कपास की इंपोर्ट ड्यूटी और अमेरिकी टैरिफ पर घमासान.. सरकार, विपक्ष और किसान आमने-सामने

कपास पर आयात शुल्क हटाने के फैसले का कड़ा विरोध हो रहा है. किसानों ने तो केंद्र के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और विपक्षी दलों ने भी सरकार की आलोचना शुरू कर दी है. अरविंद केजरीवाल ने खरी खोटी सुनाते हुए अमेरिकी टैरिफ पर दूसरे देशों की तरह यूएस पर दोगुना टैरिफ लगाने की सलाह केंद्र को दी है.

रिजवान नूर खान
नोएडा | Updated On: 28 Aug, 2025 | 01:51 PM

भारतीय उत्पादों पर अमेरिकी टैरिफ 50 फीसदी लगाए जाने और अब केंद्र सरकार के कपास पर इंपोर्ट ड्यूटी और कृषि उपकर को हटाने की समयसीमा को इस साल के अंत तक बढ़ा दिया है. इसके पीछे सरकार का दावा है कि बाजार में कपास की जरूरत पूरी होगी और इंडस्ट्री को नुकसान से बचाया जा सकेगा, जिसके नतीजे में कपड़ा आदि बनने वाले उत्पादों की कीमतें स्थिर रखी जा सकेंगी. लेकिन, विपक्षी दलों ने इस पर सरकार को घेरा है, जबकि किसान संगठनों ने सरकार के फैसले को किसानों के हक पर डाका बताया है. उनका तर्क है कि इससे विदेशी कपास भारत में सस्ता हो जाएगा, जिससे किसानों के कपास की कीमत गिर जाएगी और आर्थिक संकट का सामना करना पड़ेगा.

सरकार का ताजा आदेश और उसके पीछे की वजह

केंद्र सरकार ने बीते सप्ताह कपास के आयात पर लगने वाले 11 फीसदी शुल्क को और कृषि उपकर को भी हटा दिया था. सरकार ने कहा कि इससे भारतीय बाजार में विदेशी कपास की आवक बढ़ेगी और इंडस्ट्री की कपास जरूरत पूरी हो सकेगी. इसके नतीजे में आगामी त्योहारी सीजन के दौरान कपास उत्पादों जैसे कपड़ा, रजाई-गद्दे, रूई आदि वस्तुओं की कीमतें स्थिर रखने में मदद मिलेगी और उपभोक्ताओं की जेब पर बोझ नहीं बढ़ेगा.

सरकार से जुड़े जानकार और कृषि एक्सपर्ट बताते हैं कि बीते कुछ वर्षों के दौरान कपास उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई है. इसकी कई वजहें हैं लेकिन प्रमुख वजहों में बालवर्म कीट-रोग, विपरीत मौसम को माना गया है. जबकि, किसानों को बुवाई के समय सिंचाई की दिक्कत होना और उपज बिक्री के वक्त मंडी में सही भाव नहीं मिलना भी बड़ी वजह बनकर उभरा है. आंकड़ों से पता चलता है कि 2014-15 की तुलना में 2023-24 में करीब 50 लाख गांठ कम उत्पादन हुआ है.

  • 2014-15 में 386 लाख गांठ उत्पादन
  • 2017-18 में 370 लाख गांठ उत्पादन
  • 2021-22 में करीब 315.43 लाख गांठ उत्पादन
  • 2023-24 में करीब 323.11 लाख गांठ उत्पादन

कपास पर आयात ड्यूटी हटाने पर विपक्षी दलों ने सरकार को घेरा

भारतीय उत्पादों पर अमेरिकी टैरिफ लगाने पर सरकार की ओर तीखी प्रतिक्रिया की उम्मीद लगाए विपक्षी दलों ने खामोशी पर सरकार को घेरा है. आम आदमी पार्टी के संयोजक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि पिछले दिनों मोदी जी ने ट्रंप के दबाव में ये निर्णय लिया है कि अमेरिका से जो कपास भारत आता है अभी तक उसमें 11 फीसदी ड्यूटी लगती थी लेकिन अब ये 11 फीसदी ड्यूटी हटा दी गई है और अब अमेरिका से आने वाली कपास पर कोई ड्यूटी नहीं लगाई जाएगी. ये देश के किसानों के साथ बहुत बड़ा धोखा है. अब जो अमेरिका से कपास आएगी वो भारत के किसानों के कपास से सस्ती होगी. तो भारत के किसान कहां जाएंगे और किसानों का कपास कौन खरीदेगा.

अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अमेरिका ने 50 फीसदी टैरिफ भारत पर लगाया है. हमें भी कपास पर 11 फीसदी से 50 फीसदी टैरिफ कर देना चाहिए था दूसरों देशों ने यही किया. ट्रंप ने 50 फीसदी टैरिफ लगाया तो हमें 100 फीसदी टैरिफ लगा देना चाहिए था क्या हम कमजोर देश हैं.

किसान संगठनों ने विरोध का बिगुल फूंका

राकेश टिकैत के नेतृत्व वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने कपास पर आयात शुल्क हटाने पर सख्ती टिप्पणी करते हुए आयात शुल्क हटाने की अधिसूचना को तत्काल वापस लेने की मांग की है. सरकार के फैसले के विरोध में कपास उगाने वाले गांवों में जनसभा करने और MSP@C2+50% के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया जाएगा. इसके बाद मंडल महापंचायत और सांसदों के खिलाफ विशाल मार्च आयोजित किया जाएगा. संगठन ने किसानों से कपास पर आयात शुल्क हटाने की अधिसूचना जलाने का आह्वान किया है. इसके साथ ही संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) का प्रतिनिधिमंडल 17 और 18 सितम्बर 2025 को विदर्भ का दौरा करने का ऐलान किया है. इसी तरह अन्य किसान संगठनों ने भी सरकार के इस फैसले को कपास किसानों के लिए आत्मघाती कदम बताया है.

केंद्र के फैसले से क्यों बढ़ रही नाराजगी

केंद्र के फैसले के बाद अमेरिका का कपास भारत आएगा और उस पर लगने वाली 11 फीसदी ड्यूटी नहीं लगेगी. इससे देश की टेक्सटाल इंडस्ट्री सस्ते अमेरिकी कपास खरीद लेगी. वहीं, जब अक्टूबर में किसानों का कपास मंडी में पहुंचेगा तो उसे खरीदने वाला कोई नहीं होगा. भारतीय कपास निगम अक्टूबर महीने से कपास की खरीद शुरू करता है. यानी किसानों का कपास मंडियों में बस अगले कुछ सप्ताह के बाद से पहुंचना शुरू हो जाएगा और अभी ड्यूटी हटने से किसानों को डर है कि उन्हें तय किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ नहीं मिलेगा और उन्हें कौड़ियों के भाव में कपास बेचना पड़ जाएगा.

बीती खरीद के वक्त देखा गया था कि बारिश होने से मध्य प्रदेश, तेलंगाना समेत कई मंडियों में पहुंचा किसानों का कपास खराब हो गया था. नमी की मात्रा की अधिकता की वजह से सरकारी खरीद नहीं की जा सकी थी. जबकि, कई जगहों पर किसानों को निजी व्यापारियों के हाथों बेहद कम दाम पर फसल बेचनी पड़ गई थी. ऐसे में किसान सरकार के हालिया फैसले का विरोध कर रहे हैं.

कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य

  • केंद्र सरकार की ओर से कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी तय किया गया है.
  • 2025-26 में मध्यम स्टेपल कपास के लिए 7710 रुपये प्रति क्विंटल और लंबे स्टेपल कपास का MSP 8110 रुपये प्रति क्विंटल.
  • 2024-25 में मध्यम स्टेपल कपास के लिए 7121 रुपये प्रति क्विंटल और लंबे स्टेपल कपास का MSP 7521 रुपये प्रति क्विंटल.
  • 2013-14 में मध्यम स्टेपल कपास के लिए 3700 रुपये प्रति क्विंटल और लंबे स्टेपल कपास का MSP 4000 रुपये प्रति क्विंटल.

Get Latest   Farming Tips ,  Crop Updates ,  Government Schemes ,  Agri News ,  Market Rates ,  Weather Alerts ,  Equipment Reviews and  Organic Farming News  only on KisanIndia.in

Published: 28 Aug, 2025 | 01:26 PM

फलों की रानी किसे कहा जाता है?

फलों की रानी किसे कहा जाता है?