Goat Farming:- अगर आप पशुपालन से आय बढ़ाना चाहते हैं तो बकरी पालन एक सुनहरा मौका है. खासकर जमुनापारी, सिरोही और बरबरी जैसी देसी नस्लें दूध और मांस दोनों के लिए बेहतर मानी जाती हैं. ये नस्लें कम खर्च में अच्छी आय दे सकती हैं. आइए जानते हैं इन बकरियों की विशेषताएँ और पालन करने के आसान तरीके, ताकि आप भी लाभ उठा सकें.
ये नस्लें क्यों खास हैं?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जमुनापारी बकरी भारत की सबसे प्रसिद्ध और उत्पादक देसी नस्लों में से एक है. यह बकरी अच्छी देखभाल और संतुलित आहार मिलने पर प्रतिदिन लगभग 2 से 2.5 लीटर तक दूध देती है, जो इसे दूध उत्पादन में सबसे आगे बनाता है. इसके अलावा सिरोही और बरबरी नस्ल की बकरियां भी बेहद लोकप्रिय हैं. ये नस्लें दूध के साथ-साथ मांस उत्पादन के लिए भी काफी उपयोगी मानी जाती हैं. इन बकरियों की खास बात यह है कि अगर इन्हें सही आहार, साफ-सफाई और चिकित्सकीय देखभाल दी जाए, तो इनसे बेहतर उत्पादन और लाभ आसानी से पाया जा सकता है.
भोजन और पोषण का महत्व
बकरियों को स्वस्थ और उत्पादक बनाए रखने के लिए उन्हें हमेशा पौष्टिक और संतुलित आहार देना जरूरी होता है. इनके भोजन में हरा चारा, बाजरा, ज्वार, मक्का, चना और चना की खली जरूर शामिल करें. ये अनाज बकरियों को ऊर्जा और पोषण दोनों देते हैं. सर्दियों में सरसों का तेल या अन्य पौष्टिक तेल मिलाकर देने से शरीर में गर्मी बनी रहती है और पाचन क्रिया भी दुरुस्त रहती है. सूखे चारे के साथ-साथ हरे चारे का संतुलन बनाए रखना चाहिए. सही आहार से दूध की मात्रा बढ़ती है और बकरियां बीमारियों से भी सुरक्षित रहती हैं.
आश्रय और देखभाल
बकरियों को ऐसी छत-मकान दें जहा हवा, धूप-छांव का सही संतुलन हो. खासकर सर्दी, बरसात और तेज धूप से बचाव हो. जमीन साफ‑सुथरी और सूखी होनी चाहिए, नमी न हो. बछड़ों और गर्भवती बकरियों को विशेष स्थान दें, जहां तापमान नियंत्रित हो सके और आराम से रह सकें.
स्वास्थ्य एवं प्रजनन प्रबंधन
नियमित टीकाकरण करें और बीमारी के लक्षण दिखते ही पशुचिकित्सक से संपर्क करें. बछड़े पैदा होने के बाद जल्दी से कोलोस्ट्रम (मां का पहला दूध) दें, क्योंकि इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है. बकरियों को अच्छा गर्भ पालन सुनिश्चित करें; पोषण, आराम और स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें.
आर्थिक लाभ और बाजार स्थिति
इन नस्लों की मांग हमेशा बनी रहती है क्योंकि किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को दूध और मांस की जरूरत होती है. अच्छी नस्ल पाने और पालन करने से लागत जल्दी वापस आ जाती है. बाजार में कीमतें अच्छी मिलती हैं. सरकार भी जोन‑वार योजनाएँ चलाती है जहाँ किसान इस तरह की बकरियों के पालन के लिए सब्सिडी या प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं.