आदिवासी ग्रामीणों के लिए ‘ATM’ बना ये पशु, पालन में खर्च बिल्कुल कम और मुनाफा जबरदस्त

Pig Farming: मध्य प्रदेश के आदिवासी परिवार सूअर पालन से अच्छी कमाई कर रहे हैं. कम खर्च में पालन होता है और सालभर में हजारों-लाखों की आमदनी हो जाती है. धार्मिक कारणों से भी सूअर पालना जरूरी माना जाता है.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 29 Aug, 2025 | 12:37 PM

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में बसे आदिवासी गांवों में आज भी लोग प्रकृति के साथ मिलकर सादा जीवन जीते हैं. खेती और पशुपालन उनके रोजगार के मुख्य साधन हैं. लेकिन इनमें भी एक खास जानवर है, जो कम खर्च में ज्यादा मुनाफा देता है और वो है सूअर. आदिवासी समाज में सूअर को ‘चलता-फिरता एटीएम’ कहा जाता है क्योंकि ये मुश्किल समय में हमेशा काम आता है. धार्मिक आस्था से लेकर आर्थिक मजबूती तक, सूअर पालन उनके जीवन का अहम हिस्सा बन गया है, जो अब रोजगार का मजबूत जरिया बन चुका है.

सूअरों के लिए बनता है खास घर, दिन में चरने भेजते हैं खेत

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यहां के आदिवासी परिवार सूअरों के रहने के लिए एक छोटी सी जगह बनाते हैं, जिसकी दीवार करीब 3 फीट ऊंची होती है. उसी के अंदर सूअर रहते हैं. दिन में उन्हें बाहर खेतों में छोड़ दिया जाता है ताकि वो खुलकर घूम सकें और चर सकें. इससे उनकी सेहत और ग्रोथ दोनों अच्छे से होती है.

बचे-खुचे खाने से होती है परवरिश, ग्रोथ भी होती है जबरदस्त

सूअर पालन का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इनके खाने पर ज्यादा खर्च नहीं होता. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वहां के लोग सूअरों को रोज पेज (चावल के आटे से बना पतला घोल) पिलाते हैं और जो खाना घर में बच जाता है, वो भी खिला देते हैं. इसके अलावा खेत में जो भी बचे-खुचे अन्न या फसल के टुकड़े होते हैं, सूअर वही खा लेते हैं. इससे उनकी ग्रोथ जल्दी होती है और ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती.

कमाई का तगड़ा जरिया, साल में बेचते हैं 20 से 25 सूअर

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एक सूअर की कीमत करीब 3,500 रुपये से 4,000 रुपये तक मिल जाती है. एक परिवार साल में करीब 20 से 25 सूअर बेच देता है, जिससे उन्हें 80,000 रुपये से 1 लाख रुपये तक की कमाई हो जाती है. यह कमाई उनके घर का खर्च चलाने में मदद करती है और किसी भी इमरजेंसी में यही सूअर उनकी ‘सेविंग’ बन जाते हैं. कई बार शादी-ब्याह या बीमारी जैसी जरूरतों में इन्हें बेचकर तुरंत पैसे जुटा लिए जाते हैं, इसलिए इसे आदिवासी समाज में ‘ATM’ कहा जाने लगा है.

धार्मिक वजह से भी होता है पालन, बलि में होता है इस्तेमाल

रिपोर्ट के अनुसार, यहां सूअर पालने की एक और वजह धार्मिक भी है. आदिवासी समुदाय के लोग मानते हैं कि जब कोई बड़ी समस्या आती है, तो भगवान नाराज होते हैं. ऐसे में भगवान को मनाने के लिए सूअर की बलि दी जाती है. साथ ही, वे जादू-टोने में भी विश्वास करते हैं. अगर किसी पर बुरा असर हो, तो उसे हटाने के लिए भी सूअर की बलि दी जाती है. इसलिए हर घर में सूअर पालना जरूरी समझा जाता है.

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Published: 29 Aug, 2025 | 12:35 PM

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