दिसंबर का महीना आते-आते कई किसानों के मन में एक ही चिंता घूमने लगती है कि अगर किसी वजह से गेहूं की बुवाई समय पर नहीं हो पाई, तो अब क्या किया जाए. कहीं ऐसा न हो कि देरी की वजह से पैदावार कम रह जाए और मेहनत का पूरा फल न मिले. लेकिन खेती में हर समस्या का समाधान छिपा होता है, बस सही जानकारी और सही किस्म का चुनाव जरूरी है. देर से बुवाई होने पर भी अगर किसान उपयुक्त वैरायटी का चयन कर लें, तो 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन पाना बिल्कुल संभव है.
देरी से बुवाई, लेकिन उम्मीद अब भी बाकी
कई बार मौसम की मार, धान की देर से कटाई या खेत की तैयारी में समय लग जाने के कारण गेहूं की बुवाई दिसंबर के अंत तक खिसक जाती है. ऐसे में आम किस्में लगाने से नुकसान हो सकता है, क्योंकि वे ज्यादा ठंड और कम समय में सही बढ़वार नहीं कर पातीं. यही वजह है कि देर से बुवाई के लिए विशेष रूप से विकसित की गई किस्मों का चयन बेहद जरूरी हो जाता है. ये किस्में कम समय में तैयार होती हैं और ठंड के असर को भी बेहतर तरीके से सहन कर लेती हैं.
वंदना (DBW 187): कम समय में शानदार पैदावार
देर से गेहूं बोने वाले किसानों के बीच वंदना किस्म काफी लोकप्रिय मानी जाती है. इसे DBW 187 के नाम से भी जाना जाता है. यह किस्म खास तौर पर पछेती बुवाई के लिए विकसित की गई है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह 120 से 125 दिनों के भीतर पककर तैयार हो जाती है. कम समय में तैयार होने के बावजूद इसकी पैदावार काफी अच्छी रहती है. अनुकूल परिस्थितियों में किसान इससे एक हेक्टेयर में लगभग 60 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं. जिन किसानों को दिसंबर के दूसरे या तीसरे सप्ताह में बुवाई करनी पड़ती है, उनके लिए यह किस्म भरोसेमंद साबित हो सकती है.
PBW 373: पछेती बुवाई के लिए भरोसे का नाम
PBW 373 गेहूं की एक और ऐसी किस्म है, जिसे दिसंबर के अंतिम दिनों तक भी बोया जा सकता है. यह किस्म खासकर बिहार के किसानों के बीच काफी पसंद की जाती है, लेकिन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और पंजाब के किसान भी इसे सफलतापूर्वक उगा सकते हैं. यह लगभग 125 दिनों में तैयार हो जाती है और सिंचित क्षेत्रों में इसका प्रदर्शन बेहतर रहता है. अगर मौसम और देखभाल अनुकूल रहे, तो इससे 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिल सकती है. सामान्य परिस्थितियों में भी इसकी औसत पैदावार 41 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक रहती है, जो देर से बोई गई फसल के हिसाब से अच्छी मानी जाती है.
PBW 752: गर्मी सहने वाली उन्नत किस्म
देर से बुवाई करने पर कई बार फसल को मार्च-अप्रैल की हल्की गर्मी का सामना करना पड़ता है. ऐसे में PBW 752 किस्म एक बेहतर विकल्प बनकर सामने आती है. यह किस्म गर्मी सहन करने की अच्छी क्षमता रखती है और दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक इसकी बुवाई की जा सकती है. औसतन यह किस्म 49 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देती है, जबकि बेहतर प्रबंधन और अनुकूल हालात में इसकी संभावित उपज 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से भी अधिक बताई जाती है. इसके दानों में प्रोटीन की मात्रा भी अच्छी होती है, जिससे बाजार में इसकी मांग बनी रहती है. यह किस्म करीब 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, इसलिए देर से बोने वाले किसानों के लिए यह काफी फायदेमंद साबित होती है.
सही किस्म चुनकर नुकसान को बनाएं मुनाफा
अगर गेहूं की बुवाई में देरी हो गई है, तो घबराने की जरूरत नहीं है. जरूरी है कि किसान अपनी जमीन, सिंचाई की सुविधा और स्थानीय मौसम को ध्यान में रखते हुए सही वैरायटी का चुनाव करें. वंदना, PBW 373 और PBW 752 जैसी किस्में यह साबित करती हैं कि सही फैसला लेने पर देर से बुवाई के बावजूद भी अच्छी पैदावार और संतोषजनक मुनाफा हासिल किया जा सकता है. समय भले ही हाथ से निकल गया हो, लेकिन सही जानकारी के साथ किसान अब भी अपनी फसल को सफल बना सकते हैं.