Stubble Management: भारत में हर साल धान की कटाई के बाद खेतों में जलती पराली जिस धुएं को हवा में फैलाती है, वही पराली किसानों की कमाई और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की ताकत बन सकती है. आज भी उत्तर भारत की हवा पराली के धुएं से भारी हो जाती है और दूसरी ओर लाखों टन सब्जियां व फल समय पर ठंडा भंडारण न मिलने के कारण खराब हो जाते हैं. अगर इसी पराली को बायोमास ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल किया जाए तो गांवों के कोल्ड स्टोरेज चल सकते हैं, किसानों की आय बढ़ सकती है और प्रदूषण पर बड़ी चोट की जा सकती है. तो चलिए समझते हैं कि पराली कैसे संकट को अवसर में बदल सकती है.
पराली: खेत में बोझ, कोल्ड स्टोरेज के लिए खजाना
फसल कटाई के बाद किसानों के पास खेत खाली करने के लिए सीमित समय होता है. श्रम की कमी और महंगी मशीनरी के कारण पराली को खेत में मिलाना आसान नहीं होता. मजबूरन किसान उसे जला देते हैं. लेकिन यही पराली एक बड़े ईंधन स्रोत के रूप में काम आ सकती है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हर साल देश में करोड़ों टन कृषि अवशेष निकलते हैं, जिनमें से बड़ी मात्रा यूं ही बर्बाद हो जाती है. इस अवशेष में इतनी क्षमता है कि सिर्फ बायोमास से देश लगभग 28,000 मेगावाट बिजली बना सकता है. यह क्षमता सिर्फ कागजों तक सीमित न रहे, इसके लिए इसे ठंडा भंडारण जैसी ग्रामीण जरूरतों से जोड़ा जा सकता है.
गांवों में कोल्ड स्टोरेज की कमी
भारत में अधिकांश कोल्ड स्टोरेज शहरों के पास बने होने और महंगी बिजली लागत के कारण ग्रामों के छोटे किसान उनका उपयोग नहीं कर पाते. ऐसे में बायोमास आधारित कोल्ड स्टोरेज किसानों के लिए किफायती समाधान बन रहा है. 20 टन क्षमता वाला एक छोटा कोल्ड स्टोरेज लगभग 15 लाख रुपये में तैयार हो जाता है और सालाना खर्च करीब ढाई लाख रुपये आता है. इसमें ईंधन सबसे बड़ा खर्च होता है, जिसे किसान पराली से ही पूरा कर सकते हैं. इससे बिजली की लागत लगभग 90 फीसदी तक घट जाती है, जबकि ग्रिड या सोलर आधारित मॉडल किसानों के लिए भारी पड़ते हैं.
एफपीओ मॉडल: गांव-गांव में ऊर्जा का नया ढांचा
एफपीओ यानी किसान उत्पादक संगठन बायोमास आधारित कोल्ड स्टोरेज को गांवों में टिकाऊ बनाने की सबसे मजबूत कड़ी साबित हो सकते हैं. एफपीओ गांव-गांव से पराली एकत्र कर सुरक्षित रूप से उसका भंडारण कर सकते हैं. साथ ही मशीनों को चलाने के लिए किसानों को तकनीकी प्रशिक्षण भी दे सकते हैं. जरूरत पड़ने पर कोल्ड स्टोरेज को सामुदायिक मॉडल पर संचालित कर पूरे क्षेत्र के किसानों को लाभ पहुंचाया जा सकता है. यह मॉडल न केवल पराली को उसकी सही कीमत दिलाएगा, बल्कि गांवों में नए रोजगार भी पैदा करेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाएगा.
पराली से चली ठंडी हवा, बढ़ी किसानों की आमदनी
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में नींबू उगाने वाले किसानों ने जब बायोमास आधारित कोल्ड स्टोरेज का इस्तेमाल किया, तो नतीजे बेहद चौंकाने वाले साबित हुए. बाजार में जब नींबू की कीमत 14 रुपये किलो तक गिर गई थी, किसानों ने तुरंत अपनी फसल को बायोमास कोल्ड स्टोरेज में सुरक्षित रख दिया. कुछ ही हफ्तों बाद वही नींबू 33 से 45 रुपये प्रति किलो के भाव में बिके, जिससे किसानों को भारी मुनाफा हुआ.
इस व्यवस्था में बिजली के मुकाबले स्टोरेज की लागत लगभग 90 फीसदी तक कम आई, फसल खराब होने की दर लगभग शून्य रही और करीब 40 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन भी घटा. यानी पराली से न केवल ठंडी हवा बनी, बल्कि इसी पराली ने किसानों को नुकसान से निकालकर मुनाफे की राह पर भी ला खड़ा किया.
प्रदूषण भी घटेगा, खेती भी टिकाऊ बनेगी
पराली जलाने से होने वाला वायु प्रदूषण हर साल लाखों लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है. बायोमास आधारित ऊर्जा मॉडल से—
- खेतों में पराली नहीं जलेगी
- वायु गुणवत्ता बेहतर होगी
- गांव को खुद की ऊर्जा मिलेगी
- सब्जियां-फल बर्बाद नहीं होंगे
- किसानों को बेहतर दाम और नई आमदनी मिलेगी
भारत के पास मौका है कि वह पराली को समस्या नहीं बल्कि ऊर्जा और कृषि विकास का साधन बनाए.