दलहनी फसलों में अरहर की फसल मुख्य फसल मानी जाती है. खरीफ सीजन शुरू हो चुका है , देश के कई हिस्सों में किसान बड़े पैमाने पर अरहर की खेती कर रहे हैं. ऐसे में किसान अरहर की अच्छी उपज के लिए उन्नत किस्मों के बीजों की बुवाई कर सकते हैं. इन किस्मों की खेती से किसानों को अच्छा उत्पादन मिल सकता है. किसान अरहर की खेती से बंपर उपज के लिए धारवाड़ पद्धति से बुवाई कर सकते हैं. तो चलिए जान लेते हैं कि क्या है धारवाड़ पद्धति.
क्या है धारवाड़ पद्धति?
धारवाड़ पद्धति में अरहर के बीज की रोपाई मई के महीने में कर देनी चाहिए. वहीं, इस तकनीक में बीज की रोपाई पॉलीथिन की थैली में की जाती है. इसके लिए आपको 25 सेमी छेद वाली लंबी पॉलीथीन थैली लें. बीज बुवाई के एक महीने बाद जब बारिश शुरू हो जाए तब अरहर के पौधों को पॉलीथीन से निकालकर खेतों में रोपाई कर देनी चाहिए . जब पौधे तैयार हो जाएं और बारिश के बाद खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी आ जाए तब इसकी रोपाई कर लें.
खेत को ऐसे करें तैयार
अरहर की खेती से पहले खेत की अच्छे से जुताई कर ले. पहले मिट्टी में पलट हल चलाकर गहरी जुताई कर लें. उसके बाद 2 से 3 जुताई हल और और हैरो से कर लें. इसके बाद खेतों में खाद डालकर उसे मिला दें. फिर जब बारिश से खेत में नमी आ जाए तब अरहर के पौधों को पॉलीथिन से निकालकर खेतों में रोपाई कर दें.
नवंबर में तैयार हो जाएगी फसल
किसानों के लिए धारवाड़ पद्धति तकनीक से अरहर की खेती फायदे का सौदा साबित होगी. इस विधि से बोई गई अरहर नवंबर मध्य में पककर तैयार हो जाती है. वहीं, इस विधि से खेती करने पर अरहर के खेत में ही रबी की कई फसलों की भी बुवाई की जा सकती है. इस विधि से अरहर की फसल 180 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इसकी खेती से प्रति एकड़ फसल पर 10 से 15 क्विंटल उपज हो सकती है.
फसल पर नहीं हौगा पाले का खतरा
अकसर सर्दियों में फसलों पर पाला गिरने का डर रहता है जिससे फसल बर्बाद भी हो सकती है. धारवाड़ पद्धति से बोई गई अरहर नवंबर के मध्य महीने में पककर तैयार हो जाती है. ऐसे में अरहर की फसल में पाला लगने का डर नहीं रहता है. अरहर की फसल से अच्छी उपज के लिए किसान धारवाड़ पद्धति से बुवाई कर सकते हैं.