डिजिटल युग में भी पीछे हैं गांव की महिलाएं, 51 फीसदी के पास नहीं है अपना मोबाइल फोन

आज देश डिजिटलीकरण की ओर तेजी से बढ़ रहा है. आधार, मोबाइल बैंकिंग, UPI, सरकारी योजनाओं की जानकारी, इन सबके लिए मोबाइल जरूरी हो गया है. ऐसे में अगर देश की आधी आबादी, खासकर ग्रामीण महिलाएं, इस बुनियादी सुविधा से वंचित रहें, तो डिजिटल इंडिया की सफलता अधूरी रह जाएगी.

नई दिल्ली | Published: 30 May, 2025 | 02:16 PM

आज जब बच्चे भी स्मार्टफोन पर ऑनलाइन क्लास कर रहे हैं और छोटे किसान भी मंडियों के भाव मोबाइल ऐप पर देख रहे हैं, तब ये जानकर हैरानी होती है कि ग्रामीण भारत की आधी से ज्यादा महिलाएं आज भी मोबाइल फोन की मालिक नहीं हैं. दरअसल, नेशनल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस (NSO) की नई रिपोर्ट बताती है कि देश के डिजिटल भविष्य में महिलाओं की हिस्सेदारी उतनी नहीं है, जितनी होनी चाहिए. सवाल यह नहीं कि मोबाइल कितने लोगों के पास है, बल्कि यह है कि कौन-कौन अब भी इससे वंचित है.

गांव की महिलाएं और डिजिटल दुनिया से दूरी

NSO के कॉम्प्रिहेंसिव मॉड्यूलर सर्वे: टेलीकॉम 2025 के अनुसार, ग्रामीण भारत की 51.6 फीसदी महिलाएं (15 वर्ष या उससे अधिक उम्र की) अब भी अपना मोबाइल फोन नहीं रखतीं. इसके मुकाबले ग्रामीण पुरुषों में यह आंकड़ा सिर्फ 19.3 फीसदी है यानी 80.7 फीसदी पुरुषों के पास मोबाइल है. वहीं शहरी महिलाओं की स्थिति थोड़ी बेहतर है, जहां 71.8 फीसदी महिलाएं मोबाइल की मालिक हैं, वहीं 90 फीसदी शहरी पुरुषों के पास मोबाइल फोन है. यह अंतर सिर्फ संख्या नहीं दिखाता, बल्कि समाज में जेंडर आधारित तकनीकी पहुंच की गहरी खाई को उजागर करता है.

युवाओं में भी दिखा लैंगिक अंतर

ऐसा नहीं है कि यह फर्क सिर्फ बुजुर्ग या अधेड़ महिलाओं में है. युवा वर्ग, जिसे आम तौर पर डिजिटल रूप से सबसे ज्यादा सक्रिय माना जाता है, वहां भी यह खाई नजर आई. ग्रामीण इलाकों में 74.8 फीसदी युवा लड़के (15–24 वर्ष) मोबाइल रखते हैं, जबकि इसी उम्र की सिर्फ 51.7 फीसदी लड़कियों के पास ही मोबाइल है. इसका मतलब है कि गांव की लगभग आधी लड़कियां अब भी खुद का मोबाइल फोन नहीं रखतीं, जबकि वे पढ़ाई, करियर और रोजगार के मोर्चे पर तेजी से आगे बढ़ना चाहती हैं.

उपयोग तो हो रहा है, लेकिन स्वामित्व नहीं

हालांकि ये बात थोड़ी राहत देने वाली है कि बहुत सी महिलाएं मोबाइल का उपयोग करती हैं. रिपोर्ट बताती है कि 76.3 फीसदी ग्रामीण महिलाएं और 86.8 फीसदी शहरी महिलाएं पिछले तीन महीनों में कॉल करने या इंटरनेट चलाने के लिए मोबाइल का उपयोग कर चुकी हैं. लेकिन जब बात स्वामित्व की आती है, यानी मोबाइल उनके अपने नाम से और उनकी खुद की पहुंच में हो, तो तस्वीर बदल जाती है.

स्वामित्व की गिनती में NSO ने साफ किया है कि सिर्फ वो मोबाइल गिने गए जिनमें एक्टिव सिम हो और जो व्यक्तिगत उपयोग के लिए हों. परिवार में किसी और का मोबाइल मिल-बांट कर चलाना ‘स्वामित्व’ नहीं माना गया.

डिजिटल इंडिया में महिलाओं की अधूरी भागीदारी

आज देश डिजिटलीकरण की ओर तेजी से बढ़ रहा है. आधार, मोबाइल बैंकिंग, UPI, सरकारी योजनाओं की जानकारी, इन सबके लिए मोबाइल जरूरी हो गया है. ऐसे में अगर देश की आधी आबादी, खासकर ग्रामीण महिलाएं, इस बुनियादी सुविधा से वंचित रहें, तो डिजिटल इंडिया की सफलता अधूरी रह जाएगी. इसका असर सिर्फ संचार पर नहीं, बल्कि महिलाओं की शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और आत्मनिर्भरता पर भी पड़ता है.