बकरी पालन छोटे और बड़े किसानों के लिए आय का अहम स्रोत है, लेकिन बीमारियों का खतरा हमेशा बना रहता है. खासकर मौसम के बदलाव के साथ बकरियों को कई तरह की बीमारियां घेर लेती हैं. कुछ बीमारियां ऐसी हैं जिनका इलाज मुश्किल है और जो जानलेवा भी साबित हो सकती हैं. आइए जानते हैं कौन-कौन से टीके और दवाइयां बकरियों के लिए जरूरी हैं.
जानलेवा बकरी बीमारियों से बचाव के लिए जरूरी टीकाकरण
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार विशेषज्ञों की सलाह है कि किसान बकरियों को उम्र और मौसम के अनुसार नियमित टीकाकरण जरूर कराएं. इससे जानलेवा बीमारियां फैलने से पहले ही रोकी जा सकती हैं.
- पीपीआर (बकरी प्लेग) टीका- इस बीमारी से बचाव के लिए बकरियों को 3 महीने की उम्र में पहला टीका लगाएं, फिर 3 साल की उम्र में दोबारा लगवाएं.
- इन्टेरोटोक्समिया- 3-4 महीने की उम्र में पहला टीका, 3-4 हफ्ते बाद बूस्टर डोज, फिर हर साल दो बार एक महीने के अंतराल पर लगवाएं.
- खुरपका- 3-4 महीने में टीका, 3-4 हफ्ते बाद बूस्टर, 6 महीने बाद फिर से टीका.
- बकरी चेचक- 3-5 महीने की उम्र में टीका, एक महीने बाद बूस्टर डोज और फिर हर साल लगवाना जरूरी.
- गलघोंटू- 3 महीने में पहला टीका, 23 से 30 दिन बाद बूस्टर.
ये टीके बकरियों को मौसम के अनुसार सक्रिय बीमारियों से बचाते हैं और बकरियों की सेहत अच्छी रखने में मदद करते हैं.
पैरासाइट नियंत्रण के लिए दवाइयां जरूरी
मौसम के हिसाब से बकरियों में कई तरह के परजीवी (पैरासाइट) भी हो सकते हैं, जो बकरियों को कमजोर कर देते हैं। इस कारण दवाओं का समय पर उपयोग जरूरी है-
- कुकडिया रोग की दवा- 2 से 3 महीने की उम्र में 3-5 दिन तक दवा पिलाएं। फिर 6 महीने पर दोबारा दवा दें.
- डिवार्मिंग-3 महीने की उम्र में दवाई देना शुरू करें. बरसात के शुरू और अंत में एक बार दें. हर साल सभी पशुओं को यह दवा दें.
- डिपिंग- यह दवा सभी उम्र की बकरियों को दी जा सकती है. खासकर सर्दियों के शुरुआत और अंत में सभी पशुओं को एक साथ नहलाएं.
ये दवाइयां बकरियों में परजीवी की समस्या को कम कर उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती हैं.
नियमित जांच से बीमारी को रोकना जरूरी
कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जो धीरे-धीरे बकरियों की सेहत बिगाड़ती हैं और जानलेवा भी बन सकती हैं. इसलिए जरूरी है कि बकरियों की नियमित जांच करवाई जाए-
- ब्रुसेलोसिस जांच- बकरियों को 6 महीने और 12 महीने की उम्र में जांच कराएं. संक्रमित पशु को झुंड से अलग करके गहरे गड्ढे में दफना दें ताकि बीमारी फैलने से बच सके.
- जोहनीज (जेडी) जांच- 6 और 12 महीने में जांच आवश्यक है. संक्रमित पशु को तुरंत झुंड से अलग कर दिया जाना चाहिए.
इस तरह की जांच से बीमारी को समय रहते पकड़कर संक्रमण फैलने से रोका जा सकता है.
किसान भाइयों के लिए संदेश: स्वस्थ बकरी, समृद्ध परिवार
किसानों को सलाह दी गई है कि वे बकरियों के टीकाकरण और दवाओं के कार्यक्रम को गंभीरता से लें. मौसम के अनुसार सही समय पर टीकाकरण कराना और पैरासाइट नियंत्रण की दवाएं देना बहुत जरूरी है. इससे बकरियों की मृत्यु दर में कमी आएगी और दूध व मांस का उत्पादन बढ़ेगा. इससे किसानों की आमदनी भी बेहतर होगी. नियमित टीकाकरण और दवाइयों से बकरियों की सेहत मजबूत रहती है, जो पशुपालन व्यवसाय को सफल और लाभकारी बनाता है. इसलिए, सभी किसानों को समय पर पशु चिकित्सा विभाग की सलाह माननी चाहिए.