भारत में जब पशुपालन की बात होती है तो अक्सर गाय, भैंस और बकरी का नाम लिया जाता है. लेकिन एक ऐसा पशु भी है, जिसकी आबादी चुपचाप करोड़ों में पहुंच गई है, वो है सुअर. 2019 के आंकड़ों के मुताबिक, असम भारत का ऐसा राज्य बनकर उभरा है, जहां सबसे ज़्यादा सुअरों की संख्या दर्ज की गई. देश में कुल सूअर आबादी भले 12 फीसदी घटी हो, लेकिन पूर्वोत्तर के राज्यों में इसका क्रेज कम नहीं हुआ. खास बात ये है कि इस पशु से कम खर्च में ज्यादा कमाई होती है, इसीलिए अब लोग सुअर पालन की ओर आकर्षित हो रहे हैं.
असम बना सुअरों का गढ़
2019 की पशुगणना के अनुसार असम में 2 मिलियन से ज्यादा सुअर थे, जो देश में सबसे अधिक है. इसके बाद झारखंड और मेघालय का स्थान आता है. इन तीनों राज्यों ने सुअर पालन को सिर्फ जीविका का साधन ही नहीं, बल्कि रोजगार के रूप में भी अपनाया है. पूर्वोत्तर के कई हिस्सों में यह परंपरागत पेशा रहा है. लेकिन अब इसमें आधुनिक नस्लों और तकनीकों का उपयोग कर इसे व्यवस्थित तरीके से किया जा रहा है. बिहार, नागालैंड, मिजोरम और कर्नाटक में भी सुअर पालन तेजी से बढ़ रहा है.
कम खर्च, ज्यादा मुनाफा
सुअर पालन की सबसे बड़ी खासियत है इसका कम लागत में अधिक उत्पादन देना. इन्हें पालने के लिए न तो बहुत ज्यादा जगह की जरूरत होती है, न ही महंगे चारे की. घुंगरू , नियांग मेघा और निकोबारी जैसी नस्लें तेजी से बढ़ती हैं और इनसे ज्यादा मांस प्राप्त होता है. इसके अलावा, एक मादा सुअर साल में दो बार 8 से 10 बच्चे देती है, यानी एक साल में 16 से 20 तक सुअर पैदा हो सकते हैं. यही वजह है कि किसानों के बीच यह व्यवसाय लोकप्रिय होता जा रहा है.
सिर्फ मांस नहीं, कई और फायदे
सुअर का मांस यानी ‘पॉर्क’ भारत में भले सीमित क्षेत्रों में खाया जाता हो. लेकिन विदेशों में इसकी भारी मांग है. यही वजह है कि अब भारत से इसका निर्यात भी बढ़ रहा है. सुअर सिर्फ मांस ही नहीं देता, बल्कि उसकी खाल, हड्डी और बालों का भी व्यावसायिक उपयोग होता है. इससे जुड़े उत्पाद जैसे ब्रश, गोंद और जैविक खाद आदि भी बनाए जाते हैं.