सिल्क रीलर्स को हो रहा है भारी नुकसान, व्यापारियों ने नई मशीनें खरीदने के लिए सब्सिडी मांगी
धर्मपुरी के सिल्क रीलर्स सरकार से देरी से भुगतान और पुरानी मशीनों की वजह से परेशान हैं. 70 रीलर्स पर 400 परिवार निर्भर हैं। नई मशीनों पर सब्सिडी की मांग है. सिल्क विभाग ने फंड रिलीज़ प्रक्रिया तेज करने और सब्सिडी के लिए आवेदन करने की सुविधा बताई.
Tamil Nadu New: तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले के सिल्क रीलर्स को सरकार की तरफ से भुगतान में देरी से परेशानी हो रही है. उन्होंने सिल्क उत्पादन बढ़ाने के लिए नई मशीनों पर सब्सिडी और भुगतान नियमित करने की मांग की है. धर्मपुरी में राज्य का सबसे बड़ा रेशम का उत्पादन होता है. ऐसे जिले में औसतन सिल्क का उत्पादन 15 लाख टन से भी ज्यादा है. यहां बनी सिल्क कोकून अक्सर नीलामी में बिकते हैं और सिल्क थ्रेड बनाने के लिए खरीदे जाते हैं.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ए. जेट्टिहल्ली केवी मणिकम ने कहा कि धर्मपुरी में लगभग 70 सिल्क रीलर्स हैं और यह छोटा उद्योग स्थानीय कोकून की वजह से चलता है. इस व्यापार पर 400 से अधिक परिवार अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं. एक मशीन से रोजाना 1 से 1.5 किलो सिल्क थ्रेड बनता है, जिसमें 7-8 किलो कोकून की जरूरत होती है. अधिकांश थ्रेड सरकार के अन्ना सिल्क एक्सचेंज या TANSILK को भेजे जाते हैं. लेकिन भुगतान तुरंत नहीं मिलता, इसमें 2-3 दिन लग जाते हैं, जिससे मजदूरी देने, नए कोकून खरीदने और रोजमर्रा के खर्चों के लिए परेशानी होती है.
हमें नई मशीनों की जरूरत है
धर्मपुरी के एक और सिल्क रीलर एम गौथम ने कहा कि हमारी मशीनें लगभग 40 साल पहले केंद्र सरकार की सब्सिडी से दी गई थीं. अब ज्यादातर मशीनें पुरानी और टूट-फूट वाली हैं, जिससे रीलिंग करना मुश्किल हो गया है. हमें नई मशीनों की जरूरत है, लेकिन फिलहाल इसके लिए कोई सब्सिडी उपलब्ध नहीं है. नए सब्सिडी योजनाओं की जरूरत है.
इच्छुक लोग सिल्क विभाग में संपर्क कर सकते हैं
सिल्क विभाग के अधिकारियों ने कहा कि सलेम में अन्ना सिल्क एक्सचेंज की शाखा से लेन-देन मुख्यालय कांचीपुरम को भेजा जाता है और वहां से फंड रिलीज किया जाता है, ताकि व्यापार निष्पक्ष हो. इसमें 1-2 दिन लग सकते हैं. लेकिन लेन-देन अब जल्दी करने की कोशिश की जाएगी. सब्सिडी के बारे में उन्होंने कहा कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों की सब्सिडी उपलब्ध हैं. जो किसान पहले मशीन के लिए सब्सिडी ले चुके हैं, वे पात्र नहीं हैं. लेकिन इच्छुक लोग सिल्क विभाग में संपर्क कर सकते हैं, और मदद की जाएगी.
कपास किसानों को नुकसान हो रहा है
वहीं, महाराष्ट्र के नागपुर जिले में कपास किसानों को उचित रेट नहीं मिल रहा है. वे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम रेट पर अपनी उपज बेचने को मजबूर हैं. हालांकि, MSP पर कपास की सरकारी खरीद शुरू हो गई है. इसके बावजूद निजी व्यापारी कपास किसानों को MSP से 1,400 रुपये प्रति क्विंटल कम दाम दे रहे हैं. इस सीजन में लंबी रुई की MSP 8,110 रुपये प्रति क्विंटल तय की गई है, जबकि निजी बाजार में कीमतें 6,700- 6,800 रुपये प्रति क्विंटल हैं. कपास की आवक, चाहे CCI के MSP केंद्रों में हो या निजी बाजार में, दोनों जगह कम है. खास बात यह है कि कीमतें तब से गिर गई हैं