पूर्वोत्तर में रबर की खेती बढ़ाएगी सरकार, 5 साल में 2 लाख हेक्टेयर बढ़ाने का टारगेट

पूर्वोत्तर भारत में रबर की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा विशेष योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिससे किसानों को आर्थिक लाभ दिया जा रहा है.

Kisan India
नोएडा | Published: 29 May, 2025 | 04:02 PM

अब परंपरागत फसलों से आगे बढ़कर नकदी फसलों की ओर भी ध्यान दिया जा रहा है. ऐसी ही एक बहुपयोगी फसल है प्राकृतिक रबर, जिसकी खेती अब पूर्वोत्तर भारत में भी तेजी से बढ़ रही है. रबर बोर्ड की ओर से पूर्वोत्तर राज्यों में रबर की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष योजना चलाई जा रही है, जो यहां के किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभदायक अवसर प्रदान कर रही है. त्रिपुरा, असम, नागालैंड, मिजोरम और मणिपुर जैसे राज्यों में रबर की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार की खास योजना चलाई जा रही है, जिससे न केवल खेती की तस्वीर बदलेगी, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी.

रबर बोर्ड केंद्रीय सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधीन एक वैधानिक संस्था है, जो रबर अधिनियम, 1947 के तहत गठित की गई थी. इसका मुख्यालय केरल के कोट्टायम में स्थित है. जिसका मुख्य उद्देश्य देश में रबर उद्योग का समग्र विकास करना है, जिसमें उत्पादन से लेकर विपणन तक की व्यवस्था शामिल है. यूं तो साउथ के राज्यों में रब उत्पादन खूब होता है. लेकिन, प्राकृतिक माहौल मिलने से पूर्वोत्तर के राज्यों में खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. अगले 5 साल में 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में रबर की खेती को बढ़ाने का टारगेट है.

प्राकृतिक रबर की खासियत

प्राकृतिक रबर एक वनस्पति मूल का सबसे बहुउपयोगी औद्योगिक कच्चा उत्पाद है. यह मुख्य रूप से हेविया ब्रासिलिएन्सिस पेड़ से प्राप्त होता है, यह पेड़ अमेजन नदी घाटी के पाई जाती है. पेड़ की छाल को विशेष विधि से चीरकर इससे दूधिया लेटेक्स निकाला जाता है, जिससे रबर बनता है. लेटेक्स में लगभग 40 प्रतिशत रबर होता है. जब रबर को सल्फर के साथ मिलाकर वल्कनाइज किया जाता है, तो यह ज्यादा मजबूत, लचीला और टिकाऊ बनता है. रबर का 65 प्रतिशत हिस्सा ऑटोमोबाइल उद्योग में टायर और ट्यूब बनाने में उपयोग होता है. इसके अलावा इसका उपयोग झटकों को सहने वाली मशीनों, कंपन रोकने वाले उपकरणों और सड़कों पर भी किया जाता है.

8.5 लाख हेक्टेयर में रबर की खेती

रबर पेड़ को उगाने के लिए 200 सेमी तक अच्छी तरह वितरित वर्षा, गर्म व आर्द्र जलवायु और उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है. यह पेड़ विभिन्न प्रकार की मिट्टी में पनप सकता है, लेकिन जल निकासी की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए. भारत में करीब 8.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में रबर की खेती होती है, जिसमें से लगभग 5 लाख हेक्टेयर केरल और तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में है.

त्रिपुरा और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्य के कुल उत्पादन का 16 प्रतिशत से योगदान देते है. वहीं बात करें अन्य राज्यों की तो कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र का संयुक्त योगदान लगभग 6 प्रतिशत तक होता है. बता दें कि रबर खेती के तीन क्षेत्र यानी पारंपरिक क्षेत्र केरल और कन्याकुमारी है, गैर-पारंपरिक क्षेत्र महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा, आदि और पूर्वोत्तर क्षेत्र असम, त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश शामिल है.

पूर्वोत्तर में 5 साल के अंदर 2 लाख हेक्टेयर का टारगेट

पूर्वोत्तर में रबर खेती को बढ़ावा देने के लिए रबर बोर्ड द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जैसे NE Mitra योजना रबर बोर्ड और प्रमुख टायर कंपनियों के सहयोग से चलाई जा रही यह योजना आगामी 5 वर्षों में 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में नई रबर खेती का लक्ष्य रखती है. रबर उत्पादन प्रोत्साहन योजना (RPIS) इस योजना के अंतर्गत नई बागवानी, तकनीकी सहायता और न्यूनतम 150 रुपए प्रति किलोग्राम मूल्य की गारंटी दी जाती है. रबर प्लांटेशन डेवलपमेंट स्कीम इस योजना के तहत पारंपरिक और गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में रबर की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना से देश में रबर उत्पादों के निर्माण को बढ़ावा मिलेगा.

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