कपास पर गुलाबी सुंडी का हमला, 40 फीसदी गिर जाएगी उपज.. वैज्ञानिकों ने बताए बचाव के उपाय

पंजाब में कपास की फसल को गुलाबी सुंडी से भारी नुकसान हो रहा है. Bt कपास पर भी इसका असर हो रहा है. अब किसान मेटिंग डिसरप्शन टेक्नोलॉजी अपना रहे हैं, जो पर्यावरण के अनुकूल है और कीटों की संख्या घटाकर फसल की रक्षा करती है.

नोएडा | Published: 23 Aug, 2025 | 05:18 PM

पंजाब के कपास किसानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. पिंक बॉलवर्म यानी गुलाबी सुंडी कपास की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा रहा है. खास बात यह है कि Bt कपास में इस्तेमाल होने वाले Cry टॉक्सिन्स के प्रति इस कीट में अब प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है, जिससे इसे रोकना और भी मुश्किल हो गया है. ऐसे में अब किसान और वैज्ञानिक मेटिंग डिसरप्शन टेक्नोलॉजी जैसे विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं, जो पर्यावरण के लिए सुरक्षित और प्रभावी भी मानी जा रही है. पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (PAU), लुधियाना के विशेषज्ञ किसानों को मेटिंग डिसरप्शन टेक्नोलॉजी अपनाने की सलाह दे रहे हैं, जोकि नया और पर्यावरण के अनुकूल तरीका है. खास बात यह है कि पिंक बॉलवर्म कपास के फूलों और कच्चे बॉल्स (गोलियों) पर हमला करता है, जिससे पैदावार और गुणवत्ता दोनों में 30-40 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ता जसरीत कौर, जसजिंदर कौर और विजय कुमार इस टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं, ताकि कपास की फसल में फैल रही गुलाबी सुंडी की समस्या का टिकाऊ समाधान मिल सके. उनका शोध कपास किसानों के लिए उम्मीद की एक किरण बनकर सामने आया है, खासकर उन किसानों के लिए जो कीटनाशकों का कम इस्तेमाल करना चाहते हैं और फसल को स्वस्थ बनाए रखना चाहते हैं.

कीटों की संख्या में भारी कमी

इस तकनीक में कपास के खेतों में एक खास खुशबू को फैलाया जाता है, जिसे गॉसीप्ल्यूर कहते हैं. यह वही केमिकल है जो मादा गुलाबी सुंडी अपने साथी (नर) को आकर्षित करने के लिए प्राकृतिक रूप से छोड़ती है. जब खेत में इस खुशबू को बड़ी मात्रा में फैलाया जाता है, तो नर कीट भ्रमित हो जाते हैं और असली मादा को ढूंढ नहीं पाते।. इससे उनका प्रजनन रुक जाता है और कीटों की संख्या में भारी कमी आती है.

कीटों की आबादी बढ़ने से रोकता है

यह तरीका सीधे कीट को मारता नहीं है, बल्कि उनकी आबादी को बढ़ने से रोकता है. इसी वजह से यह आईपीएम यानी समेकित कीट प्रबंधन के तहत एक बहुत असरदार और टिकाऊ उपाय माना जाता है. यह तरीका फायदेमंद कीटों के लिए सुरक्षित है. साथ ही इंसानों के लिए बिल्कुल गैर-जहरीला है और बार-बार कीटनाशक छिड़कने की जरूरत को कम कर देता है. कुल मिलाकर, यह तकनीक कपास की खेती को सुरक्षित, सस्ती और पर्यावरण के अनुकूल बनाने की दिशा में एक अहम कदम है.

प्रति एकड़ 3,600 रुपये की लागत

इस तकनीक की लागत तीन बार लगाने पर प्रति एकड़ 3,600 रुपये है. इसमें मजदूरी का खर्च भी शामिल करें तो कुल लागत लगभग 3,850 रुपये प्रति एकड़ होती है. बेहतरीन परिणाम पाने के लिए, इसे कपास की फसल के स्क्वायर फॉर्मेशन स्टेज यानी फूल बनने के शुरुआती दौर में इस्तेमाल करना चाहिए. इसके साथ-साथ यह तकनीक कम से कम 10 हेक्टेयर (लगभग 25 एकड़) क्षेत्र में लागू होनी चाहिए. इससे कीट नियंत्रण ज्यादा प्रभावी होगा और फसल की सुरक्षा बेहतर होगी.

 

 

 

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