धर्मेंद्र को बहुत पंसद थे काली और लाल गाय के बछड़े, रोज सुबह खिलाते थे ये वाला चारा

बॉलीवुड के हीमैन धर्मेंद्र सिर्फ ऑन-स्क्रीन हीरो नहीं, बल्कि असल जिंदगी में सच्चे पशुप्रेमी थे. उन्हें अपने फार्महाउस के काली और लाल गाय के बछड़ों से खास लगाव था. हर सुबह वे खुद हाथ से खास चारा तैयार कर उन्हें खिलाते थे. उनके निधन के बाद उनका यह प्रेम लोगों को भावुक कर गया.

नोएडा | Published: 24 Nov, 2025 | 02:54 PM

बॉलीवुड में धर्मेंद्र को लोग एक एक्शन हीरो, रोमांटिक स्टार या हेमा मालिनी के हमसफर के रूप में जानते हैं.. लेकिन असल जिंदगी में उनका एक ऐसा रूप भी था, जिसके बारे में कम लोग जानते हैं. यह रूप था-उनका सच्चा पशुप्रेम. फिल्मों की चमक-दमक के बीच धर्मेंद्र गांव की मिट्टी और गाय-भैंस के बीच ज्यादा सुकून महसूस करते थे. कहते हैं कि उनके फार्महाउस का असली माहौल सुबह-सुबह तब बनता था जब वो अपने पसंदीदा काली और लाल गाय के बछड़ों के बीच बैठे मिलते थे.

उनकी दिन की शुरुआत चाय से नहीं, बल्कि इन बछड़ों के लिए तैयार किए गए खास चारे से होती थी. चाहे शूटिंग कितनी भी देर रात तक चली हो, सुबह सूरज की पहली किरण के साथ धर्मेंद्र उठ जाते थे और बिना देर किए सीधे गायों के बाड़े की तरफ निकल जाते थे. वहां पहुंचकर सबसे पहले वो बछड़ों के सिर पर हाथ फेरते, उनकी पीठ थपथपाते और बड़े प्यार से कहते-चलो बच्चों, नाश्ता तैयार है. कुछ दिनों से बिमार चल रहे थे, उनको ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, बाद में उन्हें डिस्चार्ज कर घर पर ही इलाज चल रहा था. लेकिन, आज उनके निधन की खबर ने सभी को झकजोर के रख दिया. बॉलीवुड के हीमैन धर्मेंद्र ने 89 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया.

काली और लाल नस्ल के बछड़ों पर था अलग ही स्नेह

धर्मेंद्र ने अपने फार्महाउस में कई पशु पाले , लेकिन काली और लाल नस्ल के गाय-बछड़ों  से उनका रिश्ता खास माना जाता था. वो कहते थे कि इन रंगों की गायों में अलग ही तेज, अलग ही ऊर्जा होती है. इनकी उपस्थिति से घर आंगन में शांति, बरकत और सकारात्मकता बनी रहती है. जब भी कोई मेहमान फार्महाउस जाता, धर्मेंद्र सबसे पहले उसे अपने बछड़ों से मिलवाते.

काली-लाल बछड़ों संग धर्मेंद्र

धर्मेंद्र खुद बनाते थे स्पेशल चारा

खास बात यह थी कि धर्मेंद्र इन बछड़ों को तैयार चारा  खिलाने के बजाय खुद स्पेशल फॉर्मूला बनाते थे. उनका नुस्खा बहुत प्यारा और देसी था- गुड़, चोकर, थोड़ा सरसों का तेल और ताजा हरा चारा. इशके साथ ही कहते थे कि उनका मानना था कि यह मिश्रण बछड़ों को ऊर्जा, गर्माहट, ताकत और जल्दी बढ़ने की क्षमता देता है. जब वो अपने हाथों से चारा मिलाते, तो बछड़े उनके चारों तरफ घिर जाते जैसे कोई बच्चा अपनी पसंदीदा चीज़ के इंतजार में उतावला हो.

धर्मेंद्र खुद बनाते थे स्पेशल चारा

फिल्मी दुनिया से दूर, पशुओं के बीच मिलती थी असली खुशी

हालांकि उनके पास बड़े-बड़े बंगले और शहर की सुविधाएं थीं, लेकिन धर्मेंद्र को सबसे ज्यादा खुशी अपने फार्महाउस पर मिलती थी. वहां पेड़, मिट्टी, खेतों की खुशबू और इन बछड़ों की मासूम आंखें-ये सब उनकी जिंदगी में शांति का सबसे बड़ा कारण थी. जब फिल्मों का तनाव होता या शूटिंग लगातार चलती, तो धर्मेंद्र कुछ दिन आराम के लिए फार्महाउस आ जाते. कहते हैं कि बछड़ों की आवाज़ सुनते ही उनकी थकान उतर जाती थी. उनके स्टाफ का कहना था कि बछड़े धर्मेंद्र को दूर से आते ही पहचान जाते थे और उछलकर उनका स्वागत करते थे. यह रिश्ता किसी मालिक-पशु का नहीं, बल्कि परिवार का लगता था.

फार्महाउस में पशुओं के साथ धर्मेंद्र.

पशुप्रेम की मिसाल बन गए धर्मेंद्र

आज जब लोग धर्मेंद्र को याद करते हैं, तो उनकी फिल्मों के साथ-साथ उनकी मिट्टी में बसने वाली सरलता भी याद आती है. काली और लाल गाय  के ये बछड़े उनके लिए सिर्फ पशु नहीं, परिवार थे. उनका मानना था-जिस घर में पशु खुश हों, वहां बरकत खुद चलकर आती है. धर्मेंद्र का यह पशुप्रेम आज भी लोगों को प्रेरित करता है कि शहर कितना भी बड़ा हो जाए, दिल की असली गहराई गांव और पशुओं के साथ ही सांस लेती है.

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