लंबे सूखे के बाद कश्मीर में बारिश बनी संजीवनी, केसर की खेती में लौटी जान

केसर को यहां ‘लाल सोना’ कहा जाता है और घाटी की करीब सोलह हजार परिवारों की आजीविका इसी पर निर्भर है. हर साल केसर का उत्पादन सीमित होता है, इसलिए मौसम में थोड़ी सी भी गड़बड़ी सीधे किसानों की आमदनी पर असर डालती है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 23 Dec, 2025 | 08:03 AM
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Kashmir rainfall news: कश्मीर घाटी में बीते करीब एक दिन तक हुई बारिश ने उस चिंता को काफी हद तक कम कर दिया है, जो पिछले कई हफ्तों से किसानों और पर्यटन कारोबार से जुड़े लोगों के मन में बनी हुई थी. लंबे समय से सूखे मौसम की मार झेल रहे केसर उत्पादकों के लिए यह बारिश किसी राहत की सांस से कम नहीं है. अक्टूबर और नवंबर जैसे अहम महीनों में बारिश न होने से केसर की फसल पर संकट के बादल मंडरा रहे थे, लेकिन अब मौसम के बदले मिजाज ने उम्मीदें जगा दी हैं.

सूखे से जूझते खेतों को मिली नई नमी

बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, पंपोर और आसपास के इलाकों में केसर की खेती करने वाले किसान बताते हैं कि इस बार बारिश बेहद देर से आई, लेकिन फिर भी इसका असर सकारात्मक रहेगा. खेतों की सूखी मिट्टी अब नरम हो गई है और जमीन में नमी लौटने लगी है. किसानों का कहना है कि केसर के पौधों के नीचे बनने वाली गांठें, जिन्हें कंद कहा जाता है, भविष्य की पैदावार के लिए बेहद जरूरी होती हैं. लंबे समय तक सूखा रहने से इन कंदों के विकास पर बुरा असर पड़ सकता था, जिससे अगले साल की फसल कमजोर हो जाती.

केसर किसानों की बढ़ी उम्मीद

किसानों का मानना है कि अगर यह बारिश कुछ हफ्ते पहले हो जाती तो हालात और बेहतर होते, लेकिन अब भी पूरी तरह नुकसान नहीं हुआ है. खेतों में लौटी नमी से कंदों की सेहत सुधरने की उम्मीद है. केसर को यहां ‘लाल सोना’ कहा जाता है और घाटी की करीब सोलह हजार परिवारों की आजीविका इसी पर निर्भर है. हर साल केसर का उत्पादन सीमित होता है, इसलिए मौसम में थोड़ी सी भी गड़बड़ी सीधे किसानों की आमदनी पर असर डालती है.

बारिश और बर्फबारी का मिला-जुला असर

मौसम विभाग के अनुसार घाटी के कई हिस्सों में बीते 24 घंटों के दौरान अच्छी बारिश दर्ज की गई है, जबकि ऊंचाई वाले इलाकों में ताजा बर्फबारी भी हुई है. इससे न सिर्फ खेतों की मिट्टी में नमी बढ़ी है, बल्कि जलस्रोतों को भी राहत मिली है. लंबे समय से सूखते झरने और नाले फिर से बहने लगे हैं, जिससे आने वाले महीनों में पानी की कमी की आशंका कुछ हद तक कम हो गई है.

खेती के साथ पर्यटन को भी संजीवनी

बारिश और बर्फबारी का असर सिर्फ खेती तक सीमित नहीं है. गुलमर्ग जैसे ऊंचाई वाले पर्यटन स्थलों पर ताजा बर्फ गिरने से सर्दियों के पर्यटन सीजन को लेकर नई उम्मीद जगी है. पिछले कुछ समय से कम बर्फबारी के कारण होटल, टैक्सी और गाइड से जुड़े लोग मायूस थे. अब पहाड़ों पर सफेद चादर बिछने से पर्यटकों की आवाजाही बढ़ने लगी है, जिससे स्थानीय कारोबार को रफ्तार मिलने की संभावना है.

सतर्कता के साथ आगे बढ़ रहे किसान

हालांकि राहत के बीच किसान अभी पूरी तरह निश्चिंत नहीं हैं. बीते वर्षों में मौसम के अचानक बदलते रुख ने उन्हें सतर्क रहना सिखाया है. कृषि विभाग के अधिकारी भी लगातार खेतों की स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं. उनका कहना है कि अगर आगे भी हल्की बारिश या बर्फबारी होती रही तो इसका फायदा केसर की खेती और सर्दियों की फसलों दोनों को मिलेगा.

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