Murrah Buffalo: दूध उत्पादन में दुनिया की नंबर 1 नस्ल, किसानों की बनी पहली पसंद

मुर्रा भैंस अपनी उच्च दूध उत्पादन क्षमता, 6.9 फीसदी तक फैट, मजबूत शरीर और रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण भारत सहित कई देशों में डेयरी किसानों की पहली पसंद बन चुकी है, जो डेयरी उद्योग की रीढ़ साबित हो रही है.

नोएडा | Updated On: 4 Aug, 2025 | 09:08 PM

भारत में डेयरी उद्योग की रीढ़ मानी जाने वाली मुर्रा भैंस (Murrah Buffalo Breed) हरियाणा, पंजाब, दिल्ली व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रमुख पाई जाती है. इसकी उच्च दूध देने की क्षमता, उच्च फैट सामग्री, रोगों के प्रति सहनशीलता और मजबूत शरीर संरचना इसे किसानों के लिए आदर्श विकल्प बनाते हैं. इस नस्ल ने न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बनाई है, जिससे यह दूध उत्पादन और खेती के क्षेत्र में क्रांतिकारी साबित हो रही है.

मूल उत्पत्ति और प्रमुख प्रजनन क्षेत्रों

मुर्रा नस्ल मूल रूप से हरियाणा क्षेत्र विशेषकर हिसार, रोहतक, गुड़गांव और जींद जिलों में पाई जाती है. यह दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में भी प्रचलित है, जहां इसे कुंडी या काली जैसे स्थानीय नामों से भी जाना जाता है. यह नस्ल विशेष रूप से उच्च दुग्ध क्षमता और मजबूत शारीरिक बनावट के लिए जानी जाती है.

शारीरिक पहचान और बनावट

मुर्रा भैंस का रंग गहरा जेट ब्लैक होता है, जिसमें कुछ जगह सफेद निशान भी हो सकते हैं. इसकी विशेष पहचान छोटी, कसकर घुमावदार सींगें और मजबूत, मांसल शरीर संरचना है. नर का वजन लगभग 550-700 किग्रा और मादा का 450-550 किग्रा होता है. ऊंचाई औसतन नर- 142 सेमी, मादा- 133 सेमी होती है.

दूध उत्पादन और पोषण मूल्य

मुर्रा भैंस एक ब्यांत में औसतन 1,752 लीटर दूध देती है; कुछ विशेष स्त्रोतों के अनुसार यह आंकड़ा 2,200-2,800 लीटर तक पहुंच सकता है. इसके दूध में औसतन 6.9 प्रतिशत से 8 फीसदी वसा होता है, जो घी, मक्खन, पनीर जैसे उत्पादों के लिए अत्यधिक उपयुक्त है. एक दिन में यह भैंस 10-16 लीटर दूध देती है, जबकि वांछित परिस्थितियों में 20-25 लीटर तक भी उत्पादन हो सकता है.

सहनशीलता, रोग प्रतिरोधक क्षमता एवं प्रजनन गुण

मुर्रा भैंस गर्म और शुष्क जलवायु में खुद को अच्छी तरह अनुकूलित कर लेती है. यह नस्ल बीमारियों से लड़ने में सक्षम होती है, जिससे किसान को भारी खर्चे से बचाव होता है. इसकी पहला प्रैंगन समय 36-45 महीने और क्रियावधि अंतर 400-500 दिन होता है, जो डेयरी व्यवसाय के लिए महत्वपूर्ण है.

अंतरराष्ट्रीय तौर पर महत्व और निर्यात

मुर्रा नस्ल की भैंसों को भारत से ब्राजील, फिलीपींस, वियतनाम, श्रीलंका और अन्य देशों में निर्यात किया जा चुका है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डेयरी उद्योग में इसकी मांग बढ़ी है क्योंकि यह नस्ल अन्य देशों की भैंसों के दूध उत्पादन को भी बढ़ाने में सहायक रही है. भारत सरकार भी इस नस्ल के संरक्षण और संवर्धन पर ध्यान दे रही है.

किसानों के लिए फायदे और आवेदन

अगर कोई किसान डेयरी फार्म शुरू करना चाहता है, तो मुर्रा भैंस सबसे उपयुक्त विकल्प हो सकती है.

  • उच्च दूध उत्पादन-प्रति ब्यांत 1,700 से 2,500 लीटर तक.
  • रोग-प्रतिरोधक क्षमता-कम चिकित्सा खर्च और अधिक स्थिर उत्पादन.
  • बेहतरीन पोषण मूल्य-उच्च फैट, कैल्शियम और प्रोटीन.
  • दीर्घ जीवनकाल और तेज प्रजनन चक्र-निवेश पर उच्च लाभ.
  • गाय और भैंस की तुलना में आसान देखभाल-कम चारा, समायोजित जीवनशैली.
  • ये सभी कारण मिलकर मुर्रा भैंस को किसानों के बीच एक सेहतमंद और मुनाफे वाला विकल्प बनाते हैं.
Published: 4 Aug, 2025 | 06:45 AM