शुभांशु शुक्ला वह नाम है, जो अब सिर्फ अंतरिक्ष मिशन से नहीं, बल्कि भारत की वैज्ञानिक उम्मीदों और कृषि नवाचारों से भी जुड़ गया है. अमेरिका के फ्लोरिडा से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) के लिए रवाना हुए शुभांशु, भारत के पहले वैज्ञानिक हैं जो 44 साल बाद किसी ऐसे मिशन का हिस्सा बने हैं. लेकिन उनका यह 14 दिन का सफर सिर्फ स्पेस वॉक और रिसर्च तक सीमित नहीं है, इसमें छिपा है भारत की फसलों को भविष्य की चुनौतियों से निपटने लायक बनाने का सपना.
केरल की छह फसलें पहुंचीं अंतरिक्ष
इस ऐतिहासिक मिशन ‘Axiom-4’ के तहत पहली बार भारत की परंपरागत फसलों के बीज अंतरिक्ष में भेजे गए हैं. केरल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (KAU) द्वारा चुनी गई छह प्रमुख फसलों के बीज अब अंतरिक्ष की माइक्रोग्रैविटी में अंकुरण, बढ़वार और अनुवांशिक बदलाव के लिए परीक्षण में हैं. ये बीज हैं-
- ज्योति और उमा (धान की प्रजातियां)
- कनकमणि (लोबिया, प्रोटीन युक्त दाल)
- तिलकथारा (तिल, एक प्रमुख तैलीय फसल)
- सूर्य (बैंगन)
- वेल्लायनि विजय (हाई-यील्ड टमाटर)
इन बीजों का उद्देश्य सिर्फ यह देखना नहीं है कि वे स्पेस में उग सकती हैं या नहीं, बल्कि यह भी जानना है कि क्या अंतरिक्ष की कठोर परिस्थितियों से गुजरने के बाद उनमें कोई पॉजिटिव जेनेटिक म्यूटेशन होता है जो उन्हें भविष्य में जमीन पर भी ज्यादा पैदावार, कीट प्रतिरोध या जलवायु अनुकूलन क्षमता दे सके.
मेथी और मूंग भी पहुंचे स्पेस स्टेशन
इन छह फसलों के बीजों के साथ ही भारत की दो रोजमर्रा की खाद्य फसलें, मेथी (फेनुग्रीक) और मूंग को भी इस मिशन में शामिल किया गया है. शुभांशु इन पर भी प्रयोग कर रहे हैं जिसमें यह देखा जा रहा है कि वजनहीन वातावरण (zero gravity) में बीजों का पानी सोखने की क्षमता, अंकुरण दर और जड़ों की ग्रोथ कैसे प्रभावित होती है.
बीजों के स्प्राउटिंग पर इसरो का विशेष प्रयोग
ISRO के सहयोग से चल रहे इस प्रयोग में यह देखा जाएगा कि अंतरिक्ष की यात्रा और वहां का वातावरण बीजों के अंकुरण, पोषण और आनुवांशिकी को कैसे प्रभावित करता है.
अंतरिक्ष में 30 से ज्यादा प्रयोग, भारत की भूमिका अहम
Axiom-4 मिशन सिर्फ खेती या बीजों तक सीमित नहीं है. इसमें ब्रेन सेल्स पर रिसर्च, स्किन रीजनरेशन पर रेडिएशन के असर, स्पेस मटेरियल साइंस और स्पेस हाइजीन से जुड़ी 30 से भी ज्यादा वैज्ञानिक स्टडीज हो रही हैं. शुभांशु इनका हिस्सा बनकर भारत को न केवल स्पेस रिसर्च की फ्रंटलाइन में लाने का काम कर रहे हैं, बल्कि ‘Made in India Science’ को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं.
भविष्य की फसलें बनेंगी अंतरिक्ष में
इस मिशन की सबसे खूबसूरत बात यह है कि यह हमें उस भविष्य की झलक देता है, जब किसान की उम्मीदें केवल खेत तक सीमित नहीं रहेंगी, वो सितारों तक भी पहुंचेंगी. अगर अंतरिक्ष में उगने वाले ये बीज धरती पर लौटकर जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सक्षम हो जाएं, तो यह स्पेस मिशन नहीं, एक हरित क्रांति की नींव मानी जाएगी.