बकरियों पर जानलेवा ऑर्फ और एंटरोटॉक्सिमिया बीमारियों का खतरा, लक्षण दिखें तो तुरंत करें ये उपाय
मानसून में बकरियों में ऑर्फ और एंटरोटॉक्सिमिया जैसी बीमारियां तेजी से फैल रही हैं. समय पर टीकाकरण, साफ-सफाई और घरेलू उपायों से इनसे बचाव संभव है. पशुपालकों को सतर्क रहकर बकरियों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए.
भारत के गांवों में बकरियां केवल जानवर नहीं, बल्कि लाखों परिवारों की आमदनी का सहारा हैं. इन्हें ‘गरीबों की गाय’ भी कहा जाता है, क्योंकि इनका पालन खर्चीला नहीं होता और ये दुग्ध, मांस और खाद के रूप में कई लाभ देती हैं. लेकिन जैसे ही बारिश का मौसम आता है, इनके लिए मुसीबतें भी साथ लाता है. मानसून के मौसम में नमी, कीचड़ और गंदगी के कारण बकरियों में कुछ संक्रामक बीमारियां तेजी से फैलने लगती हैं. अगर इन पर समय रहते ध्यान न दिया जाए, तो ये जानलेवा भी साबित हो सकती हैं.
ऑर्फ: बकरियों में तेजी से फैलने वाला वायरल रोग
बरसात में सबसे आम और तेजी से फैलने वाली बीमारी का नाम है ऑर्फ. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यह एक वायरल रोग है जो एक बकरी से दूसरी बकरी में तेजी से फैलता है. इस बीमारी में बकरी के मुंह और होठों के आसपास छाले हो जाते हैं. कभी-कभी ये छाले इतने बढ़ जाते हैं कि बकरी खाना-पीना तक छोड़ देती है. ऑर्फ का संक्रमण झुंड की एक बकरी से शुरू होकर पूरे समूह में फैल सकता है. यही कारण है कि जैसे ही लक्षण दिखें, संक्रमित बकरी को अलग कर देना चाहिए.
जले हुए तेल से नहीं, ये घरेलू उपाय अपनाएं
कई बार पशुपालक जानकारी के अभाव में बकरियों के छालों पर जला हुआ तेल लगा देते हैं, जो खतरनाक साबित हो सकता है. बकरी इस तेल को चाट लेती है, जिससे छाले अंदरूनी अंगों तक पहुंच सकते हैं और स्थिति गंभीर हो जाती है.
एक सुरक्षित तरीका है- हल्दी और सरसों के तेल का लेप. ये दोनों प्राकृतिक एंटीसेप्टिक होते हैं और अगर बकरी इसे चाट भी ले, तो आंतरिक नुकसान नहीं होता. ऑर्फ एक ऐसी बीमारी है जो समय के साथ अपने आप ठीक हो सकती है, लेकिन बैक्टीरियल संक्रमण से बचाव के लिए एंटीबायोटिक दवा देना जरूरी होता है.
एंटरोटॉक्सिमिया और PPR जैसी बीमारियों से ऐसे करें बचाव
बारिश के समय एक और खतरनाक बीमारी है- एंटरोटॉक्सिमिया, जिसे ब्लड पॉयजनिंग भी कहा जाता है. यह बीमारी अचानक आती है और कई बार बकरी को बचाने का मौका तक नहीं मिलता. इसके अलावा PPR और पॉट पॉक्स जैसी बीमारियां भी इसी मौसम में उभरती हैं.
इनसे बचने का सबसे अच्छा तरीका है- टीकाकरण. गांवों और कस्बों के सरकारी पशु अस्पतालों में इन बीमारियों के लिए मुफ्त टीके उपलब्ध होते हैं. मानसून शुरू होने से 20-21 दिन पहले टीके जरूर लगवा लेने चाहिए, क्योंकि शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में थोड़ा समय लगता है.
गर्भवती बकरियों को भी मिल सकता है टीकों से फायदा
कई पशुपालक यह सोचकर गर्भवती बकरियों को टीका नहीं लगवाते, कि इससे गर्भस्थ शावक को नुकसान होगा. लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि यह एक पुराना मिथक है. वास्तव में, टीकाकरण से मां और बच्चे दोनों को सुरक्षा मिलती है. इससे बकरी का गर्भस्थ शावक भी बीमारियों के खिलाफ मजबूत बनता है.
घोंघों और कीड़ों से ऐसे करें बचाव, रखें साफ-सफाई का खास ध्यान
बारिश में तालाबों और खेतों में घोंघे, कीड़े-मकोड़े बढ़ जाते हैं. ये अक्सर घास में छिपे रहते हैं, जिन्हें बकरियां चरते समय खा लेती हैं. इससे बकरियों के पेट में कीड़े हो सकते हैं, जो धीरे-धीरे गंभीर बीमारियों में बदल सकते हैं. इससे बचाव के लिए जरूरी है कि आप समय-समय पर डिवॉर्मिंग (कीड़े मारने की दवा) जरूर दें. साथ ही, बकरियों को कीचड़ और गंदे पानी से दूर रखें. जहां बकरियों को बांधा जाता है, वहां नियमित सफाई और सूखा वातावरण बनाए रखना चाहिए.
सावधानी से बचेगा नुकसान, सुरक्षित रहेंगी बकरियां
बारिश का मौसम जहां किसानों और पर्यावरण के लिए राहत लेकर आता है, वहीं पशुओं के लिए खतरा भी बन सकता है. लेकिन अगर सही जानकारी और समय पर उपचार किया जाए, तो इन बीमारियों से बचा जा सकता है. बकरियों की सुरक्षा केवल पशुपालकों की सतर्कता पर निर्भर करती है. साफ-सफाई, समय पर टीकाकरण और घरेलू उपायों को अपनाकर आप अपने पशुओं को स्वस्थ और सुरक्षित रख सकते हैं और अपने परिवार की आय को भी बचा सकते हैं.