जैसे ही बरिश का मौसम आता है, मछली पालन करने वालों की चिंता बढ़ जाती है. क्योंकि, इस समय तालाबों में पानी भरने लगता है, जिस वजह से नमी और गंदगी बढ़ जाती है. इसी गंदगी के साथ बढ़ता है परजीवियों का खतरा. ये परजीवी बहुत छोटे होते हैं, लेकिन नुकसान बहुत बड़ा कर सकते हैं. कई बार मछलियां ऊपर से बिल्कुल स्वस्थ दिखाई देती हैं, लेकिन उनके शरीर के अंदर परजीवी धीरे-धीरे उनकी सेहत को खराब कर रहे होते हैं. खासकर माइक्रो एवं मिक्सोस्पोरीडिएसिस और ट्राइकोडिनोसिस जैसी बीमारियां मछलियों के गलफड़ों और त्वचा को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है. अगर समय रहते इनका इलाज न किया जाए तो पूरी मछली की खेप खत्म हो सकती है और तालाब खाली हो सकता है.
मछलियों में दो तरह के परजीवी होते हैं, आंतरिक और बाहरी. आंतरिक परजीवी मछली के शरीर के अंदर जैसे शरीर गुहा, रक्त नलिका और वृक्क में पाए जाते हैं, जबकि बाहरी परजीवी त्वचा, गलफड़ों और पंखों पर असर करते हैं. ये परजीवी मछलियों को कमजोर कर देते हैं और समय पर इलाज न हो तो उनकी मृत्यु भी हो सकती है.
बरिश में मछलियों के लिए खतरनाक बीमारी
केंद्र सरकार के मत्स्य पालन विभाग के अनुसार, माइक्रो और मिक्सोस्पोरीडिएसिस नाम की ये बीमारियां बरसात के मौसम में तेजी से फैलती हैं और खासतौर पर छोटी मछलियों (अंगुलिका अवस्था) को अपना शिकार बनाती हैं. ये रोग बहुत सूक्ष्म परजीवियों से होते हैं जो मछलियों के शरीर के ऊतकों में घुसकर धीरे-धीरे उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं.
इन रोगों के लक्षणों में मछली का कमजोर दिखना, अंगों में सूजन आना और गलफड़ों या त्वचा पर सड़न जैसे निशान शामिल हैं. इसके अलावा, मछलियां सुस्त हो जाती हैं और उनका विकास रुक जाता है.
सबसे बड़ी परेशानी यह है कि इन बीमारियों की अब तक कोई पक्की दवा नहीं मिल पाई है. ऐसे में इलाज का सबसे अच्छा तरीका यह है कि जैसे ही कोई मछली संक्रमित दिखे, उसे तुरंत तालाब से बाहर निकाल दिया जाए ताकि बीमारी फैल न सके. इसके अलावा, मछली का बीज डालने से पहले तालाब को चूना या ब्लीचिंग पाउडर से अच्छी तरह साफ करना जरूरी है, ताकि पानी रोगाणुमुक्त हो और मछलियां सुरक्षित रहें.
ट्राइकोडिनोसिस- मछलियों को मार देने वाला परजीवी
बरसात के मौसम में फैलने वाली ट्राइकोडिनोसिस (Trichodinosis) बीमारी एक खतरनाक परजीवी से होती है, जिसे ट्राइकोडीना कहा जाता है. यह परजीवी मछलियों के गलफड़ों और त्वचा पर चिपककर खून और ऊतकों को नुकसान पहुंचाता है.
इस बीमारी की चपेट में आई मछलियां बहुत सुस्त हो जाती हैं, उनका वजन गिरने लगता है और वे धीरे-धीरे मरने की हालत में पहुंच जाती हैं. इसे पहचानने का एक लक्षण यह है कि मछली के गलफड़ों से चिकना स्राव निकलने लगता है, जिससे उसे सांस लेने में कठिनाई होती है. अगर समय रहते पहचान न हो तो पूरी मछली की खेप बर्बाद हो सकती है.
मछलियों को तुरंत राहत देने वाला इलाज
- 5 फीसदी कॉमन सॉल्ट (नमक) घोल- संक्रमित मछलियों को इस घोल में कुछ देर डुबोने से परजीवी मर जाते हैं.
- 25 PPM फार्मेलिन का घोल- यह संक्रमण को तेजी से रोकता है और मछली को राहत देता है.
- 10 PPM कॉपर सल्फेट- यह भी प्रभावी इलाज है जो परजीवी को खत्म करता है.
इन उपायों से न सिर्फ मछलियों की जान बचाई जा सकती है, बल्कि पूरा तालाब सुरक्षित रह सकता है.