Goat Farming : गांवों में खेती-किसानी हमेशा से आय का मुख्य जरिया रहा है, लेकिन हर किसान चाहता है कि उसके पास ऐसा विकल्प भी हो, जिससे रोजाना कमाई हो और खर्च भी कम आए. इसी वजह से आजकल बकरी पालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था की सबसे मजबूत कड़ी बनता जा रहा है. खास बात यह कि यह बिजनेस कम जगह, कम चारा और कम निवेश में भी शुरू किया जा सकता है. झारखंड जैसे राज्यों में तो हजारों परिवार सिर्फ बकरी पालन से अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं और सालाना लाखों रुपये तक कमा रहे हैं.
झारखंड की जलवायु, यहां की नमी, बारिश और प्राकृतिक चारा-इन सबके कारण यहां कुछ खास नस्लें सबसे ज्यादा पसंद की जाती हैं. इनमें ब्लैक बंगाल, जमुनापारी, बरबरी और स्थानीय नस्लें शामिल हैं. ये बकरियां न सिर्फ कठिन मौसम झेल लेती हैं, बल्कि दूध, मांस और प्रजनन क्षमता में भी बेहद आगे रहती हैं. आइए जानते हैं इन 5 बेहतरीन नस्लों के बारे में, जो किसानों की आय को कई गुना तक बढ़ा देती हैं.
ब्लैक बंगाल- छोटी कद की बकरी, पर मुनाफा सबसे ज्यादा
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ब्लैक बंगाल नस्ल को झारखंड के किसान सबसे अधिक पसंद करते हैं. आकार में भले यह बकरी छोटी दिखाई देती हो, लेकिन यह बेहद मजबूत और तेजी से बढ़ने वाली नस्ल है. इसका मांस बाजार में महंगा बिकता है और खाल की गुणवत्ता भी बेहतरीन होती है. सबसे खास बात-ब्लैक बंगाल की प्रजनन क्षमता काफी अधिक होती है. यह साल में 2 बार बच्चे देती है और एक बार में 2 से 3 बच्चे होना आम बात है. यानी किसान को बहुत कम समय में अधिक संख्या में बकरियां मिल जाती हैं. साधारण चारा, पत्ते और अनाज के बचे हुए हिस्सों पर भी यह आसानी से पनप जाती है. कम खर्च और ज्यादा कमाई-यही इस नस्ल की सबसे बड़ी ताकत है.
जमुनापारी- दूध और मांस, दोनों में नंबर वन
जमुनापारी को बकरियों की डियर क्वीन भी कहा जाता है, क्योंकि इसका कद बड़ा, शरीर मजबूत और दिखने में आकर्षक होता है. यह नस्ल खासकर दूध उत्पादन के लिए काफी मशहूर है. एक जमुनापारी बकरी प्रतिदिन अच्छी मात्रा में दूध देती है, जिससे किसान दूध बेचकर भी कमाई कर सकते हैं. मांस की बात करें तो जमुनापारी का वजन अधिक होने के कारण बाजार में इसकी कीमत हमेशा ऊंची रहती है. हाँ, इसकी देखभाल थोड़ी ज्यादा करनी पड़ती है, लेकिन बदले में किसानों को शानदार लाभ भी मिलता है. अगर कोई किसान बड़ा पैमाने पर बकरी पालन करना चाहता है, तो जमुनापारी उसकी पहली पसंद बन सकती है.
बरबरी- गर्मी-सूखे में भी टिकी रहने वाली नस्ल
बरबरी नस्ल मध्यम आकार की बकरी है और इसकी खासियत है-हर मौसम में आसानी से जी लेना. गर्मी हो या सूखा, यह नस्ल अपनी तेजी से अनुकूलन करने की क्षमता के लिए जानी जाती है. इसका दूध भी ठीक-ठाक मात्रा में मिलता है और मांस की क्वालिटी अच्छी होने से बाजार में हमेशा डिमांड रहती है. बरबरी बकरियां तेजी से वजन बढ़ाती हैं, जिससे इन्हें बेचने पर अच्छा मुनाफा होता है. कम देखभाल में ज्यादा फायदा-यह इस नस्ल की सबसे बड़ी पहचान है.
स्थानीय और मिश्रित नस्लें-कम खर्च में ज्यादा मुनाफा
झारखंड के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में स्थानीय बकरियों का पालन भी खूब होता है. इन पर खर्च कम आता है क्योंकि ये साधारण जंगल चारा, पत्ते और खेतों में उपलब्ध घास पर आसानी से जीवित रहती हैं. ये बकरियां बीमारियों से लड़ने में भी अधिक सक्षम होती हैं और चिकित्सा खर्च भी बहुत कम आता है. मिश्रित नस्लें तो और ज्यादा फायदेमंद होती हैं, क्योंकि इनमें स्थानीय नस्लों की मजबूती और बाहरी नस्लों की उत्पादन क्षमता दोनों होती हैं. कम निवेश, कम जोखिम और ज्यादा कमाई चाहने वाले किसानों के लिए यह विकल्प सबसे बेहतर है.
क्यों तेजी से बढ़ रहा है बकरी पालन बिजनेस?
झारखंड में बकरी पालन इसलिए तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि इसमें लागत कम है और मुनाफा लगातार मिलता रहता है. बकरी का दूध, मांस, खाल और बच्चों की बिक्री-चारों तरफ से कमाई के कई रास्ते खुल जाते हैं. एक बकरी साल में कई बच्चे देती है और कुछ ही सालों में बकरियों का झुंड बड़ा हो जाता है. इसके अलावा ग्रामीण महिलाएं भी इसे आसानी से संभाल सकती हैं, जिससे घर की अतिरिक्त आय और ज्यादा बढ़ जाती है. राज्य सरकार भी पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है, जिससे किसानों पर वित्तीय बोझ कम होता है.