भारत के कई हिस्सों में खरीफ सीजन की तैयारी जोरों पर है, लेकिन इस बार लाल मिर्च की खेती पिछली बार की तुलना में काफी कम होने जा रही है. मिर्च की कीमतों में गिरावट और भारी मात्रा में पिछले साल की बची हुई स्टॉक के चलते किसानों का उत्साह ठंडा पड़ गया है. कई किसान अब मिर्च की जगह मक्का, कपास और मूंग जैसी दूसरी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं.
20 से 40 फीसदी तक घटा रकबा
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, गुंटूर स्थित मिर्च निर्यात संघ के अध्यक्ष सम्बाशिव राव वेलगापुडी ने बताया कि इस साल अब तक मिर्च का रकबा पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी तक कम हो गया है. हालांकि अगर सिंचाई की स्थिति अनुकूल रही तो अगस्त के मध्य तक थोड़ी बढ़ोतरी हो सकती है और कुछ जगहों पर सितंबर तक बुवाई चल सकती है.
कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और मध्य प्रदेश जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में किसानों ने मक्का और कपास को तरजीह दी है. कर्नाटक में मिर्च की खेती में करीब 45 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, जबकि आंध्र में 35 फीसदी और तेलंगाना में 40 फीसदी तक कम रकबे की खबर है.
बीजों की बिक्री में भारी गिरावट
एग्रीटेक कंपनी बिगहाट के जनरल मैनेजर संदीप वोड्डेपल्ली ने बताया कि मिर्च के बीजों की बिक्री में करीब 35 फीसदी की गिरावट आई है. कर्नाटक में बायडगी और डब्बी किस्मों की मांग में 40 फीसदी तक की कमी है, जबकि आंध्र और तेलंगाना में तेजा मिर्च के बीजों की बिक्री 20 फीसदी कम हुई है.
ठंडे भंडारण में भरा पड़ा है माल
वोड्डेपल्ली ने बताया कि जुलाई के अंत तक देशभर के कोल्ड स्टोरेज में 2.5 करोड़ बोरी मिर्च जमा है, जबकि पिछले साल इसी समय 1.5 करोड़ बोरी थी. यानी मांग की तुलना में सप्लाई पहले से ही अधिक है, जिससे कीमतें नीचे बनी हुई हैं.
दाम भी बने हैं बड़ी वजह
कर्नाटक के हम्पाली ट्रेडर्स के बसवराज हम्पाली के अनुसार, बायडगी मिर्च और कुछ हाइब्रिड किस्मों के दाम इस साल 25-30 फीसदी तक गिर चुके हैं. वहीं तेजा जैसी तीखी किस्मों के दाम 10-20 फीसदी तक कम हुए हैं. ऐसे में किसानों को मूंग और मक्का से बेहतर भाव मिल रहे हैं, इसीलिए वे अपनी रणनीति बदल रहे हैं.
क्या होगा असर?
अगर यह गिरावट बनी रही, तो देशभर में मिर्च की खेती इस खरीफ सीजन में करीब 35-40 फीसदी तक घट सकती है. पिछले साल जहां लगभग 13 लाख एकड़ में मिर्च की खेती हुई थी, वहीं इस साल अनुमान है कि यह घटकर 9-9.5 लाख एकड़ तक सीमित रह सकती है.
किसान अब जोखिम नहीं लेना चाहते. उन्हें कम दाम और भरे पड़े गोदामों के बीच अब ऐसी फसलें चाहिए जो वाजिब मुनाफा दे सकें. यही वजह है कि लाल मिर्च की गर्मी इस बार खेतों में ठंडी पड़ती दिख रही है.