कड़कनाथ मुर्गा करा रहा किसानों की कमाई, ऐसे शुरू करें पोल्ट्री बिजनेस
कड़कनाथ मुर्गा आज किसानों के लिए मुनाफे का बड़ा जरिया बन गया है. इसका काला मांस, पौष्टिकता और स्वाद इसे बाकी प्रजातियों से खास बनाता है. सरकार भी पालन पर अनुदान दे रही है, जिससे ग्रामीण युवाओं में इसकी मांग बढ़ी है.
Kadaknath Chicken : देश में खेती के साथ-साथ अब पशुपालन भी किसानों और युवाओं के लिए आमदनी का बड़ा साधन बनता जा रहा है. खासकर मुर्गी पालन का व्यवसाय बहुत तेजी से बढ़ रहा है. लेकिन इस बीच एक ऐसी प्रजाति है, जिसने मुर्गी पालन की दुनिया में खास पहचान बनाई है-कड़कनाथ मुर्गा. इसका मांस काला होता है, स्वाद लाजवाब और पौष्टिकता इतनी अधिक कि इसकी मांग देश ही नहीं, विदेशों में भी बढ़ती जा रही है. आइए जानते हैं, आखिर कड़कनाथ मुर्गा इतना खास क्यों है और यह बाकी प्रजातियों से कैसे अलग है.
मुर्गी पालन का धंधा बना किसानों के लिए सोने की खान
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आज के समय में मुर्गी पालन व्यवसाय से लाखों रुपये की कमाई संभव है. अंडा उत्पादन (लेयर फार्मिंग) और ब्रॉयलर फार्मिंग से किसान रोजाना मुनाफा कमा रहे हैं. सरकार भी ग्रामीण युवाओं और किसानों को इसके लिए प्रोत्साहित कर रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कोई व्यक्ति सिर्फ 1,000 कड़कनाथ मुर्गों का पालन शुरू करे, तो कुछ ही महीनों में लाखों की कमाई कर सकता है. इसकी खास बात यह है कि इसकी कीमत आम मुर्गों की तुलना में कई गुना अधिक होती है.
कड़कनाथ की पहचान
कड़कनाथ मुर्गा अपने काले रंग के लिए प्रसिद्ध है- इसका मांस, त्वचा, यहां तक कि खून भी गहरे काले रंग का होता है. यही वजह है कि इसे ब्लैक मीट चिकन (Black Meat Chicken) कहा जाता है. यह मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के झाबुआ इलाके में पाई जाने वाली विशेष नस्ल है. यहां की आदिवासी जनजातियां लंबे समय से इसका पालन करती रही हैं. इसके मांस में प्रोटीन की मात्रा बहुत अधिक और फैट की मात्रा बेहद कम होती है, जिससे यह सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद है.
- पशुपालकों के लिए रोजगार का नया मौका, केवल दूध ही नहीं ऊंट के आंसुओं से भी होगी कमाई
- बरसात में खतरनाक बीमारी का कहर, नहीं कराया टीकाकरण तो खत्म हो जाएगा सब
- पशुपालक इन दवाओं का ना करें इस्तेमाल, नहीं तो देना पड़ सकता है भारी जुर्माना
- 2000 रुपये किलो बिकती है यह मछली, तालाब में करें पालन और पाएं भारी लाभ
जानिए कड़कनाथ और बाकी प्रजातियों में क्या है अंतर
कड़कनाथ मुर्गे की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह धीरे बढ़ता है, लेकिन इसका मांस बहुत पौष्टिक होता है. इसकी तुलना आम प्रजातियों से करें तो अंतर साफ दिखता है:-
- विकास का समय: कड़कनाथ को तैयार होने में 90 से 100 दिन लगते हैं, जबकि आम मुर्गे 40 से 45 दिनों में बड़े हो जाते हैं.
- वजन: कड़कनाथ का औसत वजन करीब 1.25 किलो होता है, जबकि अन्य प्रजातियों का वजन दो किलो तक पहुंच जाता है.
- प्रोटीन की मात्रा: इसमें 25 फीसदी से 27 फीसदी तक प्रोटीन होता है, जबकि सामान्य मुर्गों में 17, फीसदी से 18 प्रतिशत ही.
- फैट और कोलेस्ट्रॉल: कड़कनाथ में सिर्फ 1 फीसदी तक फैट और 185 मि.ग्रा. कोलेस्ट्रॉल पाया जाता है, जबकि आम प्रजातियों में फैट 20 फीसदी तक और कोलेस्ट्रॉल 218 मि.ग्रा. तक होता है.
- बीमारियों का असर: कड़कनाथ अन्य प्रजातियों की तुलना में बीमारियों से कम प्रभावित होता है, जिससे पालन में नुकसान भी कम होता है.
सरकार भी दे रही है पालन पर अनुदान
कड़कनाथ मुर्गे की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार किसानों को इसके पालन के लिए आर्थिक सहायता भी दे रही है. सरकारी योजना के तहत झाबुआ, अलीराजपुर, धार और बड़वानी जिलों में अनुसूचित जनजाति के लोगों को सब्सिडी पर कड़कनाथ के चूजे दिए जा रहे हैं. इसकी एक यूनिट की लागत 4,400 रुपये होती है, जिसमें से सरकार 3,300 रुपये का अनुदान देती है. यानी पशुपालक को सिर्फ 1,100 रुपये अपने जेब से देने होते हैं. इसके बाद चुजों, अंडों और बड़े मुर्गों की बिक्री से नियमित आमदनी शुरू हो जाती है.
कड़कनाथ मुर्गा
कड़कनाथ का मांस आयरन, जिंक, अमीनो एसिड और कई विटामिन से भरपूर होता है. इसके सेवन से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और यह हृदय रोगियों के लिए भी लाभकारी माना जाता है. दूसरी ओर, इसका पालन एक स्थायी आय का जरिया बन रहा है. इसकी ब्रांड वैल्यू इतनी अधिक है कि बाजार में इसका मांस आम चिकन के मुकाबले कई गुना दाम पर बिकता है.
क्यों बन रहा है कड़कनाथ पालन ग्रामीण युवाओं की नई पसंद
ग्रामीण युवाओं में कड़कनाथ पालन की ओर रुझान बढ़ रहा है क्योंकि इसमें कम जोखिम और ज्यादा लाभ है. स्थानीय स्तर पर बाजार आसानी से मिल जाता है और सरकारी सहायता भी मिलती है. बस साफ-सफाई, समय पर टीकाकरण और पौष्टिक आहार का ध्यान रखकर इसे सफल बनाया जा सकता है. कड़कनाथ मुर्गा आज सिर्फ एक पक्षी नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का काला हीरा बन चुका है. इसका पालन न केवल आर्थिक मजबूती देता है बल्कि यह देश में रोजगार सृजन और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी नई राह खोल रहा है.