देखा जाए तो पशुपालन आज सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि कमाई का मजबूत जरिया बन चुका है. खासकर जब बात भैंस पालन की हो, तो सही नस्ल का चुनाव किसान की आमदनी बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है. इन दिनों एक खास नस्ल की भैंस चर्चा में है, जिसका नाम है भदावरी भैंस. यह भैंस कम खर्च में पाली जा सकती है और इसका दूध बहुत ज्यादा मलाईदार होता है. इसी वजह से अब छोटे किसान भी इसे पालना पसंद कर रहे है. इस भैंस के बारे में बताया जाता है कि इसका संबंध मूल रूप से उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के भदावर गांव से है, इसी वजह से इसका नाम भी भदावरी भी पड़ा. इसके अलावा ये भैंसें यमुना और चंबल घाटी में बसे इटावा और मध्य प्रदेश के ग्वालियर में भी पाई जाती हैं.
साल भर में 1400 लीटर दूध
भदावरी भैंस न सिर्फ दिखने में खास है, बल्कि दूध देने में भी कमाल की है. पहली बार बच्चा देने की उम्र करीब 50 से 52 महीने होती है. इसकी खास बात यह है कि हर बार ये भैंस करीब 1200 से 1400 लीटर तक दूध देती है. इतना ही नहीं इसके दूध में फैट की मात्रा करीब 13 फीसदी तक होती है, जो बाकी नस्लों से काफी ज्यादा है. यही वजह है कि इसका दूध घी निकालने के लिए सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है.
क्या हैं इसकी खासियतें?
भदावरी नस्ल की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे कम संसाधनों में भी पाला जा सकता है. यानी छोटे या भूमिहीन किसान भी इसे आसानी से पाल सकते हैं. ये भैंसें तेज गर्मी में भी सर्वाइव कर जाती हैं और आमतौर पर कम बीमार पड़ती हैं. साथ ही, इसके बच्चों की मृत्यु दर भी अन्य नस्लों के मुकाबले कम होती है, जिससे पशुपालकों को नुकसान का खतरा भी घट जाता है.
पहचान कैसे करें?
इस भैंस की पहचान उसके तांबे जैसी चमक वाले हल्के बदामी रंग से की जाती है. देखा जाए तो इसका शरीर मध्यम आकार का होता है, जो कि आगे से पतला और पीछे से चौड़ा होता है. इसके सींग मोटे, चपटे और पीछे की ओर मुड़कर ऊपर की तरफ अंदर घुसते हैं. इस नस्ल के नर पशु जहां 500 किलो तक का वजन रखते हैं, वहीं मादा भैंसों का वजन भी करीब 350 से 400 किलो तक होता है. यानी आकार में ये किसी से कम नहीं.