दालों की महंगाई पर ब्रेक: बेहतर बुवाई और सरकारी भंडार से आने वाले महीनों में स्थिर रहेंगे भाव

इस साल रबी सीजन में दालों की बुवाई ने अच्छी रफ्तार पकड़ी है. आंकड़ों के अनुसार चना, मसूर और उड़द जैसी रबी दालों की बुवाई में साल-दर-साल आधार पर 14.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. मौजूदा सीजन में कुल रबी दालों का रकबा बढ़कर करीब 1.34 करोड़ हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो पिछले साल की तुलना में काफी अधिक है.

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नई दिल्ली | Published: 23 Dec, 2025 | 09:04 AM
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pulses prices: देश में दालों की कीमतों को लेकर आम लोगों और किसानों के मन में बनी चिंता अब धीरे-धीरे कम होती नजर आ रही है. सरकार और उपभोक्ता मामलों के विभाग के ताजा आकलन के मुताबिक आने वाले महीनों में दालों की कीमतें स्थिर बनी रह सकती हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह रबी सीजन में दालों की बढ़ी हुई बुवाई, अनुकूल मौसम और सरकार के पास मौजूद पर्याप्त बफर स्टॉक मानी जा रही है. अधिकारियों का कहना है कि मौजूदा हालात में दालों के दाम बढ़ने की कोई बड़ी आशंका नहीं दिख रही है.

रबी बुवाई में मजबूत बढ़ोतरी

फाइनेंशियल एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, इस साल रबी सीजन में दालों की बुवाई ने अच्छी रफ्तार पकड़ी है. आंकड़ों के अनुसार चना, मसूर और उड़द जैसी रबी दालों की बुवाई में साल-दर-साल आधार पर 14.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. मौजूदा सीजन में कुल रबी दालों का रकबा बढ़कर करीब 1.34 करोड़ हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो पिछले साल की तुलना में काफी अधिक है. अच्छी बुवाई और अब तक अनुकूल रहे मौसम से यह उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में पैदावार भी बेहतर रहेगी.

बफर स्टॉक से बाजार को सहारा

सरकार के पास फिलहाल करीब 20 लाख टन यानी 2 मिलियन टन दालों का बफर स्टॉक मौजूद है. अधिकारियों का कहना है कि जरूरत पड़ने पर इस स्टॉक का इस्तेमाल बाजार में आपूर्ति बढ़ाने के लिए किया जा सकता है, ताकि कीमतों में अचानक उछाल न आए. इसके अलावा खरीफ सीजन की फसल और निजी व्यापारियों के पास मौजूद स्टॉक से भी सप्लाई की स्थिति संतोषजनक बनी हुई है.

महंगाई में लगातार गिरावट

दालों की महंगाई दर में भी लंबे समय से गिरावट का रुख देखा जा रहा है. अगस्त 2024 में जहां दालों की महंगाई अपने चरम पर थी और 100 प्रतिशत से ऊपर चली गई थी, वहीं फरवरी 2025 के बाद से यह लगातार नकारात्मक दायरे में बनी हुई है. नवंबर 2025 में दालों की महंगाई दर घटकर लगभग 15.86 प्रतिशत माइनस दर्ज की गई, जो लगातार दसवां महीना है जब दालों के दाम नीचे की ओर रहे हैं. यह संकेत देता है कि बाजार में सप्लाई पर्याप्त है और मांग के मुकाबले स्थिति संतुलित बनी हुई है.

आयात समझौतों से बनी रहेगी सप्लाई

सरकार ने दालों की उपलब्धता बनाए रखने के लिए आयात मोर्चे पर भी अहम फैसले किए हैं. म्यांमार, मोजाम्बिक और मलावी के साथ दालों के शुल्क-मुक्त आयात से जुड़े समझौतों को अप्रैल 2026 से अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ाने का फैसला लिया गया है. इन समझौतों के तहत भारत हर साल मोजाम्बिक से 2 लाख टन, म्यांमार से 1 लाख टन और मलावी से 50 हजार टन अरहर दाल आयात करता है. इसके अलावा म्यांमार से हर साल 2.5 लाख टन उड़द आयात करने की प्रतिबद्धता भी बनी हुई है.

आयात पर निर्भरता में कमी की तैयारी

भारत अपनी कुल दाल खपत का लगभग 15 से 18 प्रतिशत आयात करता है, जिसमें अरहर, उड़द और मसूर प्रमुख हैं. वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने रिकॉर्ड 73 लाख टन दालों का आयात किया था, लेकिन चालू वित्त वर्ष में इसके घटकर करीब 40 लाख टन रहने का अनुमान है. सरकार का लक्ष्य धीरे-धीरे आयात पर निर्भरता कम करना है.

आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता कदम

दालों में आत्मनिर्भर बनने के लिए सरकार ने छह साल का एक बड़ा मिशन शुरू किया है. इसके तहत 11,440 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, ताकि 2030-31 तक दालों का उत्पादन बढ़ाकर 3.5 करोड़ टन किया जा सके. फिलहाल देश में दालों का उत्पादन करीब 2.57 करोड़ टन के आसपास है. बढ़ती आबादी और आय के साथ दालों की मांग लगातार बढ़ रही है, ऐसे में उत्पादन बढ़ाना सरकार की प्राथमिकता बना हुआ है.

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