खीरे की खेती में फंगल इंफेक्शन का खात्मा, ये उपाय करेंगे कमाल

अगर फसल में फंगल इन्फेक्शन दिख ही जाए, तो घबराने की जरूरत नहीं है. आजकल बाजार में कई तरह की फफूंदनाशक दवाएं (फंगीसाइड) उपलब्ध हैं, जिनसे इस समस्या पर नियंत्रण पाया जा सकता है.

नई दिल्ली | Published: 7 Jun, 2025 | 03:58 PM

खीरे की खेती भारत में काफी लोकप्रिय है, खासकर गर्मियों के मौसम में. इसका स्वाद तो ताजगी भरा होता ही है, लेकिन यह फसल किसानों को अच्छी आमदनी भी देती है. लेकिन जब फसल में फंगल इंफेक्शन यानी फफूंद लग जाए, तो मेहनत पर पानी फिर जाता है. यह बीमारी ना सिर्फ पैदावार घटाती है, बल्कि फल की गुणवत्ता भी खराब कर देती है. अच्छी बात यह है कि थोड़ी सी समझदारी और सावधानी बरत कर हम इस बीमारी पर काबू पा सकते हैं. आइए, समझते हैं कि खीरे की फसल को फफूंद से कैसे बचाया जाए.

बचाव ही सबसे अच्छा इलाज है

खीरे की फसल में फंगल बीमारी से निपटने का सबसे अच्छा तरीका है कि बीमारी को होने ही ना दिया जाए. इसके लिए सबसे पहले ऐसी किस्मों को चुनना चाहिए जो बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक हों. जब आप पौधे लगाएं, तो इस बात का ध्यान रखें कि खेत की मिट्टी में पानी जमा ना हो और हवा का आवागमन ठीक से हो सके.

पौधों के बीच पर्याप्त दूरी होना भी बेहद जरूरी है. इससे नमी और गर्मी की वजह से जो फंगल बीजाणु फैलते हैं, वे एक पौधे से दूसरे पौधे तक नहीं पहुंच पाते. अगर आप नियमित रूप से पौधों की पत्तियों और तनों की जांच करते रहेंगे, तो किसी भी बीमारी को समय रहते पकड़ सकते हैं और उसका इलाज कर सकते हैं.

फफूंद को रोकने के लिए सही दवा का इस्तेमाल करें

अगर फसल में फंगल इन्फेक्शन दिख ही जाए, तो घबराने की जरूरत नहीं है. आजकल बाजार में कई तरह की फफूंदनाशक दवाएं (फंगीसाइड) उपलब्ध हैं, जिनसे इस समस्या पर नियंत्रण पाया जा सकता है. लेकिन ध्यान रहे, हर फफूंद पर हर दवा असर नहीं करती. इसलिए जिस तरह की फफूंद लगी है, उसी के अनुसार दवा का चुनाव करना चाहिए.

दवा का उपयोग करने से पहले उसकी बोतल या पैकेट पर लिखे निर्देशों को ध्यान से पढ़ें और उसी के अनुसार छिड़काव करें. बार-बार एक ही दवा का प्रयोग करने से फफूंद उसमें भी प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सकती है. इसलिए दवाओं को बदल-बदल कर इस्तेमाल करना अच्छा होता है.

सिंचाई का सही तरीका अपनाएं

फफूंद को सबसे ज्यादा नमी पसंद होती है. अगर पौधों की पत्तियों पर बार-बार पानी गिरे तो बीमारी का खतरा और बढ़ जाता है. इसलिए सिंचाई हमेशा पौधों की जड़ों के पास करें, न कि ऊपर से पत्तियों पर. इसके लिए ड्रिप इरिगेशन या सोकर पाइप (soaker hose) का इस्तेमाल करना बहुत लाभकारी होता है. इससे मिट्टी को जरूरत के मुताबिक नमी मिलती है और पत्तियां सूखी रहती हैं, जिससे फफूंद का खतरा कम हो जाता है.

संक्रमित हिस्सों को समय रहते हटाएं

अगर किसी पौधे में फफूंद का असर दिखे तो उससे जुड़े संक्रमित पत्ते, टहनियां या फल तुरंत काट कर हटा देना चाहिए. इन्हें खेत में न फेंकें, बल्कि जला दें या मिट्टी में गहरा दबा दें, ताकि बीमारी दोबारा न फैले. पौधों के आसपास गिरे पत्ते और गंदगी भी साफ रखें, क्योंकि वहां से भी फफूंद दोबारा पनप सकती है.