देसी जुगाड़ से बनी कपास हार्वेस्टर मशीन, कम खर्च में ज्यादा मुनाफा

CICR ने देसी जुगाड़ से ट्रैक्टरचालित कपास हार्वेस्टर मशीन तैयार की है, जो कम लागत में किसानों को ज्यादा मुनाफा देती है.यह मशीन छोटे खेतों में प्रभावी ढंग से कपास बिनने का काम करती है और महंगी विदेशी मशीनों का सस्ता विकल्प बनकर उभरी है.

धीरज पांडेय
नई दिल्ली | Updated On: 19 May, 2025 | 01:25 PM

केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान (CICR) ने देश के छोटे और मझोले किसानों के लिए एक कम लागत वाला ट्रैक्टरचालित ब्रश प्रकार का कपास हार्वेस्टर विकसित किया है. यह मशीन न केवल कपास की कटाई को आसान और तेज बनाएगी, बल्कि महंगी विदेशी मशीनों की तुलना में किफायती भी है. किसानों को इससे बेहतर उत्पादन, कम खर्च और ज्यादा मुनाफा मिलने की उम्मीद है. यह मशीन खास तौर पर भारतीय खेतों और किसानों की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है. इसकी सबसे बड़ी खूबी है कि कम लागत में अच्छी कार्यक्षमता और ज्यादा मुनाफा देती है.

कैसे काम करती है देसी हार्वेस्टर मशीन

इस ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन में तीन ब्रश स्ट्रिप्स और रबर बैट्स के साथ काउंटर रोटेटिंग रोलर्स लगे होते हैं, जो खुले हुए कपास के गोलों को प्रभावी ढंग से बिनने का काम करते हैं. स्क्रू ऑगर और सेंट्रीफ्यूगल ब्लोअर की मदद से बीज कपास को एयर डक्ट के जरिए स्टोरेज टैंक तक पहुंचाया जाता है.मशीन की प्रभावी फील्ड क्षमता 0.1 हेक्टेयर प्रति घंटा है और 80 फीसदी फील्ड कार्यक्षमता के साथ यह 1.35 किमी/घंटा की गति से काम करती है. वहीं बिनाई कार्यक्षमता करीब 89.8 फीसदी है, जिसमें केवल 29 फीसदी अपशिष्ट निकलता है. यानी किसान को शुद्ध बीज कपास 150 से 217 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक मिल सकता है.

कम लागत में बड़ा फायदा

यह हार्वेस्टर मशीन खास बात यह है कि यह स्पिंडल आधारित विदेशी मशीनों की तुलना में करीब एक-तिहाई कीमत पर उपलब्ध है. CSIR द्वारा विकसित स्वदेशी ट्रैक्टरचालित संस्करण की कीमत 7 से 8 लाख रुपये के बीच है, जबकि सेल्फ-प्रोपेल्ड (चालक संचालित) छोटा संस्करण 3 से 3.5 लाख रुपये में उपलब्ध है.यह मशीन 17 एचपी ट्रैक्टर से चलाई जा सकती है, जिससे छोटे और मझोले किसान भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. यदि किसान इसे अपने गांव या आसपास किराए पर उपलब्ध कराए तो यह एक सफल ग्रामीण बिजनेस मॉडल भी बन सकता है.

कैसे बनी यह मशीन

CICR के वैज्ञानिकों ने 2012 में इस मशीन पर काम शुरू किया था. यह सब एक छोटे कपास बीनने वाले जुगराड़ से शुरू हुआ, जिसे वैज्ञानिकों ने तीन साल की मेहनत से एक पूर्ण मशीन का रूप दिया. मशीन में सुधार के लिए CIRCT (केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान) ने प्री-क्लीनिंग यूनिट भी डिजाइन की है. संस्थान अब इस मशीन का बड़ा, स्थिर और ज्यादा ताकतवर संस्करण भी तैयार कर रहा है, जो 55-60 एचपी पर चलेगा और HDPS (हाई डेंसिटी प्लांटिंग सिस्टम) के लिए उपयुक्त होगा.

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Published: 19 May, 2025 | 01:09 PM

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