्षण.
राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM)
फल, फूल, मसाले, औषधीय पौधों की उपज को बढ़ावा देना.
हाल की पहलें और तकनीकी प्रयोग: डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन (2021-25)
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन आदि का प्रयोग.
- कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (AIF)
- कृषि क्षेत्र में भंडारण, कोल्ड स्टोरेज, सप्लाई चेन के लिए ऋण सुविधा.
- आत्मनिर्भर कृषि योजना
आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाना
दरअसल हर चुनाव से पहले राजनीतिक दल किसानों को लेकर बड़े–बड़े वादे करते हैं जैसे कर्ज़माफी, फसल बीमा, एमएसपी, आधुनिक कृषि उपकरण आदि के वादे. लेकिन नेताओं द्वारा किए गए इन वादों का चुनाव जीतने के बाद सारा उत्साह ‘विकास’ के दूसरे अर्थों में सिमट जाता है. आज किसान की पीड़ा पर न तो संसद में गंभीर बहस होती है और न ही मीडिया में उसे वह स्थान मिलता है जो किसी पूंजीपति, व्यापारी या फिल्मी सितारे की खबर को मिलता है.
नीति बनाने वालों के लिए कुछ अहम सुझाव है-
- “फसल विविधीकरण: दालों, तिलहन, बागवानी को प्रोत्साहित करें.
- बेहतर एमएसपी कवरेज: पहुंच और पारदर्शिता का विस्तार करें.
- सिंचाई में निवेश बढ़ाएं
- बेहतर एमएसपी कवरेज: पहुंच और पारदर्शिता का विस्तार करें.
- एग्री–टेक और डिजिटल टूल: एआई, सेंसर, मौसम के पूर्वानुमान का उपयोग.
- किसान उत्पादक संगठन (FPOS): सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति.
- फसल बीमा: व्यापक कवरेज और समय पर भुगतान (PMFBY सुधार).
- कृषि–प्रसंस्करण और मूल्य जोड़: खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा देना.
ग्रामीण गैर-कृषि रोजगार: कृषि पर दबाव कम करें
किसान की परेशानी को नीति और निर्णय की प्राथमिकता बनाना होगा. अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को पौष्टिक खाने से वंचित कर देंगे. दरअसल नक़ली खाद और बीज जैसे विषय केवल कृषि मंत्रालय या ‘कृषि विभाग’ तक सीमित नहीं रह सकते; यह राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और अर्थव्यवस्था से जुड़ा मसला है. जानकारों का मानना है कि सरकार को अब घोषणाओं से ऊपर उठकर सच्चे अर्थों में ‘किसान हित सर्वोपरि’ साबित करना होगा. “जब तक खेतों में हल चलेगा, तब तक भारत का भविष्य सुरक्षित रहेगा. लेखक- सीनियर कंसल्टिंग एडिटर हैं.