Stubble Management: पराली, जिसे अक्सर किसानों के लिए समस्या माना जाता है, असल में खेत की उर्वरता बढ़ाने का एक प्राकृतिक साधन भी है. जब धान या गेहूं की फसल कटाई मशीनों से की जाती है, तो मशीन केवल दाने वाले हिस्से को काटती है और तना या पुआल खेत में ही रह जाता है. इससे भारी मात्रा में पराली खेत में बचती है. छोटे और बड़े किसान अक्सर इसे जलाने का सहारा लेते हैं, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों को नुकसान होता है. लेकिन अब किसान इसे जलाने के बजाय उसे खाद में बदलकर खेत की मिट्टी को अधिक उपजाऊ बना सकते हैं. तो चलिए जानते हैं कैसे पराली से बना सकते हैं खाद.
पराली जलाने के नुकसान
पराली जलाने की वजह से बड़ी मात्रा में धुआं निकलता है, जो हवा को प्रदूषित करता है और सांस संबंधी रोगों का खतरा बढ़ाता है. सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न राज्य सरकारें लगातार इस पर प्रतिबंध लगाकर किसानों को जागरूक कर रही हैं. उदाहरण के तौर पर मध्य प्रदेश में 700 से ज्यादा किसानों पर पराली जलाने के जुर्म में भारी जुर्माना लगाया गया.
क्यों जलाते हैं किसान पराली?
जब खेत में पराली बचती है, तो अगली फसल की बुवाई के लिए उसे हटाना पड़ता है. किसानों के पास अक्सर इसे हटाने के आधुनिक साधन नहीं होते और समय की कमी भी रहती है. इसलिए वे इसे जल्दी हटाने के लिए आग लगा देते हैं. छोटे किसान आर्थिक तंगी की वजह से महंगे उपकरणों का इस्तेमाल नहीं कर पाते.
पराली को खाद में बदलने के तरीके
डी-कंपोजर का इस्तेमाल: पराली को खेत में जोतने के बाद प्रति हेक्टेयर 10 किलो डी-कंपोजर छिड़कें. इसके साथ 40 किलो यूरिया और 50 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट डालें और खेत को नम रखें. लगभग 10 दिन बाद फिर से खेत जोतें. इससे पराली धीरे-धीरे खाद में बदल जाएगी.
नाइट्रोजन का इस्तेमाल: यूरिया में मौजूद नाइट्रोजन की मदद से भी पराली जल्दी सड़ती है. प्रति एकड़ पराली पर 10 किलो यूरिया डालें और हल्का पानी दें. 10 से 15 दिन में यह खाद में परिवर्तित हो जाएगी.
घरेलू और सस्ता तरीका: घर पर भी डी-कंपोजर घोल तैयार किया जा सकता है. इसके लिए 200 लीटर पानी में 2 किलो गुड़, 2 किलो बेसन और 20 ग्राम बायो डी-कंपोजर मिलाएं. इसे 10 दिन तक ढककर रखें और दिन में दो बार हिलाएं. घोल में झाग बनने पर इसे 10 लीटर की मात्रा में प्रति एकड़ खेत में छिड़कें.
पराली के फायदे
पराली को खाद में बदलने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है. इससे मिट्टी में जैविक कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और सल्फर जैसे जरूरी तत्व बढ़ते हैं. मिट्टी में छोटे जीवों की संख्या भी बढ़ती है, जो फसल के लिए फायदेमंद हैं. इसके अलावा, मिट्टी की नमी बनी रहती है और सिंचाई में भी पानी की बचत होती है.