गाय नहीं, विज्ञान देगा दूध…जानिए अब कैसे लैब में तैयार हो रहा है पोषण से भरपूर असली दूध
पौधों से बने दूध (जैसे बादाम या ओट मिल्क) की तुलना में लैब-ग्रो दूध अधिक प्रोटीनयुक्त होता है और इसका पोषण मूल्य अधिक संतुलित होता है. साथ ही, यह पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाता, न पशुओं की देखभाल का बोझ, न मीथेन गैस का उत्सर्जन.
Cow Free Dairy: अब वो वक्त दूर नहीं जब आपके गिलास में आने वाला दूध किसी गाय या भैंस से नहीं, बल्कि लैब से आएगा. यह कोई कल्पना नहीं बल्कि हकीकत बन चुकी है. लैब-ग्रो मिल्क या एनिमल-फ्री डेयरी कहलाने वाला यह दूध असल में असली डेयरी प्रोटीन (केसीन और व्हे) से बना होता है, जो गाय के दूध में पाए जाते हैं. फर्क बस इतना है कि इसे बनाने में किसी जानवर की जरूरत नहीं पड़ती.
इस क्रांतिकारी बदलाव की शुरुआत इजराइल से हुई है, जहां Remilk नाम की फूड टेक्नोलॉजी कंपनी ने ऐलान किया है कि अगले साल से उनके ‘काऊ-फ्री मिल्क’ उत्पाद सुपरमार्केट की शेल्फ़ पर उपलब्ध होंगे. यह दूध 3 फीसदी फैट वाले और वनीला फ्लेवर के दो वेरिएंट में आएगा, जो पूरी तरह से लैक्टोज-फ्री और कोलेस्ट्रॉल-फ्री होगा.
लैब में कैसे बनता है दूध?
लैब में दूध बनाने के दो प्रमुख तरीके हैं. पहला, मैमरी सेल कल्चर, इसमें गाय की स्तन कोशिकाओं को बायोरिएक्टर में उगाया जाता है, जो प्राकृतिक रूप से दूध बनाती हैं.
दूसरा, प्रिसिजन फर्मेंटेशन, इसमें वैज्ञानिक दूध बनाने वाले जीन को यीस्ट या माइक्रोब्स में डालते हैं. ये माइक्रोब्स शुगर खाकर असली दूध प्रोटीन (केसीन और व्हे) तैयार करते हैं. इन प्रोटीन को फिर फैट, कार्बोहाइड्रेट और पानी के साथ मिलाकर दूध जैसा तरल बनाया जाता है.
इस तरह तैयार दूध दिखने, स्वाद और बनावट में बिल्कुल असली गाय के दूध जैसा होता है. इसे फेंटकर कॉफी में इस्तेमाल किया जा सकता है, इससे पनीर या आइसक्रीम भी बनाई जा सकती है, बस फर्क इतना कि इसके पीछे कोई पशु नहीं, बल्कि विज्ञान है.
पोषण में कोई फर्क नहीं, लेकिन नुकसान बहुत कम
लैब-ग्रो मिल्क को पोषण के लिहाज से पारंपरिक दूध जैसा ही बनाया जाता है. इसमें समान मात्रा में प्रोटीन, फैट, कैल्शियम और आवश्यक अमीनो एसिड होते हैं. खास बात यह है कि निर्माता चाहें तो इसमें फैट या लैक्टोज की मात्रा को नियंत्रित कर सकते हैं. यही कारण है कि यह लैक्टोज असहिष्णु लोगों के लिए भी सुरक्षित है.
पौधों से बने दूध (जैसे बादाम या ओट मिल्क) की तुलना में लैब-ग्रो दूध अधिक प्रोटीनयुक्त होता है और इसका पोषण मूल्य अधिक संतुलित होता है. साथ ही, यह पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाता, न पशुओं की देखभाल का बोझ, न मीथेन गैस का उत्सर्जन.
क्या हैं चुनौतियां
हालांकि लैब में दूध बनाना सुनने में जितना आसान लगता है, उतना है नहीं. फिलहाल इसकी उत्पादन लागत बहुत ज्यादा है क्योंकि दूध प्रोटीन बनाने के लिए बड़े पैमाने पर बायोरिएक्टर और नियंत्रित लैब वातावरण की जरूरत पड़ती है.
दूसरी बड़ी चुनौती है, उपभोक्ताओं का विश्वास. बहुत से लोग अब भी “लैब का दूध” सुनकर सहज नहीं हैं. इसके लेबलिंग और सुरक्षा को लेकर कई देशों में नियम तय किए जा रहे हैं.
फिर भी विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले 10 वर्षों में यह तकनीक डेयरी सेक्टर में बड़ा बदलाव ला सकती है, जैसे कभी इलेक्ट्रिक वाहनों ने ऑटोमोबाइल उद्योग को बदल दिया था.
भारत भी कदम बढ़ा रहा है, लेकिन धीमी रफ्तार से
भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, अब धीरे-धीरे इस क्षेत्र में कदम रख रहा है. सूरत की Zero Cow Factory और बेंगलुरु की Phyx44 जैसी स्टार्टअप कंपनियां प्रिसिजन फर्मेंटेशन टेक्नोलॉजी पर काम कर रही हैं ताकि ‘एनिमल-फ्री डेयरी’ को भारत में भी लॉन्च किया जा सके.
हालांकि, देश में दूध सिर्फ भोजन नहीं बल्कि भावना से जुड़ा उत्पाद है. ऐसे में उपभोक्ताओं को लैब-ग्रो दूध अपनाने में समय लग सकता है. इसके अलावा, FSSAI (भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण) की ओर से स्पष्ट दिशानिर्देश न होना भी एक बड़ी चुनौती है.
गाय के बिना दूध, पर पोषण वही
लैब-ग्रो मिल्क न केवल वैज्ञानिक नवाचार का उदाहरण है, बल्कि पर्यावरण, नैतिकता और खाद्य सुरक्षा के भविष्य की दिशा भी तय कर रहा है. जिस तरह मांस का वैकल्पिक उत्पादन “लैब-ग्रो मीट” बन गया, वैसे ही आने वाले समय में “लैब-ग्रो मिल्क” दुनिया की डेयरी उद्योग का चेहरा बदल सकता है.
यह सिर्फ एक उत्पाद नहीं, बल्कि एक भविष्य की सोच है, जिसमें गायें खुश रहेंगी, धरती स्वस्थ होगी और हर गिलास में वही पोषण मिलेगा जो हमेशा से मिलता आया है.