भारत का देसी केला अब सिर्फ स्वाद और सेहत के लिए ही नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने की क्षमता के लिए भी जाना जा रहा है. ब्रिटेन की एक नामी संस्था क्रिश्चियन एड की हालिया रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि जहां दुनिया के कई हिस्सों में केले की खेती खतरे में है, वहीं भारत का देसी केला इस संकट में भी मजबूती से खड़ा है.
बदलते मौसम में भी खड़ा रहा भारत का केला
दुनिया के कई बड़े केले उत्पादक देश जलवायु परिवर्तन के कारण चिंतित हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि सबसे उपजाऊ केले की खेती वाले करीब 60% इलाके अब बढ़ते तापमान और असामान्य मौसम की मार झेल रहे हैं. इससे फसलों पर कीट और बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया है. लेकिन भारत की बात अलग है. यहां का देसी केला इन सब हालातों को बेहतर तरीके से झेलने में सक्षम है. इसका कारण है भारत की विविध भौगोलिक स्थिति और कई इलाकों में केले की खेती का फैलाव.
एक्सपर्ट्स की राय
भारतीय एक्सपर्ट्स का मानना है कि जलवायु परिवर्तन का भारत में केले की पैदावार पर कोई खास असर नहीं हुआ है. बल्कि इसके क्षेत्र में बदलाव जरूर आया है यानी जो इलाके पहले केले की खेती नहीं करते थे, वहां अब किसान इस फल की खेती करने लगे हैं. उनका कहना है, “हमने देखा है कि उत्पादन में कोई बड़ी गिरावट नहीं आई है. हां, यह जरूर देखा गया है कि खेती के इलाके बदले हैं, जो हमारे आंकड़ों में भी दर्ज हुआ है.”
भारत को क्यों है बढ़त?
भारत की सबसे बड़ी ताकत है केले की ढेर सारी किस्में. यहां लगभग 22 प्रकार के केले उगाए जाते हैं. और ये सिर्फ दक्षिण भारत तक सीमित नहीं हैं अब तो उत्तर प्रदेश जैसे राज्य भी केला उत्पादन में आगे आ रहे हैं. मतलब अब यह फसल देश के उत्तर, पूरब, दक्षिण और पश्चिम सभी हिस्सों में फैल चुकी है.
भारत में केला उष्णकटिबंधीय, उप-उष्णकटिबंधीय और अर्ध-शुष्क इलाकों में भी आसानी से उगाया जाता है. इसलिए अगर किसी एक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का असर होता भी है, तो दूसरे इलाकों में इसकी भरपाई हो जाती है.
रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि जलवायु परिवर्तन से खेती को सुरक्षित रखने के लिए सिर्फ फसलों की ताकत काफी नहीं है. सरकारों को चाहिए कि वो किसानों को ज्यादा तकनीकी और आर्थिक मदद दें, ताकि वो बदलते मौसम के अनुसार खेती को ढाल सकें.