Bihar Election 2025 : चुनाव नहीं लड़ रहे पर साख दांव पर! ओवैसी, पप्पू, मांझी और उपेंद्र के लिए चुनाव बना इम्तिहान

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अपने निर्णायक मोड़ पर है. दूसरे चरण की वोटिंग में कई बड़े नेता चुनाव नहीं लड़ रहें हैं लोकिन उन नेताओं की साख दांव पर लगी है. सीमांचल से लेकर मगध तक सियासी समीकरण बदल रहे हैं. अब फैसला वोटरों के हाथ में है कि बिहार की सत्ता किसके नाम होगी और हार-जीत तय करेगी उनका भविष्य.

नोएडा | Published: 11 Nov, 2025 | 02:23 PM

Bihar Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब अपने सबसे अहम दौर में है. इस बार कई ऐसे बड़े नेता हैं जो खुद मैदान में नहीं हैं, लेकिन उनकी साख और राजनीतिक भविष्य पूरी तरह उनकी पार्टी के उम्मीदवारों के प्रदर्शन पर टिका है. सीमांचल से लेकर मगध तक हर क्षेत्र में इन नेताओं की पकड़ और प्रभाव की असली परीक्षा इसी चुनाव में होने वाली है.

ओवैसी का अग्निपरीक्षा

बिहार के सीमांचल क्षेत्र  में इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प है. यहां ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) के लिए यह चुनाव सियासी अग्निपरीक्षा बन चुका है. 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमांचल की 5 सीटें- अमौर, बहादुरगंज, बायसी, जोकीहाट और कोचाधामन जीतकर सियासी समीकरण बदल दिए थे. हालांकि बाद में इन पांच में से चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए.

इस बार ओवैसी ने बिहार की 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें से 17 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हो रहा है. इनमें से 15 सीटें सीमांचल और 2 चंपारण क्षेत्र की हैं. ओवैसी के लिए चुनौती यह है कि इस बार सियासी फिजा पूरी तरह बदली हुई है. मुस्लिम वोटरों पर उनकी पकड़ कमजोर न हो, इसके लिए कांग्रेस ने इमरान प्रतापगढ़ी को और समाजवादी पार्टी ने इकरा हसन को मैदान में उतारकर मुकाबला रोचक बना दिया है. अगर AIMIM सीमांचल में पिछला प्रदर्शन नहीं दोहरा पाती है, तो ओवैसी की मुस्लिम सियासत पर सवाल उठना तय है.

पप्पू यादव का भी इम्तिहान

पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव (Pappu Yadav) भले ही विधानसभा चुनाव  नहीं लड़ रहे हों, लेकिन सीमांचल में कांग्रेस का चेहरा वही हैं. उनके प्रभाव का असर पूर्णिया के अलावा सुपौल और अररिया की सीटों पर भी देखा जा रहा है. पप्पू यादव ने अपने करीबियों को टिकट दिलवाया है, लेकिन अगर इस बार कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन नहीं करती, तो इसका असर उनके राजनीतिक कद और पार्टी में पकड़ पर पड़ सकता है. 2020 में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन की वजह से ही महागठबंधन सरकार नहीं बना सकी थी, इसलिए पार्टी की निगाहें अब दूसरे चरण पर टिकी हैं.

एनडीए में उपेंद्र कुशवाहा का सियासी इम्तिहान

राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) इस बार खुद मैदान में नहीं हैं, लेकिन उनकी साख दूसरे चरण में दांव पर है. एनडीए के हिस्से के तौर पर उन्हें 6 सीटें मिली हैं, जिनमें से 4 सीटें (सासाराम, दिनारा, मधुबनी और बाजपट्टी) इसी चरण में हैं. इन चारों सीटों पर उनका मुकाबला आरजेडी से है. सासाराम से उनकी पत्नी स्नेहलता कुशवाहा चुनाव लड़ रही हैं. वहीं, दिनारा में निर्दलीय जय कुमार सिंह फैक्टर भी समीकरण बदल सकता है. अगर कुशवाहा अपने कोटे की सीटों पर जीत हासिल नहीं कर पाते हैं, तो उनके राजनीतिक भविष्य पर बड़ा सवाल खड़ा हो जाएगा, खासकर क्योंकि वो 2024 लोकसभा चुनाव में पहले ही हार का सामना कर चुके हैं.

HAM प्रमुख जीतन राम मांझी की अग्निपरीक्षा

एनडीए के सहयोगी और मोदी सरकार  में मंत्री जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के लिए भी यह चरण बेहद अहम है. HAM के 6 उम्मीदवार इसी चरण में मैदान में हैं. इनमें से इमामगंज, सिकंदरा, बाराचट्टी और टिकारी मांझी की सिटिंग सीटें हैं. इन चारों पर उनका मुकाबला आरजेडी से है, जबकि कुटुंबा में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और अतरी में आरजेडी प्रत्याशी से सीधी टक्कर है. इमामगंज से मांझी की बहू दीपा मांझी मैदान में हैं, जबकि बाराचट्टी से उनकी समधन ज्योति देवी चुनाव लड़ रही हैं. इसलिए मांझी भले ही खुद चुनाव न लड़ रहे हों, लेकिन इस बार पूरा परिवार और पार्टी दोनों उनके प्रदर्शन पर टिकी है.

कांग्रेस की उम्मीदें और सियासी जोड़-घटाव

कांग्रेस ने इस चरण में 37 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. 2020 के चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था, जिससे महागठबंधन सत्ता से बाहर रह गया था. इस बार प्रियंका गांधी  और राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले पप्पू यादव के नेतृत्व में पार्टी को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है.

कुल मिलाकर क्या दांव पर है?

दूसरे चरण में सिर्फ उम्मीदवारों की नहीं, बल्कि कई नेताओं की राजनीतिक साख  और अस्तित्व दांव पर है.

ये चार चेहरे अपने-अपने क्षेत्र में निर्णायक हैं. इनके प्रदर्शन पर ही तय होगा कि बिहार की सत्ता की चाबी किसके हाथ लगती है- एनडीए, महागठबंधन  या तीसरा मोर्चा.

 

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