Karnataka News: देशभर में पर्यावरण के लिए हानिकारक माने जाने वाले HTBT कपास की खेती पर प्रतिबंध है, लेकिन फिर भी हजारों किसान इसे चोरी-छिपे उगा रहे हैं. किसान संगठनों का आरोप है कि इस वजह से किसानों का शोषण हो रहा है. उनका कहना है कि अगर सरकार HTBT कपास को कानूनी मंजूरी दे दे, तो किसानों का आर्थिक शोषण रुक सकता है. खास कर महाराष्ट्र के किसान संगठनों ने इस मुद्दे को उठाया है.
ऐसे भी महाराष्ट्र देश के प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में से एक है और विदर्भ के यवतमाल जिले में ही करीब 5 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती होती है. लेकिन हाल के वर्षों में अनियमित मौसम और अन्य कारणों से कपास की पैदावार में भारी गिरावट आई है. वहीं, बाजार में कपास के दाम भी स्थिर नहीं हैं, जबकि लागत लगातार बढ़ रही है, जिससे किसानों की परेशानी और बढ़ गई है.
किसान HTBT कपास को ही ज्यादा पसंद कर रहे हैं
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, कुल उत्पादन लागत को देखते हुए कई किसान HTBT कपास को ही ज्यादा पसंद कर रहे हैं. अनुमान है कि इस साल विदर्भ में लगभग 40 फीसदी कपास की खेती HTBT किस्म से की गई है. लेकिन इसे खरीदना गैरकानूनी होने के कारण किसान मजबूर होकर इसे चोरी-छिपे लेते हैं और कई बार धोखाधड़ी का शिकार भी हो जाते हैं. किसानों का कहना है कि वे वर्षों से HTBT कपास उगा रहे हैं, इसकी पैदावार अच्छी मिलती है और सबसे बढ़कर फसल की देखभाल भी आसान रहती है.
HTBT कपास में खर्च घटकर लगभग 2,500 रुपये रह जाता है
किसान नेता विजय निवाल के अनुसार, पारंपरिक कपास की खेती में एक हेक्टेयर में निराई-गुड़ाई के लिए लगभग 75 मजदूर लगते हैं, जिस पर करीब 15,000 रुपये खर्च होता है. लेकिन HTBT कपास में यह खर्च घटकर लगभग 2,500 रुपये रह जाता है. इससे समय भी बचता है और फसल एकसमान बढ़ती है. उन्होंने कहा कि इस साल यवतमाल जिले में लगभग 40 फीसदी किसानों ने HTBT कपास अपनाया. यह किस्म किसानों के लिए सुविधाजनक और किफायती है. लेकिन चूंकि HTBT बीज कानूनी रूप से उपलब्ध नहीं हैं, किसान इन्हें चोरी-छिपे खरीदते हैं और कई बार धोखाधड़ी का शिकार होकर बड़ा आर्थिक नुकसान उठाते हैं. इसलिए उनका कहना है कि सरकार को HTBT कपास की खेती को कानूनी मान्यता देनी चाहिए.