एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की खूनी कहानी, जिसमें हुआ था एक सुपर स्टार का मर्डर

पृथीपाल सिंह पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के साथ जुड़े. इस बीच उनके विद्रोही तेवर बरकरार रहे. इमरजेंसी के समय वह जेल गए. लेकिन दिलचस्प यह है कि इन आंदोलन और विद्रोह का साथ देने वाले पृथीपाल अपनी यूनिवर्सिटी में पूरी तरह का अनुशासन चाहते थे.

शैलेश चतुर्वेदी
नोएडा | Updated On: 28 Aug, 2025 | 02:18 PM

कहानी पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की है. हम सब जानते हैं कि यूनिवर्सिटी का देश की खेती में योगदान है. ‘एग्रीकल्चर माइंड’ यहां से निकलते हैं. छह दशक से ज्यादा समय हो गया इस यूनिवर्सिटी को. खेती के साथ तो इस यूनिवर्सिटी का जुड़ाव होना लाजमी है, क्योंकि यह बनी ही खेती के लिए है. लेकिन एक ऐसी कहानी भी है, जो चार दशक पुरानी होने के बावजूद इस यूनिवर्सिटी के साथ जुड़ी हुई है. थोड़ी धुंधली पड़ गई है, इस पर धूल जम गई है. लेकिन कहानी बेहद जरूरी है. इसमें कत्ल है, इसलिए दिलचस्प कहना ठीक नहीं. इस कहानी में राजनीति है, छात्र आंदोलन हैं. एक सुपर स्टार खिलाड़ी का भी इस कहानी में रोल है. कहानी का अंत एक मर्डर से होता है, जिसकी गुत्थी आज तक नहीं सुलझी है.

कहानी का क्लाइमैक्स 20 मई 1983 का है. इस दिन उस सुपर स्टार का कत्ल हुआ, जिसने भारत को गोल्ड सहित तीन ओलिंपिक मेडल दिलाए. दुनिया के बेहतरीन खिलाड़ियों में शुमार होने वाले पृथीपाल सिंह की कहानी है ये, जो पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से जुड़ी हुई है.

जानिए कौन थे पृथीपाल सिंह

सबसे पहले पृथीपाल के बारे में जान लेते हैं. यह आज की जेनरेशन के लिए जानना जरूरी है. खेती की पढ़ाई करना चाहते थे. पोस्ट ग्रेजुएट हुए. हिसार यूनिवर्सिटी से जुड़े और फिर लुधियाना में एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट वेलफेयर डीन हो गए. इससे पहले उन्होंने 1960 से लेकर 1968 तक तीन ओलिंपिक खेले. वह दौर जब हॉकी देश का नंबर एक खेल होता था. उन्हें दुनिया के बेस्ट खिलाड़ियों में शुमार किया जाता था. उनकी हिट की ताकत से दुनिया थर्राती थी. तीनों ओलिंपिक में उनके मेडल थे. रंग अलग-अलग थे. 60 में सिल्वर, 64 में गोल्ड और 68 में ब्रॉन्ज.

एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की तरफ आने से पहले यह भी जान लेना चाहिए कि पृथीपाल का जन्म 1930 में ननकाना सिहिब में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. विभाजन के समय परिवार को अपना घर छोड़कर पराए शहर में आना पड़ा. घर छोड़ने की कसक पृथीपाल में जिंदगी भर रही. 1960 ओलिंपिक के फाइनल में हारने के बाद उन्होंने कहा भी- आज मैं फिर ननकाना हार गया.

70 के दशक में एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से जुड़े

विभाजन की कसक और खेल दुनिया में राज करने के बाद की कहानी 1970 के दशक की है. पृथीपाल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के साथ जुड़े. इस बीच उनके विद्रोही तेवर बरकरार रहे. इमरजेंसी के समय वह जेल गए. लेकिन दिलचस्प यह है कि इन आंदोलन और विद्रोह का साथ देने वाले पृथीपाल अपनी यूनिवर्सिटी में पूरी तरह का अनुशासन चाहते थे. तब तक 80 का दशक आ गया था. यही वह वक्त था, जब पंजाब का माहौल भी बदल रहा था. स्टूडेंट यूनियन के साथ पृथीपाल के टकराव हुए. इस टकराव को पत्रकार और लेखक संदीप मिश्रा ने अपनी किताब Gunned Down, The Murder of an Olympic Champion में बहुत अच्छी तरह दर्शाया है. यह किताब कुछ दिन पहले आई है और एमेजॉन पर उपलब्ध है.

स्टूडेंट यूनियन के साथ उनकी झड़पें, तनाव सार्वजनिक था. ज्यादातर समय झड़प की वजह पृथीपाल का अनुशासन को तरजीह देना था. किसी भी कीमत पर अनुशासित करने की जिद युवाओं को अखरी. उनके तरीकों के खिलाफ आवाज उठने लगी. आवाज उठाने वालों में एक नाम था पृथीपाल सिंह रंधावा, जिसे किडनैप किया गया और हत्या कर दी गई. सीधे तौर पर तो नहीं, लेकिन ओलिंपियन पृथीपाल पर भी उंगलियां उठीं. उसके बाद यूनिवर्सिटी के अंदर दो पक्षों के बीच गोलीबारी में एक हत्या और हुई.

न ज्यादातर छात्र साथ थे, न प्रशासन

पृथीपाल की समस्या यह भी थी कि एक तरफ स्टूडेंट यूनियन उनसे नाराज था, तो दूसरी तरफ प्रशासन. प्रशासन के भ्रष्टाचार को वो सामने लाना चाहते थे. विरोध बढ़ा. इस कदर बढ़ा कि 20 मई 1983 को उनकी हत्या कर दी गई. वो भी यूनिवर्सिटी कैंपस के अंदर. माना जाता है कि तीन लोग हत्या के लिए जिम्मेदार थे. दो ने उन पर गोलियां चलाईं.

1983 में जब हत्या हुई, तब भी हॉकी इस देश का नंबर एक खेल था. लेकिन उस पूरी जांच में जिस तरह की कोताही की गई, उससे देश के सिस्टम को समझा जा सकता है. अगर ट्रिपल ओलिंपियन के केस को ऐसे हैंडल किया गया, जिसमें कोई भी दोषी साबित नहीं हो पाया, तो आम लोगों का क्या होता होगा, समझा जा सकता है. एक आरोपी बछित्तर सिंह ने कोर्ट में आत्म समर्पण किया और पुलिस को बताया कि मर्डर वेपन कहा हैं. हथियार मिल भी गए. लेकिन बछित्तर ने बाद में बयान बदला और पुलिस साबित नहीं कर पाई कि उसका हत्या में हाथ है. पुलिस ने सबूतों के अभाव में उसे और बाकी दो आरोपियों को बरी कर दिया. इस हत्या को 42 साल हो गए हैं. पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के ज्यादातर छात्रों को इस कहानी का अंदाजा नहीं होगा. वो खूनी कहानी, जो इस यूनिवर्सिटी में 80 के दशक की शुरुआत में खेली गई थी.

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Published: 28 Aug, 2025 | 11:11 AM

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