देश में चुनौतियों से घिरी है चीनी इंडस्ट्री, इससे निकलने का रास्ता है MSP में बढ़ोतरी

इस्मा के महानिदेशक दीपक बल्लानी कहते हैं, ‘चीनी के एमएसपी में फरवरी 2019 के बाद कोई बदलाव नहीं आया है. एफआरपी में वर्ष दर वर्ष बढ़ोतरी हुई है. इसकी वजह से इनपुट कॉस्ट और आउटपुट प्राइसिंग के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है. जरूरी है कि चीनी के एमएसपी और गन्ने के एफआरपी को इस तरह जोड़ें कि एक साथ दूसरे की कीमत अपने आप संशोधित हो. इससे चीनी मिलें निर्बाध रूप से काम कर सकेंगी और किसानों को उनका पेमेंट समय से मिल सकेगा.’

Kisan India
नोएडा | Updated On: 26 Nov, 2025 | 10:45 PM

बंपर फसल का उत्पादन खुशियां लाता है. साथ ही कुछ चुनौतियां भी. चीनी उद्योग कुछ ऐसी ही स्थिति में है. 2025-26 और 2026-27 में बंपर फसल की उम्मीद है. जाहिर है, यह खुशी की बात है. लेकिन चीनी उद्योग इन अनुमानों की वजह से आशंकाओं से घिर गया है. इस बात की पूरी आशंका है कि घरेलू चीनी की कीमतें इतनी गिर जाएं कि प्रोडक्शन की लागत न निकल पाए. इस आशंका या डर को एक ही तरीके से खत्म किया जा सकता है. वह तरीका है कि उद्योग की लंबे समय से चल रही एमएसपी बढ़ाने की मांग को मानना. आंकड़ों के मुताबिक प्याज की कीमतें पिछले दस वर्षों में 83 फीसदी, अरहर की दाल 120 फीसदी, दूध 66 फीसदी, चावल 57 फीसदी, गेहूं का आटा 65 फीसदी और सरसों के तेल की कीमत 55 फीसदी ऊपर गई है. जबकि चीनी में सिर्फ 25 फीसदी ही बढ़ोतरी हुई है.

चीनी मिलें पहले ही वित्तीय संकट में हैं. इसकी तमाम वजहें हैं. इनमें इसमें एमएसपी यानी न्यूनतम बिक्री मूल्य तो बड़ा मुद्दा है ही, साथ ही इथेनॉल की कीमतों को भी संशोधित न किया जाना भी मुश्किलों को बढ़ा रहा है. चीनी मिलों ने सरकार के इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जी-जान से मेहनत की है. इथेनॉल से जुड़ी सुविधाएं मिल्स में जोड़ी हैं. इसके लिए 40 हजार करोड़ रुपए का निवेश किया गया है. अब इथेनॉल के दामों में संशोधन न होने से मिल मालिक दोहरे संकट में फंस गए हैं. इन संकटों नें मिलों के सामने अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है. इन संकटों से गन्ने के दाम समय पर दे पाने पर असर पड़ रहा है. 

इस्मा की तरफ से लगातार बताया जाता रहा है कि इसमें बढ़ोतरी कितनी जरूरी है. चीनी उत्पादन की बढ़ती लागत मिलों के लिए एक और बड़ी चुनौती है. इसमें गन्ने की कीमतें, ब्याज, मशीनरी वगैरह का डेप्रिसिएशन यानी मूल्यह्रास, कच्चे माल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी होना भी चुनौती का हिस्सा है. इस्मा के महानिदेशक दीपक बल्लानी एमएसपी को लेकर प्रस्तावित फॉर्मूले के बारे बात करते रहे हैं और मांग करते रहे हैं कि इसे लागू किया जाना चाहिए. 2019 से एमएसपी न बढ़ना मिलों के लिए बहुत बड़ी चुनौती पेश करता रहा है. गन्ने के एफआरपी में 29 फीसदी की वृद्धि हुई, लेकिन चीनी की कीमतों में नहीं. इसी के मद्देनर फॉर्मूला सुझाया गया था. 

यह फॉर्मूला है – MSP of Sugar (in Rs/kg) = [ (FRP per unit recovery in Rs/kg sugar) X 1.16*]

*An increment of 0.01 for each subsequent year (हर दूसरे वर्ष 0.01 की बढ़ोतरी)

इसे स्वीकार किया जाता तो 2025-26 में चीनी की एमएसपी 40.24 रुपए प्रति किलो होती. 

इस्मा की मांग यही है कि क्रशिंग सीजन से पहले चीनी की एमएसपी कम से कम 40.2 रुपए प्रति किलो की जानी चाहिए. इससे चीनी की कीमतें प्रोडक्शन लागत से नीचे नहीं जाएंगी. इथेनॉल के लिए जो बड़ा निवेश किया गया है, उस पर आंच नहीं आएगी. और सबसे जरूरी बात, किसानों की आय में स्थिरता रहेगी और सेक्टर में भरोसा भी बना रहेगा.

गन्ने का एफआरपी यानी उचित व लाभकारी मूल्य 2025-26 के शुगर सीजन के लिए 355 रुपए प्रति क्विंटल है. छह साल में एफआरपी 80 रुपए बढ़ी है. यह बढ़ोतरी 29 फीसदी है. जबकि एमएसपी पर कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. पिछले सीजन के मुकाबले भी एफआरपी में 15 रुपए की बढ़ोतरी की गई है. एफआरपी के अलावा बाकी कारण भी हैं, जिनसे उत्पादन लागत बढ़ी है, जो लगातार चीनी मिलें ही वहन कर रही हैं.

मिलों के आंकड़ों के मुताबिक 355 रुपए प्रति क्विंटल एफआरपी के साथ चीनी उत्पादन की लागत 4024 रुपए, 49 पैसे आती है. सरकार द्वारा तय जिस फॉर्मूले को लागू करने की मांग इस्मा कर रहा है, उससे 2025-26 के शुगर सीजन के लिए एमएसपी 40.2 रुपए प्रति किलो होनी चाहिए. अभी चीनी के लिए एमएसपी 31 रुपए प्रति किलो तय की गई है, जो किसी भी तरह से न्यायपूर्ण नहीं है. इस एमएसपी के साथ चीनी मिलों के लिए कामकाज सुचारु रूप से चला पाना असंभव जैसा है.

इंडियन शुगर एंड बायो-एनर्जी मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन यानी इस्मा के महानिदेशक दीपक बल्लानी कहते हैं, ‘चीनी के एमएसपी में फरवरी 2019 के बाद कोई बदलाव नहीं आया है. तबसे यह 31 रुपए प्रति किलो है. दूसरी तरफ एफआरपी में वर्ष दर वर्ष बढ़ोतरी हुई है. इसकी वजह से इनपुट कॉस्ट और आउटपुट प्राइसिंग के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है. जरूरी है कि चीनी के एमएसपी और गन्ने के एफआरपी को इस तरह जोड़ें कि एक साथ दूसरे की कीमत अपने आप संशोधित हो. इससे चीनी मिलें निर्बाध रूप से काम कर सकेंगी और किसानों को उनका पेमेंट समय से मिल सकेगा.’

अभी जिस तरह के हालात हैं, उसकी भयावहता समझने की जरूरत है. जिस तरह कीमतें बढ़ती जा रही हैं और एमएसपी में कोई बदलाव नहीं हो रहा, उससे चीनी मिलें बेहद मुश्किल दौर से गुजर रही हैं और गहरे आर्थिक संकट में हैं. आर्थिक संकट से किसानों को पेमेंट में दिक्कतें आ रही हैं. समय पर किसानों को पैसा मिलना मुश्किल होता जा रहा है. इसके साथ ही बढ़ते एफआरपी और जड़ पड़ गए एमएसपी की वजह से इंडस्ट्री का स्थायित्व और किसानों का भरोसा खतरे में है.

जाहिर है, इससे पार पाने का तरीका यही है कि एमएसपी और एफआरपी का गठबंधन किया जाए. इससे सुनिश्चित होगा कि जब भी एफआरपी में बढ़ोतरी होगी, उसके साथ ही चीनी के एमएसपी में भी संशोधन अपने आप हो जाएगा. इस्मा की तरफ से सरकार से लगातार यह गुजारिश की जाती रही है एमएसपी को संशोधित किया जाए. 2025-26 के शुगर सीजन के लिए इसे 40.2 रुपए प्रति किलो करने का अनुरोध किया गया है. साथ ही, एमएसपी और एफआरपी के गठबंधन की गुजारिश भी की गई है. ऐसा होता है तो चीनी मिल मालिकों में भरोसा बढ़ेगा. चीनी मिलें आधुनिकता की ओर और तेजी से कदम बढ़ा सकेंगी. नवीनीकरण होगा, नई तकनीकें लागू होंगी. कुल मिलाकर उद्योग पर छाया संकट हट जाएगा.

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Published: 26 Nov, 2025 | 10:45 PM

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