हिमाचल प्रदेश में बारिश और ओलावृष्टि से सेब की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा है. साथ ही फलों में रोग भी लग गए हैं. इससे किसानों की चिंता बढ़ गई है. सेब उत्पादकों का कहना है कि इस समय बागवानी विभाग के ज्यादातर केंद्रों पर फफूंदनाशक (fungicide) उपलब्ध नहीं हैं. हालांकि, विभाग किसानों को अपने स्प्रे शेड्यूल के तहत सुझाए गए कीटनाशकों और फफूंदनाशकों को सब्सिडी दर पर उपलब्ध कराता है.
ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, रोहरू के प्रगतिशील सेब उत्पादक हरीश चौहान ने कहा कि भारी ओलावृष्टि की वजह से कई जगहों पर किसानों को भारी नुकसान हुआ है. ऐसे मुश्किल समय में सब्सिडी वाले फफूंदनाशक कुछ राहत दे सकते थे, लेकिन वे विभाग के ज्यादातर केंद्रों पर उपलब्ध नहीं हैं. थियोग के सेब उत्पादक सोहन ठाकुर ने भी कहा कि उनके इलाके में भी बागवानी विभाग के केंद्रों पर फफूंदनाशक नहीं मिल रहे हैं. उन्होंने कहा कि नौणी की हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री यूनिवर्सिटी ने ओलावृष्टि से घायल फलों और पत्तियों पर तुरंत फफूंदनाशक छिड़काव की सलाह दी है, ताकि फंगल संक्रमण रोका जा सके. लेकिन जब विभाग से फफूंदनाशक नहीं मिलते, तो हमें बाजार से महंगे दामों पर इन्हें खरीदना पड़ता है.
फफूंदनाशक की सप्लाई के लिए ऑर्डर दिया
बागवानी विभाग के एक अधिकारी ने माना है कि कुछ केंद्रों पर फफूंदनाशक उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि कंपनियों को फफूंदनाशक की सप्लाई के लिए ऑर्डर दिया गया है और ये जल्द ही विभाग के केंद्रों पर उपलब्ध होंगे. उन्होंने कहा कि हमारे स्टोर्स में कुछ समय पहले तक फफूंदनाशक उपलब्ध थे. अब नया ऑर्डर दिया गया है और ये जल्द आ जाएंगे. सेब उत्पादक हरीश चौहान ने बागवानी विभाग से अपील की कि नौणी की हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री यूनिवर्सिटी द्वारा सुझाए गए फफूंदनाशक किसानों को जल्द से जल्द उपलब्ध कराए जाएं. साथ ही उन्होंने सरकार से इन फफूंदनाशकों पर दी जाने वाली सब्सिडी को भी दोबारा तय करने की मांग की.
फफूंदनाशकों की बढ़ी कीमतें
उन्होंने कहा कि इन फफूंदनाशकों पर 30 फीसदी सब्सिडी 90 के दशक में तय की गई थी, जो आज तक नहीं बदली. जबकि फफूंदनाशकों और दूसरी चीजों की कीमतें काफी बढ़ चुकी हैं. सरकार को छोटे और सीमांत किसानों के हित में इस सब्सिडी को फिर से तय करना चाहिए. नौणी यूनिवर्सिटी ने ओलावृष्टि के बाद घायल फलों और पत्तियों पर तुरंत फफूंदनाशक का छिड़काव करने की सिफारिश की है, ताकि फंगल इन्फेक्शन रोका जा सके. लेकिन विभाग के केंद्रों पर ये फफूंदनाशक न मिलने के कारण किसान इन्हें बाजार से महंगे दामों पर खरीदने को मजबूर हैं.