एक देसी मुर्गी, जो सिर्फ अंडा और मांस नहीं देती, बल्कि गांव की गरीबी, कुपोषण और पलायन से भी लड़ती है. ये कोई आम मुर्गी नहीं है. ये गांव की बखरी में पले उस पक्षी की कहानी है, जो अब अंडा-मांस से आगे निकलकर ग्रामीण भारत की तिहरी चुनौती, गरीबी, कुपोषण और पलायन से लड़ रही है. दराअसल बरेली के इज्जतनगर में स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तहत आने वाले केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (CARI) ने इंडो-जर्मन सहयोग के तहत साल 2000 में इस खास नस्ल को विकसित किया. जिसका नाम गया है, CARI-निर्भीक.
रंगीन पंख, मजबूत शरीर और शिकारी जानवरों से लड़ने की ताकत लिए यह मुर्गी अब 7 राज्यों में बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग का गेमचेंजर बन चुकी है. ग्रामीण भारत के लिए यह सिर्फ अंडा और मांस देने वाला पक्षी नहीं, बल्कि रोजगार, पोषण और आत्मनिर्भरता की उड़ान है, जो हर छोटे किसान के लिए उम्मीद की नई उड़ान बन चुकी है.
इंडो-जर्मन सहयोग से तैयार प्रीमियम नस्ल
देश की कृषि व्यवस्था में अगर कोई खामोश लेकिन अहम बदलाव आया है तो वो है बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग का विस्तार. इस विस्तार की धुरी बन रही है सीएआरआई-निर्भीक. इज्जतनगर (बरेली) स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अंतर्गत आने वाला केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (CARI) इस मुहिम का नेतृत्व कर रहा है. साल 2000 में इंडो-जर्मन परियोजना के तहत विकसित की गई CARI-Nirbhik एक दोहरे उद्देश्य वाली देसी नस्ल है. मतलब अंडा भी देती है और मांस भी. इसकी खास बात ये है कि इसे बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और उत्तराखंड जैसे राज्यों में अलग-अलग जलवायु परिस्थितियों में परखा गया और ये हर टेस्ट में खरी उतरी.
अपनी रक्षा करने में सक्षम
CARI-निर्भीक का शारीरिक रूप देसी मुर्गियों की पहचान को बखूबी दर्शाता है. नर मुर्गे के रंगीन सुनहरे-लाल पंख होते हैं, जबकि मादा मुर्गी के सुनहरे-पीले पंख होते हैं। इसकी लंबी टांगें और मजबूत शरीर इसे न केवल मांस देने के लिए आदर्श बनाते हैं, बल्कि इसे शिकारियों से बचने की शक्ति भी मिलती है. यह पक्षी कुत्तों और अन्य शिकारी जानवरों से भी अपनी रक्षा करने में सक्षम है, जो इसे ग्रामीण इलाकों में बेहद उपयोगी बनाता है.
सालभर में 200 अंडे
20 हफ्ते में नर का वजन लगभग 1850 ग्राम तक और मादा का 1350 ग्राम हो जाता है. मादाएं 170-180 दिनों में अंडा देना शुरू करती हैं और सालभर में औसतन 170-200 अंडे देती हैं, जिनका वजन लगभग 54 ग्राम होता है. बात करें इनकी प्रजनन दर कि तो इन पक्षियों की प्रजनन क्षमता, अंडों से चूजों के निकलने की दर और जीवित रहने की दर क्रमशः 88 फीसदी , 81 फीसदी और 94 फीसदी के आस-पास पाई गई है.
मांग क्यों बढ़ी?
ग्रामीण किसान अब समझ चुके हैं कि यह नस्ल टिकाऊ है, कम खर्चीली है और बाजार में देसी चिकन और अंडों की मांग को पूरा करने में सक्षम है. यही कारण है कि FAO और NLM ने भी इसे देश की जलवायु के लिए एक आदर्श क्रॉसब्रिड माना है.
कम लागत वाली स्थानीय सामग्रियों से तैयार
CARI-निर्भीक के चूजों को ब्रूडिंग (6-8 सप्ताह) और मारेक, न्यू कैसल और फाउल पॉक्स जैसे रोगों के टीकाकरण के बाद अर्ध गहन पालन प्रणाली के तहत पालन के लिए पोल्ट्री किसानों को बेचा जा सकता है. चूजों को 5 से 25 पक्षियों की सीमित संख्या में बैकयार्ड में पाला जा सकता है. इन पक्षियों को शिकारियों से सुरक्षा के लिए अच्छे वेंटिलेशन और स्वच्छता वाले आश्रय में रखा जाता है, जिसे कम लागत वाली स्थानीय सामग्रियों से तैयार किया जा सकता है.
16 राज्यों में किसानों द्वारा अपनाया गया
किसान पहले दो-तीन दिनों तक पक्षियों को पर्याप्त चारा देते हैं, उसके बाद चारे की मात्रा को 35-40 ग्राम प्रति पक्षी प्रति दिन कर दिया जाता है, जो मौसम और वर्षा के आधार पर बढ़ाई या घटाई जा सकती है. नर पक्षियों को 15-20 सप्ताह की उम्र में बेचा जा सकता है या घरेलू उपभोग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. सीएआरआई-निर्भीक को 16 राज्यों में किसानों द्वारा अपनाया गया है और पिछले 20 वर्षों में 13.35 लाख से अधिक जर्मप्लाज्म की आपूर्ति की गई है. कई किसान इसे आम के बगीचों के साथ एकीकृत करके अतिरिक्त आय अर्जित भी कर रहे हैं.