मसाले की दुनिया का हीरा है सौंफ, सही खेती से बढ़ेगी किसानों की कमाई

सौंफ के बीजों से तेल भी निकाला जाता है, जिसकी दवा और कॉस्मेटिक उद्योग में अच्छी मांग है. इन तमाम खूबियों के कारण गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर होती है.

नई दिल्ली | Published: 31 Dec, 2025 | 09:17 AM

भारतीय रसोई की खुशबू में सौंफ की एक खास पहचान है. भोजन के बाद माउथ फ्रेशनर से लेकर सब्जी, अचार और मसालों तक, सौंफ का इस्तेमाल हर घर में होता है. यही वजह है कि सौंफ सिर्फ स्वाद बढ़ाने वाला मसाला नहीं, बल्कि किसानों के लिए एक भरोसेमंद नकदी फसल भी बन चुकी है. कम लागत, अच्छी बाजार मांग और औषधीय गुणों के कारण सौंफ की खेती आज किसानों को स्थिर और सुरक्षित आमदनी देने का जरिया बन रही है.

यही नहीं, सौंफ के बीजों से तेल भी निकाला जाता है, जिसकी दवा और कॉस्मेटिक उद्योग में अच्छी मांग है. इन तमाम खूबियों के कारण गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर होती है.

सही मौसम और समय से बढ़ती है पैदावार

सौंफ की खेती खरीफ और रबी दोनों मौसम में की जा सकती है. खरीफ में इसकी बुवाई जुलाई के महीने में होती है, जबकि रबी सीजन के लिए अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से नवंबर के पहले सप्ताह तक का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है. सही समय पर बुवाई करने से अंकुरण अच्छा होता है और फसल मजबूत बनती है.

खेत की तैयारी और मिट्टी की भूमिका

सौंफ के लिए हल्की से मध्यम दोमट मिट्टी सबसे बेहतर मानी जाती है, जिसमें जल निकास की व्यवस्था अच्छी हो. खेत की तैयारी के समय गहरी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बनाया जाता है. इसके बाद पाटा चलाकर खेत समतल कर लिया जाता है. मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद खेत में मिलाना फायदेमंद रहता है. इससे न सिर्फ मिट्टी में पोषक तत्व बढ़ते हैं, बल्कि पौधों की जड़ें भी मजबूत होती हैं.

बुवाई की विधि और दूरी का महत्व

सौंफ की बुवाई छिटकवां तरीके से या लाइन में की जा सकती है, लेकिन लाइन में बुवाई को ज्यादा बेहतर माना जाता है. इससे पौधों को बराबर जगह मिलती है और निराई-गुड़ाई आसान होती है. लाइन से लाइन की दूरी लगभग 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी करीब 45 सेंटीमीटर रखी जाती है. बीज को 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए, ताकि अंकुरण सही ढंग से हो सके.

बीज की मात्रा भी बुवाई के तरीके पर निर्भर करती है. सीधी बुवाई में प्रति हेक्टेयर 8 से 10 किलो बीज की जरूरत होती है, जबकि रोपाई विधि में 3 से 4 किलो बीज ही पर्याप्त रहता है.

बीज उपचार से बचती है फसल

अच्छी फसल के लिए बीज उपचार बहुत जरूरी है. बुवाई से पहले बीजों को फफूंदनाशक दवाओं या ट्राइकोडर्मा जैसे जैविक उपचार से उपचारित करने पर रोगों का खतरा कम हो जाता है. इससे पौधे स्वस्थ रहते हैं और उत्पादन पर सकारात्मक असर पड़ता है.

सिंचाई और खरपतवार प्रबंधन

सौंफ की फसल को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, लेकिन नमी बनाए रखना जरूरी है. बुवाई से पहले हल्की सिंचाई की जाती है. पहली सिंचाई 10 से 15 दिन बाद और इसके बाद मौसम व मिट्टी के अनुसार 15 से 25 दिन के अंतराल पर पानी देना चाहिए. फूल आने और बीज बनने के समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए. आजकल कई किसान टपक सिंचाई अपनाकर पानी की बचत के साथ बेहतर परिणाम पा रहे हैं.

खरपतवार फसल की बढ़वार में बाधा डालते हैं, इसलिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना जरूरी होता है. साफ खेत से पौधों को पूरा पोषण मिलता है.

कटाई, भंडारण और उत्पादन

जब सौंफ के गुच्छों का रंग हरे से हल्का पीला होने लगे, तब फसल कटाई के लिए तैयार मानी जाती है. कटाई के बाद गुच्छों को पहले धूप में सुखाया जाता है और फिर छांव में रखा जाता है, ताकि दानों की गुणवत्ता बनी रहे. भंडारण के समय नमी से बचाव बहुत जरूरी है. सही तरीके से रखी गई सौंफ लंबे समय तक खराब नहीं होती और बाजार में अच्छा दाम दिलाती है.

उन्नत तकनीक और सही देखभाल अपनाने पर सौंफ से औसतन 15 से 23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिल सकती है. कुछ खास किस्मों में उत्पादन इससे थोड़ा कम या ज्यादा भी हो सकता है. कुल मिलाकर, सौंफ की खेती कम जोखिम और स्थिर मुनाफे वाली फसल है, जो किसानों की आय बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकती है.

Topics: