300 रुपये किलो बिकता है यह चावल, नाम है कालानमक.. खाने से बढ़ती है रोग प्रतिरोधक क्षमता
कालानमक चावल का इतिहास करीब 2600 वर्ष पुराना और सीधे गौतम बुद्ध से जुड़ा है. कहा जाता है कि जब गौतम बुद्ध अपने पिता राजा शुद्धोधन के राज्य में लौटे, तो वे मथला गांव (जो बाझा जंगल के पास है) पहुंचे. वहां के लोगों ने उनसे प्रसाद मांगा.
जब भी चावल की बात होती है, तो लोगों के जेहन में सबसे पहले बासमती का नाम उभरकर सामने आता है. लोगों को लगता है कि सबसे महंगा और फायदेमंद चावल बासमती ही है. लेकिन ऐसी बात नहीं है. देश के अलग-अलग राज्यों में किसान बासमती से भी ज्यादा महंगे और पुराने धान की किस्मों की खेती करते हैं, जिनका इस्तेमाल खाने के साथ-साथ दवाइयों के रूप में भी किया जाता है. इन्हीं बेहतरीन किस्मों में से एक है कालानमक चावल, जिसकी खेती उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और उसके आसपास के अन्य जिलों में होती है. खास बात यह है कि इस चावल को अपनी खासियत के लिए जीआई टैग भी मिला हुआ है.
दरअसल, कालानमक चावल ‘बुद्धा राइस’ के नाम से भी मशहूर है. इस चावल का इतिहास करीब 600 ईसा पूर्व गौतम बुद्ध के समय से जुड़ा हुआ है. इसे उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र, खासकर सिद्धार्थनगर, संत कबीर नगर और गोरखपुर जिले में उगाया जाता है. 2013 में सिद्धार्थनगर और आसपास के जिलों में उगाए गए कालानमक चावल को GI टैग मिला, जो इसकी खास गुणवत्ता और क्षेत्रीय पहचान को दर्शाता है. ऐसे भी चावल भारत के खानपान का अहम हिस्सा है. यह भारतीय रसोई में खास पहचान रखता है. दाल-चावल से लेकर स्वादिष्ट खीर तक, चावल हर डिश में फिट बैठता है. तो आइए जानते हैं काला नमक चावल के फायदे के बारे में.
2600 वर्ष पुराना है इसका इतिहास
कालानमक चावल का इतिहास करीब 2600 वर्ष पुराना और सीधे गौतम बुद्ध से जुड़ा है. कहा जाता है कि जब गौतम बुद्ध अपने पिता राजा शुद्धोधन के राज्य में लौटे, तो वे मथला गांव (जो बाझा जंगल के पास है) पहुंचे. वहां के लोगों ने उनसे प्रसाद मांगा. गौतम बुद्ध ने उन्हें कुछ चावल के दाने दिए और कहा कि इन्हें अपने खेत में बोओ, इनसे जो चावल उगेगा उसकी खुशबू तुम्हें हमेशा मेरी याद दिलाएगी. चीनी यात्री फाहियान ने भी 5वीं शताब्दी की अपनी भारत यात्रा में इस घटना का जिक्र किया है. राजा शुद्धोधन के नाम का मतलब संस्कृत में ‘शुद्ध चावल’ होता है, जो इस चावल की पवित्रता और ऐतिहासिकता को और गहरा बनाता है.
ब्रिटिश शासन के दौरान खेती को बढ़ावा मिला
कालानमक चावल के उत्पादन और संरक्षण की शुरुआत सबसे पहले ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी. उस समय के अंग्रेज अधिकारियों ने आज के सिद्धार्थनगर जिले में कालानमक की खेती के लिए जलाशय बनवाए थे, ताकि पूरे साल सिंचाई के लिए पानी मिलता रहे. अंग्रेज इस चावल का इस्तेमाल न सिर्फ अपने खाने के लिए करते थे, बल्कि इसे दूसरे देशों में निर्यात भी किया जाता था. कालानमक की लोकप्रियता बढ़ने पर आसपास के जिलों जैसे गोरखपुर और बस्ती में भी इसकी खेती शुरू हो गई. यहां से यह चावल राप्ती नदी के रास्ते कोलकाता भेजा जाता था और फिर वहां से ढाका तक पहुंचाया जाता था.
यूपी के 11 जिलों में होती है इसकी खेती
साल 2013 में कालानमक चावल को भारत की पारंपरिक किस्म के रूप में जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग मिला. इस टैग के तहत उत्तर प्रदेश के 11 जिले बहराइच, बलरामपुर, बस्ती, देवरिया, गोंडा, गोरखपुर, कुशीनगर, महाराजगंज, संत कबीर नगर, सिद्धार्थनगर और श्रावस्ती को शामिल किया गया. इसका बड़ा असर ये हुआ कि 2023 तक इन जिलों में कालानमक की खेती का रकबा बढ़कर 80,000 हेक्टेयर तक पहुंच गया.
कालानमक चावल के हैं अनेक फायदे
काला मक चावल न सिर्फ रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, बल्कि दिल की सेहत को बेहतर बनाता है. एक नई रिसर्च के मुताबिक, काला नमक चावल अल्जाइमर जैसी न्यूरोलॉजिकल बीमारियों को रोकने और नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभा सकता है. इसमें मौजूद प्राकृतिक और फायदेमंद तत्व दिमागी सेहत को बेहतर बनाते हैं और याददाश्त को मजबूत करने में मदद करते हैं. इस चावल को अपनी रोजमर्रा की डाइट में शामिल करना, लंबी अवधि तक ब्रेन हेल्थ को बनाए रखने का एक असरदार तरीका हो सकता है. इसकी neuroprotective properties (दिमाग को सुरक्षा देने वाले गुण) अल्जाइमर जैसी बीमारियों के खतरे को कम कर सकती हैं. कुल मिलाकर, काला नमक चावल न सिर्फ एक स्वादिष्ट विकल्प है, बल्कि मानसिक सेहत के लिए एक प्राकृतिक औषधि भी है.
300 रुपये किलो बिकता है यह चावल
वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) के साथ साझेदारी में प्रीमियम ‘कालानमक चावल’ के लिए एक अनुसंधान केंद्र भी बना रही है, ताकि इसका उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके. अभी इस सुगंधित चावल का मार्केट में रेट 250-300 रुपये प्रति किलो है. यूपी सरकार ने 2025-26 खरीफ सीजन में खेती के क्षेत्र को 82,000 हेक्टेयर से बढ़ाकर 1,00,000 हेक्टेयर करने का लक्ष्य रखा है, क्योंकि मार्केट में इसकी मांग बढ़ रही है. राज्य के आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 सीजन में उत्पादन 32.8 लाख टन तक पहुंच गया, जिसमें औसत पैदावार 4 टन प्रति हेक्टेयर थी.
क्या होता है जीआई टैग
जीआई टैग का पूरा नाम Geographical Indication यानी भौगोलिक संकेत है. यह एक तरह का प्रमाणपत्र होता है जो यह बताता है कि कोई उत्पाद किसी खास क्षेत्र या भौगोलिक स्थान से जुड़ा हुआ है और उसकी विशिष्ट गुणवत्ता, पहचान या प्रतिष्ठा उस क्षेत्र की वजह से है.
कालानमक चावल से जुड़े फैक्ट्स
- 2600 वर्ष पुराना है कालानमक का इतिहास
- ‘बुद्धा राइस’ के नाम से भी मशहूर है
- यूपी के 11 जिलों में होती है खेती
- साल 2013 में मिला जीआई टैग
- 300 रुपये किलो है मार्केट रेट
- 32.8 लाख टन है उत्पादन