बेबी कॉर्न की खेती से लाखों रुपये कमा सकते हैं किसान, कम समय में मिलती है दोगुनी उपज
बेबी कॉर्न मक्का की एक खास किस्म है, जिसके छोटे और मुलायम भुट्टे रेशे निकलने के 1–2 दिन बाद ही तोड़ लिए जाते हैं. यह बिल्कुल नरम रहते हैं और सब्जी से लेकर हलवे, सलाद, पकोड़े, चाउमीन, सूप तक कई व्यंजनों में इस्तेमाल किए जाते हैं.
Farming Tips: बेबी कॉर्न की खेती आज किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है. कम समय, कम लागत और लगातार बढ़ती मांग के कारण यह फसल अच्छी आय देने वाली साबित होती है. शहरों में सब्जी, स्नैक्स और फास्ट फूड की बढ़ती खपत ने बेबी कॉर्न के बाजार को और मजबूत बना दिया है. खास बात यह है कि यह पौष्टिक भी होता है और इसके साथ-साथ हरा चारा भी मिलता है. तो चलिए जानते हैं कैसे किसान करें इसकी खेती.
बेबी कॉर्न क्या है ?
बेबी कॉर्न मक्का की एक खास किस्म है, जिसके छोटे और मुलायम भुट्टे रेशे निकलने के 1–2 दिन बाद ही तोड़ लिए जाते हैं. यह बिल्कुल नरम रहते हैं और सब्जी से लेकर हलवे, सलाद, पकोड़े, चाउमीन, सूप तक कई व्यंजनों में इस्तेमाल किए जाते हैं. शहरी क्षेत्रों में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है. इसके अलावा इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन और फॉस्फोरस की मात्रा भी अच्छी होती है. किसानों के लिए इसकी खासियत यह है कि यह फसल कम समय में तैयार हो जाती है और साथ ही पशुओं के लिए 25-30 टन हरा चारा भी देती है.
जगह और मिट्टी का चयन
बेबी कॉर्न को साधारण मक्का से दूर, कम से कम 400 मीटर की दूरी पर उगाना चाहिए, जिससे परागकण इसकी गुणवत्ता को खराब न करें. यह जलभराव को बिल्कुल सहन नहीं कर पाती, इसलिए जहां भी खेती की जाए, मिट्टी की जल निकासी अच्छी होनी चाहिए. पानी रुकने से उपज पर सीधा असर पड़ता है.
अगर खेत शहर के आसपास है तो और भी ज्यादा फायदे मिलते हैं, क्योंकि मार्केट तक पहुंच आसान होती है और ताजा उत्पाद की मांग ज्यादा रहती है.
बुवाई का सही समय और किस्में
बेबी कॉर्न ऐसी फसल है जिसे 10°C से ऊपर तापमान होने पर लगभग सालभर उगाया जा सकता है. लेकिन सबसे अच्छा समय अगस्त से नवंबर माना जाता है. उत्तर भारत में दिसंबर–जनवरी की ठंड में इसकी खेती नहीं की जाती.
कुछ लोकप्रिय किस्में
आईएमएचबी 1539, एचएम-4, विवेक हाइब्रिड 27, शिशु, वीएल बेबी कॉर्न 1, बेबी कॉर्न जीएवाईएमएच 1 आदि.
बीज की मात्रा और बुवाई का तरीका
एक हेक्टेयर के लिए 20–25 किलो बीज पर्याप्त होता है. खरीफ में पानी से बचाने के लिए मेड पर खेती करना अच्छा रहता है. बीज को 3–5 सेमी गहराई पर बोना चाहिए.
इसके साथ ही पौधों के बीच 15–20 सेमी और कतारों के बीच 60 सेमी दूरी रखें. बीज बोने से पहले बाविस्टिन और कैप्टान के मिश्रण से उपचार जरूर करें, जिससे फसल रोगों से बचे.
दूसरी फसल भी उगा सकते हैं
बेबी कॉर्न कम अवधि वाली फसल है, इसलिए इसके साथ मेथी, धनिया, पालक, गाजर, फूल, दालें और कई सब्जियां भी उगाई जा सकती हैं. इससे एक ही खेत से दो गुना फायदा मिलता है.
सिंचाई और पोषण प्रबंधन
बेबी कॉर्न में हल्की-हल्की और नियमित सिंचाई जरूरी होती है. अंकुरण, पौधे की बढ़त, रेशे निकलने और तुड़ाई के समय पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. पोषक तत्वों की सही मात्रा फसल को मजबूत बनाती है और भुट्टों का आकार भी अच्छा होता है.
तुड़ाई कैसे करें?
बेबी कॉर्न की तुड़ाई सुबह या शाम के समय करना सबसे अच्छा माना जाता है. खरीफ में फसल 45–50 दिनों में और रबी में 70–80 दिनों में तैयार हो जाती है. भुट्टा तब तोड़ें जब रेशे 1–3 दिन पुराने हों और उनकी लंबाई 1–2 सेमी हो. यह समय सबसे ज्यादा मुलायम और स्वादिष्ट बेबी कॉर्न देता है.
उत्पादन और कमाई
एक हेक्टेयर में किसान लगभग 1.8–2 टन बिना छिलका वाला बेबी कॉर्न प्राप्त कर सकते हैं. छिलके सहित यह मात्रा 7–9 टन तक होती है और साथ ही 25–30 टन हरा चारा अलग से मिलता है.
औसतन एक हेक्टेयर में 50,000–60,000 रुपये तक की शुद्ध कमाई आसानी से हो सकती है. अगर किसान शहरों के पास बाजार से जुड़े हों, तो कमाई इससे भी ज्यादा हो जाती है.