Fennel farming: भारत में सौंफ (Fennel) को न केवल एक मसाला फसल के रूप में बल्कि एक औषधीय पौधे के रूप में भी जाना जाता है. इसकी खुशबू और स्वाद ने इसे हर रसोई और औषधि दोनों का अभिन्न हिस्सा बना दिया है. सौंफ की खेती किसानों के लिए कम लागत और अधिक लाभ का साधन बनती जा रही है. तो चलिए जानते हैं कि सौंफ की खेती कैसे करें, इसके लिए कौन-सी जलवायु उपयुक्त है और इसे सुरक्षित रूप से कैसे भंडारित किया जा सकता है.
सौंफ की खेती क्यों खास है
सौंफ एक साल में तैयार होने वाली जड़ी-बूटी है, जिसके छोटे-हरे बीज मसाले के रूप में उपयोग होते हैं. भारत में इसका प्रमुख उत्पादन गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में होता है. सौंफ का उपयोग केवल मसाले में ही नहीं बल्कि औषधीय गुणों के कारण भी किया जाता है. यह पाचन को सुधारने, सिरदर्द, गले के दर्द और कब्ज जैसी समस्याओं में बेहद उपयोगी है. इसके बीजों से सौंफ का तेल भी निकाला जाता है, जिसकी बाजार में अच्छी मांग है.
जलवायु और मिट्टी की आवश्यकता
सौंफ की खेती के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है. हल्की दोमट या बलुई मिट्टी, जिसमें जल निकासी अच्छी हो, इस फसल के लिए आदर्श होती है.
खरीफ सीजन में सौंफ की बुवाई जुलाई के महीने में की जाती है, जबकि रबी सीजन में अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से नवंबर के पहले सप्ताह तक इसकी बुवाई होती है.
खेत की तैयारी और बीज बुवाई
- खेत को 2-3 बार जुताई कर भुरभुरी मिट्टी बना लें. प्रति एकड़ में 4-5 टन सड़ी हुई गोबर की खाद डालना लाभकारी होता है.
- बुवाई के लिए लाइन से लाइन की दूरी 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेमी रखी जानी चाहिए.
- बीजों की गहराई 3 से 4 सेमी तक रखी जाए और बुवाई के लिए 8 से 10 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहते हैं.
- बीज बुवाई से पहले कार्बेन्डाजिम या केप्टान जैसे फफूंदनाशक से उपचार करना जरूरी है ताकि बीज रोग मुक्त रहें.
सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
सौंफ को शुरूआती चरण में नमी की जरूरत होती है. पहली सिंचाई बुवाई के 10-15 दिन बाद करें. इसके बाद मिट्टी की स्थिति के अनुसार हर 20-25 दिन पर सिंचाई की जा सकती है.
फूल आने और बीज बनने के समय पानी की कमी नहीं होने देनी चाहिए, वरना उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है. खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना बेहद जरूरी है ताकि फसल को पर्याप्त पोषण मिल सके.
फसल की कटाई और भंडारण
जब सौंफ के गुच्छों का रंग हरे से हल्का पीला होने लगे, तब कटाई का सही समय होता है. कटाई के बाद गुच्छों को धूप में एक-दो दिन सुखाएं और फिर 8 से 10 दिन तक छांव में रखें. भंडारण के लिए सूखी, ठंडी और हवादार जगह का चयन करें. गोदाम में नमी न हो, इसके लिए लकड़ी के फर्श पर बोरी रखी जाए और दीवार से थोड़ी दूरी बनाए रखें.
लंबे समय तक भंडारण के लिए सौंफ को प्लास्टिक-लेपित बोरियों में भरकर रखा जा सकता है या कोल्ड स्टोरेज का उपयोग किया जा सकता है.
उत्पादन और लाभ
अगर किसान सौंफ की खेती में उन्नत तकनीक अपनाते हैं, तो औसतन 15 से 23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. वहीं, लखनवी सौंफ की उपज लगभग 5 से 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. वर्तमान बाजार में सौंफ के दाम 150 से 250 रुपये प्रति किलो तक मिलते हैं, जिससे किसानों को बेहतर लाभ प्राप्त हो सकता है.