Banana Fruit Cracking: भारत में केला किसानों की एक प्रमुख नकदी फसल है, जिसे लगभग हर राज्य में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है. केले की खेती में मेहनत और समय तो बहुत लगता है, लेकिन जब फल पकने के समय फटने लगते हैं, तो पूरी मेहनत पर पानी फिर जाता है. इसे वैज्ञानिक भाषा में “फ्रूट क्रैकिंग” कहा जाता है. यह समस्या न केवल उपज को घटाती है, बल्कि बाजार में फलों की गुणवत्ता और कीमत पर भी बुरा असर डालती है. इसलिए किसानों के लिए जरूरी है कि वे इस समस्या को समझें और सही तरीकों से इसका समाधान करें.
केले के फटने के पीछे की मुख्य वजहें
केले के फलों के फटने के कई कारण होते हैं, जिनमें सबसे आम है पानी की अनियमित आपूर्ति. जब खेत में लंबे समय तक सूखा रहता है और फिर अचानक भारी बारिश हो जाती है, तो पौधा अचानक बहुत अधिक पानी सोख लेता है. इससे फल के अंदर का हिस्सा तेजी से फैलता है जबकि छिलका उतनी तेजी से नहीं फैल पाता, नतीजतन फल फट जाता है.
इसी तरह, पोषक तत्वों की कमी भी एक प्रमुख कारण है. मिट्टी में अगर पोटैशियम, कैल्शियम या बोरॉन जैसे तत्वों की कमी हो, तो फल का छिलका कमजोर हो जाता है. इससे पकते समय उस पर दरारें पड़ने लगती हैं. इसके अलावा, कई बार तापमान में अचानक बदलाव या तेज हवाओं से भी फलों में दबाव बढ़ जाता है, जिससे फल फटने लगते हैं.
पोषण प्रबंधन से मिलेगी सुरक्षा
अगर किसान संतुलित खाद योजना अपनाएं तो फल फटने की समस्या काफी हद तक टाली जा सकती है. केले की फसल में पोटैशियम और कैल्शियम की भूमिका सबसे अहम होती है. ये तत्व फल की कोशिकाओं को मजबूत बनाते हैं और छिलके की लोच बनाए रखते हैं. इसलिए, किसानों को चाहिए कि वे मिट्टी की जांच करवाएं और उसी के आधार पर उर्वरक डालें.
साथ ही, खेत में जैविक खाद और गोबर की सड़ी हुई खाद का इस्तेमाल मिट्टी की बनावट सुधारता है और पौधे की जड़ों को मजबूत बनाता है. इससे पौधा नमी को बेहतर तरीके से संभाल पाता है और सूखे या बारिश के दौरान भी फलों की गुणवत्ता बनी रहती है.
फफूंदी और बीमारियों से भी रखें सतर्कता
कई बार केले के फल फंगल इंफेक्शन (जैसे एन्थ्रेक्नोज) के कारण भी फट जाते हैं. यह रोग छिलके की ऊपरी परत को कमजोर कर देता है. इसलिए जरूरी है कि किसान फसल की नियमित निगरानी करें और जरूरत पड़ने पर फफूंदनाशक दवाओं का छिड़काव करें. साथ ही, खेत में पानी जमा न होने दें क्योंकि गीली मिट्टी फफूंदी के फैलने में मदद करती है.
सिंचाई और खेत की देखभाल का सही तरीका
केले के पौधे को नियमित और समान रूप से पानी देना सबसे जरूरी है. अगर ड्रिप सिंचाई का उपयोग किया जाए, तो मिट्टी की नमी संतुलित रहती है और फलों के फटने की संभावना कम हो जाती है. साथ ही, खेत में उचित जल निकासी बनाए रखें ताकि ज्यादा पानी न रुके.
फलों के गुच्छों को सहारा देना भी जरूरी है, जिससे उन पर अतिरिक्त दबाव न पड़े. कुछ किसान फलों पर खाने योग्य वैक्स या केले के पत्तों की परत चढ़ाकर भी छिलके को सुरक्षित रखते हैं.